Sunday, January 27, 2008

जब जीना दूभर सा कर देती है यह खारिश-खुजली....


हमारे यहां खुजली मिटाने वाली दवाईयों की बिक्री बहुत होती है क्योंकि अकसर लोग बिना किसी डाक्टरी सलाह के अपने आप ही कोई भी ट्यूब बाज़ार से ला कर लगानी शुरू कर देते हैं। बहुत बार तो देखने में आया है कि स्टीरॉयड युक्त ट्यूबें भी खुजली के लिए बिना किसी डाक्टर से परामर्श किए हुए खूब इस्तेमाल की जाती हैं। ऐसे में अकसर रोग को बढ़ावा मिल जाता है। हां,अगर को क्वालीफाईड चिकित्सक अथवा चमड़ी रोग विशेषज्ञ की देख रेख में—उस की सलाह अनुसार- आप इन ट्यूबों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बात और है।

किसी भी तरह के चर्म-रोग होने पर तुरंत अपने चिकित्सक से मिलें----कईं बार कुछ दिन दवाई लगाने पर उपेक्षित आराम नहीं मिलता । ऐसे में आप का फैमिली डाक्टर आप को स्वयं ही किसी चर्म-रोग विशेषज्ञ के पास रैफर कर देगा, अन्यथा आप स्वयं भी किसी प्रशिक्षित चर्म रोग विशेषज्ञ से मिल सकते हैं।

मेरे एक मित्र की माता जी की एक आंख के आस-पास चेहरे की चमड़ी में अचानक दर्द रहने लगा......दर्द बहुत तेज़ था.....साथ में छोटे छोटे दाने से निकल आये। उस ने किसी दूसरे शहर में रह रहे हमारे किसी मित्र से बात की जो चर्म-रोग विशेषज्ञ हैं....उस ने सारी बात सुनते ही उस मित्र को कहा कि अपने शहर के किसी चर्म-रोग विशेषज्ञ के पास माता जी को तुरंत ले कर जाओ क्योंकि देख कर ही पूरा पत लग पायेगा (शायद वो पूरी डिसक्रिपश्न सुन कर डॉयग्नोसिस कर चुके थे) । जब चर्म –रोग विशेषज्ञ के पास माता जी को लेकर जाया गया, तो उस ने देखते ही कह दिया की यह तो इन को हर्पिज़ यॉस्टर हुया है। खूब सारी दवाईंयां तुरंत शुरू की गईं...और नेत्र विशेषज्ञ से मिलने को भी कहा गया। नेत्र विशेषज्ञ ने भी यही कहा कि टाइम पर आ गए हो, नहीं तो आँख ही बेकार हो सकती थी। यह बात बताने का उद्देश्य केवल इतना ही है कि हम किसी भी चमड़ी की तकलीफ को इतना लाइटली न लें।

तो , आज कुछ बातें स्केबीज़ चर्म रोग के बारे में करते हैं जिस से लोग बहुत परेशान भी होते हैं और डर भी बहुत जाते हैं।

स्केबीज़ चर्म रोग सारकॉपटिस स्केबी नामक एक छोटे से कीड़े के द्वारा फैलता है। यह छूत की बीमारी तो है लेकिन यह हवा, पानी अथवा सांस के द्वारा नहीं फैलती, बल्कि यह रोगी के साथ निकट संपर्क से फैलती है। इसलिए परिवार में एक व्यक्ति से यह सारे परिवार में ही अकसर फैल जाती है। इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को छूने मात्र ही से यह रोग नहीं हो जाता बल्कि नज़दीकी एवं काफी लंबे अरसे तक रोग-ग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में रहने से यह फैलता है।

इस के बारे में विशेष ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस का संक्रमण होने पर लगभग एक महीने या उस से भी ज्यादा समय तक मरीज को बिल्कुल खुजली नहीं होती और इस दौरान तो उसे यह भी पता नहीं होता कि उसे कोई चर्म रोग है। लेकिन इस दौरान भी उस के द्वारा यह रोग आगे दूसरे लोगों को तो अवश्य फैल सकता है।

आम तौर पर बच्चों में यह रोग बहुत आम है। इस में सारे शरीर पर छोटे-छोटे दाने हो सकते हैं जिन में बेहद खुजली ( खास कर रात के समय) होती है, लेकिन आम तौर पर ये दाने उंगलियों के बीच, कलाई पर, पेट पर एवं प्रजनन अंगों पर ही होते हैं।

इन दानों पर खुजली करने से संक्रमण बढ़ता है, पस वाले फोड़े बन जाते हैं जिस की वजह से शरीर के विभिन्न भागों में गांठें ( लिम्फ नॉड्स) सूज जाती हैं और बुखार हो जाता है।

साधारणतयः स्कबीज़ चर्म रोग से मृत्यु हो जाना सुनने में नहीं आता, लेकिन अगर छोटे बच्चों को यह त्वचा रोग हो तो उन का विशेष ध्यान रखने की ज़रूरत है। इन में रोग –प्रतिरोधक क्षमता( इम्यूनिटि) तो वैसे ही कम होती है—अगर पस पड़ने से, बुखार होने से , संक्रमण रक्त में चला जाए ( सैप्टीसीमिया) तो यह जान लेवा सिद्ध हो सकता है।

इस स्केबीज़ चर्म रोग के इलाज के लिए कुछ ध्यान देने योग्य बातें ये भी हैं....

· घर में एक भी सदस्य को स्केबीज़ होने पर पूरे परिवार का एक साथ इलाज होना लाज़मी है।

· इस बीमारी के पूर्ण इलाज के लिए बहुत ही प्रभावशाली लगाने वाली दवाईयां उपलब्ध हैं। इन का प्रयोग आप अपने चिकित्सक से मिलने के पश्चात् कर सकते हैं। गले के नीचे-नीचे शरीर के सभी भागों में इसे ब्रुश से लगाया जाता है। सारे शरीर की चमड़ी पर इसे लगाना बहुत ज़रूरी है। अगर मरीज इस केवल उन जगहों पर ही लगाएंगे जहां पर ये दाने हैं तो बीमारी का नाश नहीं हो पाएगा। 24घंटे के अंतराल पर यह दवाई ऐसे ही शरीर पर दो बार लगाई जाती है। और उस के बाद नहा लिया जाता है। इस दवाई का शरीर पर 48 घंटे लगे रहना बहुत ज़रूरी है।

· विश्व विख्यात पुस्तक जहां कोई डाक्टर न होके लेखक डेविड वर्नर इस पुस्तक में स्केबीज़ पर एक पेस्ट लगाने की सलाह देते हैं। इसे तैयार करने की विधि इस प्रकार है—थोड़े से पानी में नीम के कुछ पत्ते उबाल लें। इस हल्दी के पावडर के साथ मिला कर एक गाढ़ी पेस्ट बना लें। सारे शरीर को अच्छी तरह से साबुन लगा कर धोने के पश्चात् इस पेस्ट का सारे शरीर विशेषकर उंगलियों के बीच के हिस्सों, टांगों के अंदरूनी हिस्सों( inside portion of thighs) एवं पैरों की उंगलियों के बीच लेप कर दें। उस के बाद सूर्य की रोशनी में कुछ समय खड़े हो जायें। अगले तीन दिनों तक रोज़ाना यह लेप करें, लेकिन नहाएं नहीं। चौथे दिन मरीज़ नहाने के बाद साफ़ सुथरे, सूखे कपड़े पहने। चमड़ी रोग विशेषज्ञ से मिलने से पहले आप इस घरेलु पेस्ट का उपयोग तो अवश्य कर ही सकते हैं , लेकिन प्रोपर डायग्नोसिस एवं यह पता करने के लिए कि रोग जड़ से खत्म हो गया है या नहीं...इस के लिए चर्म-रोग विशेषज्ञ से मिलना तो ज़रूरी है ही।

· स्केबीज़ से डरिए नहीं, इस का इलाज तो बहुत आसान है ही, रोकथाम भी बड़ी आसान है। साफ़-स्वच्छ जीवन-शैली, रोज़ाना नहा धो-कर कपड़े बदलने से इससे बचा जा सकता है। कपड़े और बिस्तर की सफाई का ध्यान रखें और सूर्य की रोशनी में इन्हें अच्छी तरह सुखाएं। और हां, छोटे बच्चों को भी यह रोग होने पर तुरंत चिकित्सक से मिलें।

Wednesday, January 23, 2008

गन्ने के रस का लुत्फ तो आप भी ज़रूर उठाते होंगे !



मैं जब भी बम्बई में होता हूं न तो दोस्तो वहां पर बार बार गन्ने के रस पीने से कभी नहीं चूकता.. लेकिन अपने यहां पंजाब -हरियाणा में मेरी पिछले कुछ सालों से कभी गन्ने का रस पीने की इच्छा ही नहीं हुई। पिछले कुछ सालों से इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि पहले खराब गन्ने का रस पीने के नुकसानों से वाकिफ न था। वैसे तो मैं बचपन से ही इस का शौकीन रहा हूं - जब भी मां की उंगली पकड़ कर बाज़ार जाता तो आते वक्त मेरा एक गन्ने का गिलास पक्का था।

दोस्तो, 1980 में मुझे पीलिया हो गया तो मेरी मां बहुत दूर से जाकर छःसात गिलास गन्ने का रस ले कर आती थी, क्योंकि उस अमृतसर के दुर्ग्याणा मंदिर के बाहर स्थित गन्ने के रस की दुकान की खासियत ही यह थी कि वह खूब सारा धूप वगैरह जला कर एक भी मक्खी आस पास नहीं फटकने देता था। और पीलिया रोग में तो यह एहतियात और भी कहीं ज्यादा जरूरी थी।

और बचपन में याद है कि हम लोग स्कूल से आते हुए एक ऐसी जगह से यह जूस पीते थे जहां पर बैल की आंखों पर पट्टी बांध कर उसे गोल-गोल दायरे में घुमा कर गन्नों को पीस कर जूस निकाल जाता था, तब किस कमबख्त को इस की फिकर थी कि क्या मिल रहा है। बस यही शुक्र था कि जूस के पीने का आनंद लूट रहे थे। इस के बाद , अगला स्टाप होता था , साथ में बैठी एक छल्ली वाली ....वही जिसे भुट्टा कहते हैं-- उस से पांच-दस पैसे में कोई छल्ली ले कर आपनी यात्रा आगे बढ़ा करती थी।

सारी, फ्रैंडज़, यह जब से ब्लागिरी शुरु की है न , मुझे अपनी सारी पुरानी बातें बहुत याद आने लगी हैं...क्या आप को के साथ भी ऐसा हो रहा है। कमैंटस में जवाब देना, थोड़ी तसल्ली सी हो जाएगी

हां, तो मैं बात कर रहा था कि बम्बई में जाकर वहां पर गन्ने के रस का भरपूर आनंद लूटना चाहता हूं। इस का कारण पता है क्या है ...वहां पर गन्ने के रस के स्टालों पर एकदम परफैक्ट सफाई होती है, उन का सारा ताम-झाम एक दम चमक मार रहा होता है और सब से बड़ी बात तो यह कि उन्होंने सभी गन्नों को सलीके से छील कर अपने यहां रखा होता है ....इसलिए किसी भी गन्ने का ज़मीन को छूने का तो कोई सवाल ही नहीं।

इधर इस एरिया में इतनी मेहनत किसी को करते देखा नहीं, ज्यादा से ज्यादा अगर किसी को कहें तो वह गन्नों को कपड़ों से थोड़ा साफ जरूर कर लेते हैं ,लेकिन जिसे एक बार बम्बई के गन्ने के रस का चस्का लग जाता है तो फिर उसे ऐसी वैसी जगह से यह जूस पसंद नहीं आता। बम्बई ही क्यों , दोस्तो, कुछ समय पहले जब मुझे हैदराबाद जाने का मौका मिला तो वहां पर भी इस गन्ने के रस को कुछ इतनी सी सफाई से परोसा जा रहा था। यह क्या है न दोस्तो कि कुछ कुछ जगहों का कुछ कल्चर ही बन जाता है।

और जगहों का तो मुझे इतना पता नहीं, लेकिन दोस्तो, पंजाब हरियाणा में क्योंकि कुछ जूस वाले सफाई का पूरा ध्यान नहीं रखते इसलिए गर्मी के दिनों में लोकल प्रशासन द्वारा इस की बिक्री पर कुछ समय के लिए रोक ही लगा दी जाती है ...क्योंकि इस प्रकार से निकाला जूस तो बस बीमारियों को खुला बुलावा ही होता है।

तो,आप भी सोच रहे हैं कि इस में कोई हैल्थ-टिप दिख नहीं रही-तो ,दोस्तो, बस आज तो बस इतनी सी ही बात करनी है कि गन्ने का रस पीते समय ज़रा साफ-सफाई का ध्यान कर लिया करें।

वैसे जाते जाते बम्बई वासियों के दिलदारी की एक बात बताता हूं ...कुछ दिन पहले ही चर्चगेट स्टेशनके बाहर हम लोग गन्ने का जूस पी रहे थे कि एक भिखारी उस दुकान पर आया और उसे देखते ही दुकानदार ने उसे गन्ने के रस का एक गिलास थमा दिया.....उसने बीच में पीते हुए दुकानदार से इतना कहने की ज़ुर्रत कैसे कर ली....नींबू भी डाल दो। और दुकानदार ने भी उसी वक्त कह दिया कि सब कुछ डाला हुया है , तू बस साइड में हो कर पी ले। मैं यह समझ नहीं पाया कि क्या उस भिखारी ने नींबू मांग कर ठीक किया कि नहीं.....खैर जो भी , We liked this small noble gesture of that shopkeeper. May he always keep it up !!

Tuesday, January 15, 2008

तंबाकू की लत से जुड़े कुछ मिथक....


कुछ दिन पहले जब मैं मुंबई के लोकल स्टेशनों के बाहर सुबह-सवेरे कुछ महिलाओं एवं बच्चों को दांतों पर मेशरी (जला हुया तंबाकू) घिसते हुए देख कर यही सोच रहा था कि यद्यपि यह भयंकर आदत मुंह के कैंसर को निमंत्रण देने के बराबर ही तो है, फिर भी जब हम विश्व तंबाकू मुक्ति दिवस मनाते हैं, तो उस अभियान में यह लोग केंद्र-बिंदु क्यों नहीं बन पाते। तम्बाकू पीना, चबाना, मुंह में लगाना या किसी भी रूप में प्रयोग करना नई महामारी को खुला निमंत्रण दिए जा रहा है और हम अपने अधिकतर संसाधन लोगों को केवल सिगरेट के दुष्परिणामों से वाकिफ़ करवाने में ही लगा देते हैं.........लेकिन समय की मांग है कि इस के साथ-साथ देश में व्याप्त तंबाकू प्रयोग से संबंधित विभिन्न मिथकों को तोड़ा जाए !!

बीड़ी सिगरेट से कम हानिकारक ?----

यह बिल्कुल गलत सोच है। बीड़ी भी कम से कम सिगरेट के जितनी तो घातक है ही। इस को सिगरेट की तुलना में चार से पांच गुणा लोग पीते हैं। एक ग्राम तंबाकू से औसतन एक सिगरेट तैयार होती है लेकिन इतना तंबाकू 3या 4 बीड़ीयां बनाने के काम आता है।

बीड़ी का आधा वज़न तो उस तेंदू के पत्ते का ही होता है जिस में तम्बाकू लपेटा जाता है। इतनी कम मात्रा में तम्बाकू होते हुए और अपना छोटा आकार होते हुए भी एक बीड़ी कम से कम भारत में बने एक सिगरेट के समान टार तथा निकोटीन उगल देती है, जब कि कार्बनमोनोआक्साइड तथा अन्य विषैले रसायनों की मात्रा तो बीड़ी में सिगरेट की अपेक्षा काफी ज्यादा होती है।

हुक्का पीना....कोई बात ही नहीं.....यह तो सब से सुरक्षित है ही !---रीयली ???-----हुक्के के कश में निकोटीन की मात्रा थोड़ी कम होती है क्योंकि इस में धुआं लम्बी नली व पानी में से छन कर आता है, लेकिन कार्बन-मोनोआक्साईड तथा कैंसर पैदा करने की क्षमता में कमी नहीं होती है। हुक्के में तंबाकू की मात्रा ज्यादा होती है जिससे शरीर में निकोटीन की मात्रा, ज्यादा देर तक हुक्का पीने के कारण बीड़ी सिगरेट के बराबर ही हानि पहुंचाती है।

यार, पिछले बीस-तीस साल से तो ज़र्दा-धूम्रपान का मज़ा लूट रहे हैं, अब क्या खाक होगा !----- ज़र्दा एवं धूम्रपान से होने वाली बीमारियों का शुरू शुरू में तो कुछ पता चलता नहीं है, इन का पता तब ही लगता है जब कोई लाइलाज बीमारी हो जाती है। लेकिन यह ही पता नहीं होता कि किस को यह लाइलाज बीमारी पांच वर्ष ज़र्दा-धूम्रपान के सेवन के बाद होगी या तीस वर्ष के बाद। चलिए, एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं--- अपने मकान के पिछवाड़े में बार-बार भरने वाले बरसात के पानी को यदि आप न देख पायें तो नींव में जाने वाले इस पानी के खतरे का अहसास आप को नहीं होगा। इस का पता तो तभी चलेगा जब इससे मकान की दीवार में दरार आ जाए या मकान गिर जाए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ज़र्दा-धूम्रपान एक प्रकार से बार-बार पिछवाड़े में भरने वाले पानी के समान है।

रोगों को मिल गई खान,

जिसने किया ज़र्दा-धूम्रपान !!

पान-मसाला, ज़र्दा मुंह को बस थोड़ा तरोताज़ाही ही तो करता है, और है क्या, काहे की टेंशन मोल लें ?-

दोस्तो, पिछले दो-तीन दशकों से तो हमारे देश में तंबाकू खाने की लत बहुत ही बढ़ गई है। पान-सुपारी-चूना वगैरह के साथ तंबाकू मिलाकर उसे चबाने की अथवा गालों के अंदर या जीभ के नीचे या फिर होठों के पीछे दबा कर रखने की बुरी आदत शहरी एवं ग्रामीण दोनों वर्गों में बहुत ज्यादा देखने को मिलती है। पान-मसालों या तंबाकू युक्त गुटखा के उत्पादों का आकर्षण तो बस बढ़ता ही जा रहा है। इन को तो विज्ञापनों की मदद से कुछ इस तरह से पेश किया जाता है कि ये तो मात्र माउथ-फ्रेशनर ही तो हैं !!—लेकिन ये लतें भी धूम्रपान जितनी ही नुकसानदायक हैं।

इन के प्रयोग से मुंह की कोमल त्वचा सूखी, खुरदरी तथा झुर्रीदार बन जाती है। मरीज का मुंह धीरे-धीरे खुलना बंद हो जाता है और उस व्यक्ति की गरम, ठंडा, तीखा, खट्टा सहन करने की क्षमता बहुत ही कम हो जाती है। इस स्थिति को ही सब-म्यूकस फाईब्रोसिस कहा जाता है और यह मुंह में होने वाले कैंसर के लिए खतरे की घंटी ही है।

अब, देखा जाए तो देश में तंबाकू की रोकथाम के कायदे-कानून तो काफी हैं...लेकिन, दोस्तो, बात फिर वहीं आकर खत्म होती है कि कायदे, कानून कितने भी बन जाएं, लेकिन फैसला तो केवल और केवल आप के मन का ही है कि आप स्वास्थ्य चाहते हैं या तंबाकू-----अफसोस, आप दोनों को नहीं चुन सकते। बस, कोई भी फैसला लेते समय ज़रा ये पंक्तियां ध्यान में रखिएगा तो बेहतर होगा....

ज़र्दा-धूम्रपान की लत जो डाली,देह रह गई बस हड्डीवाली !!

Monday, January 14, 2008

चमत्कारी दवाईयां – लेकिन लेने से पहले ज़रा सोच लें !!


यह क्या, आप भी क्या सोचने लग गए ?- वैसे आप भी बिलकुल ठीक ही सोच रहे हैं- ये वही चमत्कारी दवाईयां हैं जिन के बारे में आप और हम तरह तरह के विज्ञापन देखते, पढ़ते और सुनते रहते हैं जिनमें यह दावा किया जाता है कि हमारी चमत्कारी दवा से किसी भी मरीज़ का पोलियो, कैंसर, अधरंग, नसों का ढीलापन, पीलिया रोग शर्तिया तौर पर जड़ से खत्म कर दिया जाता है। वैसे, चलिए आज अपनी बात पीलिया रोग तक ही सीमित रखते हैं।


चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े होने के कारण बहुत से मरीज़ों से ऐसा सुनने को मिला कि पीलिया होने पर फलां-फलां शहर से लाकर चमत्कारी जड़ी-बूटी इस्तेमाल की, तब कहीं जाकर पीलिये के रोग से छुटकारा मिला। साथ में यह भी बताना नहीं भूलते कि जो शख्स यह काम कर रहा है उस को पीलिये के इलाज का कुछ रब्बी वरदान (बख्श) ही मिला हुया है – वह तो बस यह सब सेवा भाव से ही करता है, न कोई फीस, न कोई पैसा।

हमारे देश की प्राकृतिक वन-सम्पदा तो वैसे ही निराली है- औषधीय जड़ी बूटियों का तो भंडार है हमारे यहां। हमारी सरकार इन पर होने वाले अनुसंधान को खूब बढ़ावा देने के लिए सदैव तत्पर रहती है। इस तरह की योजनाओं के अंतर्गत सरकार चाहती है कि हमारी जनता इस औषधीय सम्पदा के बारे में जितना भी ज्ञान है उसे प्रगट करे जिससे कि सरकार उन पौधों एवं जड़ी बूटियों का विश्लेषण करने के पश्चात् उन की कार्यविधि की जानकारी हासिल तो करें ही, साथ ही साथ यह भी पता लगाएं कि वे मनुष्य द्वारा खाने के लिए सुरक्षित भी हैं या नहीं अथवा उन्हें खाने से भविष्य में क्या कुछ दोष भी हो सकते हैं ?


अच्छा, तो बात चल रही थी , पीलिये के लिए लोगों द्वारा दी जाने वाली चमत्कारी दवाईयों की। आप यह बात अच्छे से समझ लें कि पीलिये के मरीज़ की आंखों का अथवा पेशाब का पीलापन ठीक होना ही पर्याप्त नहीं है, लिवर की कार्य-क्षमता की जांच के साथ-साथ इस बात की भी पुष्टि होनी ही चाहिए कि यह जड़ी-बूटी शरीर के किसी भी महत्वपूर्ण अंग पर कोई भी गल्त प्रभाव न तो अब डाल रही है और न ही इस के प्रयोग के कईं वर्षों के पश्चात् ऐसे किसी कुप्रभाव की आशंका है। इस संबंध में चिकित्सा वैज्ञानिकों की तो राय यही है कि इन के समर्थकों का दावा कुछ भी हो, उन की पूरा वैज्ञानिक विश्लेषण तो होना ही चाहिए कि वे काम कैसे करती हैं और उन में से कौन से सक्रिय रसायन हैं जिसकी वजह से यह सब प्रभाव हो रहा है।


अकसर ऐसा भी सुनने में आता है कि ऐसी चमत्कारी दवाईयां देने

वाले लोग इन दवाई के राज़ को राज़ ही बनाए रखना चाहते हैं---उन्हें यह डर रहता है कि कहीं इस का ज्ञान सार्वजनिक करने से उनकी यह खानदानी शफ़ा ही न चली जाए। वैसे तो आज कल के वैज्ञानिक संदर्भ में यह सब हास्यास्पद ही जान पड़ता है। --- क्योंकि यह मुद्दा पैसे लेने या न लेने का उतना नहीं है जितना इश्यू इस बात का है कि आखिर इन जड़ी-बूटियों का वैज्ञानिक विश्लेषण क्या कहता है ?- वैसे कौन कह सकता है कि किसी के द्वारा छिपा कर रखे इस ज्ञान की वैज्ञानिक जांच के पश्चात् यही सात-समुंदर पार भी लाखों-करोड़ों लोगों की सेवा कर सकें।


वैसे तो एक बहुत जरूरी बात यह भी है कि किसी को पीलिया होने पर तुरंत ही इन बूटियों का इस्तेमाल करना उचित नहीं लगता –कारण मैं बता रहा हूं। जिस रोग को हम पीलिया कहते हैं वह तो मात्र एक लक्षण है जिस में भूख न लगना, मतली आना, उल्टियां होने के साथ-साथ पेशाब का रंग गहरा पीला हो जाता है, कईं बार मल का रंग सफेद सा हो जाता है और साथ ही साथ आंखों के सफेद भाग पर पीलापन नज़र आता है।

पीलिये के कईं कारण हैं और केवल एक प्रशिक्षित चिकित्सक ही पूरी जांच के बाद यह बता सकता है कि किसी केस में पीलिये का कारण क्या है......क्या यह लिवर की सूजन की वजह से है या फिर किसी और वजह से है। यह जानना इस लिए जरूरी है क्योंकि उस मरीज का इलाज फिर ढ़ूंढे गए कारण के मुताबिक ही किया जाता है।

मैं सोचता हूं कि थोड़ी चर्चा और कर लें। दोस्तो, मैं बात कर रहा था एक ऐसे कारण की जिस में लिवर में सूजन आने की जिस की वजह से पीलिया हो जाता है। अब देखा जाए तो इस जिगर की सूजन के भी वैसे तो कईं कारण हैं,लेकिन हम इस समय थोड़ा ध्यान देते हैं केवल विषाणुओं (वायरस) से होने वाले यकृतशोथ (लिवर की सूजन) की ओर, जिसे अंगरेज़ी में हिपेटाइटिस कहते हैं। अब इन वायरस से होने वाले हिपेटाइटिस की भी कईं किस्में हैं,लेकिन हम केवल आम तौर पर होने वाली किस्मों की बात अभी करेंगे----- हिपेटाइटिस ए जो कि हिपेटाइटिस ए वायरस से इंफैक्शन से होता है। ये विषाणु मुख्यतः दूषित जल तथा भोजन के माध्यम से फैलते हैं। इस के मरीजों में ऊपर बताए लक्षण बच्चों में अधिक तीव्र होते हैं। इस में कुछ खास करने की जरूरत होती नहीं , बस कुछ खाने-पीने में सावधानियां ही बरतनी होती हैं.....साधारणतयः ये लक्षण 6 से 8 सप्ताह ( औसतन 4-5 सप्ताह) तक रहते हैं। इसके पश्चात् लगभग सभी रोगियों में रोग पूर्णतयः समाप्त हो जाता है। हिपेटाइटिस बी जैसा कि आप सब जानते हैं कि दूषित रक्त अथवा इंफैक्टिड व्यक्ति के साथ यौन-संबंधों से फैलता है।


बात लंबी हो गई लगती है, कहीं उबाऊ ही न हो जाए, तो ठीक है जल्दी से कुछ विशेष बातों को गिनते हैं....

· अगर किसी को पीलिया हो जाए तो पहले चिकित्सक से मिलना बेहद जरूरी है जो कि शारीरिक परीक्षण एवं लेबोरेट्री जांच के द्वारा यह पता लगायेगा कि यह कहीं हैपेटाइटिस बी तो नहीं है अथवा किसी अन्य प्रकार का हैपेटाइटिस तो नहीं है।

· इस के साथ ही साथ रक्त में बिलिर्यूबिन (Serum Bilirubin) की मात्रा की भी होती है ---दोस्तो, यह एक पिगमैंट है जिस की मात्रा अन्य लिवर फंक्शन टैस्टों (Liver function tests which include SGOT, SGPT and of course , Serum Bilirubin) के साथ किसी व्यक्ति के लिवर के कार्यकुशल अथवा रोग-ग्रस्त होने का प्रतीक तो हैं ही, इस के साथ ही साथ मरीज के उपचार के पश्चात् ठीक होने का भी सही पता इन टैस्टों से ही चलता है।

· इन टैस्टों के बाद डायग्नोसिस के अनुसार ही फिर चिकित्सक द्वारा इलाज शुरू किया जाएगा। कुछ समय के पश्चात ऊपर लिखे गए टैस्ट या कुछ और भी जांच करवा के यह सुनिश्चित किया जाता है कि रोगी का लिवर वापिस अपनी सामान्य अवस्था में किस गति से आ रहा है।

· दोस्तो, जहां तक हिपेटाइटिस बी की बात है उस का इलाज भी पूरा करवाना चाहिए। अगर किसी पेट के विशेषज्ञ ( Gastroenterologist) से परामर्श कर लिया जाए तो बहुत ही अच्छा है। यह वही पीलिया है जिस अकसर लोग खतरनाक पीलिया अथवा काला पीलिया भी कह देते हैं। इस बीमारी में तो कुछ समय के बाद ब्लड-टैस्ट दोबारा भी करवाये जाते हैं ताकि इस बात का भी पता लग सके कि क्या अभी भी कोई दूसरा व्यक्ति मरीज़ के रक्त के संपर्क में आने से इंफैक्टेड हो सकता है अथवा नहीं। ऐसे मरीज़ों को आगे चल कर किन तकलीफ़ों का सामना करना पड़ सकता है, इस को पूरी तरह से आंका जाता है।

बात थोड़ी जरूर हो गई है, लेकिन शायद यह जरूरी भी थी। दोस्तो, हम ने देखा कि चमत्कारी दवाईयां लेने से पहले अपने चिकित्सक से बात करनी कितनी ज़रूरी है और बहुत सोचने समझने के पश्चात् ही कोई निर्णय लें-----अपनी बात को तो, दोस्तो, मैं यहीं विराम देता हूं लेकिन फैसला तो आप का ही रहेगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति जड़ी –बूटियों द्वारा ही अपना इलाज करवाना चाहता है तो भी उसे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञों से विमर्श करने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए।

दोस्तो, यार यह हमारी डाक्टरों की भी पता नहीं क्या मानसिकता है.....मकर-संक्रांति की सुहानी सुबह में क्या बीमारीयों की बातें करने लग पड़ा हूं....आप को अभी विश भी नहीं की...................

आप सब को मकर-संक्रांति को ढ़ेरों बधाईयां .......आप सब इस वर्ष नईं ऊंचाईंयां छुएं और सदैव प्रसन्न एवं स्वस्थ रहें !!

Sunday, January 13, 2008

सर्दी लग जाने पर क्या करें ?

सर्दी लग जाने पर क्या करें ?

दोस्तो, इस मौसम में तो लगता है हर कोई ठंड लग जाने से हुई खांसी जुकाम से परेशान है। शीत लहर अपने पूरे यौवन पर है। इस से बचने एवं साधारण उपचार पर चलिए थोड़ा प्रकाश डालते हैं..........

  • · इस मौसम में तो लोग खांसी-जुकाम से परेशान हो जाते हैं।

ठंड के मौसम में वैसे भी हम सब की इम्यूनिटी (रोग से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता) कम होती है। ऊपर से इन तकलीफों से संबंधित विषाणु (विशेषकर वायरस) खूब तेज़ी से फलते-फूलते हैं। ज्यादा लोगों को पास पास एक ही जगह पर रहने से अथवा एकत्रित होने से खांसी एवं छींकों के साथ निकलने वाले वायरस (ड्रापलैट इंफैक्शन) एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को जल्दी ही अपनी चपेट में ले लेते हैं।

  • · अब प्रश्न यही उठता है कि इस से बचें कैसे....क्या कुछ विशेष खाना चाहिए ..

इस से बचे रहने का मूलमंत्र तो यही है कि आप पर्याप्त एवं उपर्युक्त कपड़े पहन कर ठंडी से बचें। ऐसे कोई विशेष खाध्य पदार्थ नहीं हैं जिससे आप इस से बच सकें। आप को तो केवल शरीर की इम्यूनिटि बढ़ाने के लिए सीधा-सादा, संतुलित आहार लेना चाहिए--- इस से तरह तरह की दालों, साग, सब्जियों, मौसमी फलों , आंवले इत्यादि का प्रचुर मात्रा में सेवन आवश्यक है।

  • · लोग अकसर इन तकलीफों में स्वयं ही एंटीबायोटिक दवाईयां लेनी शुरू कर देते हैं.....क्या यह ठीक है ??

सामान्यतयः इन मौसमी छोटी मोटी तकलीफों में ऐंटीबायोटिक दवाईयों का कोई स्थान नहीं है। अगर यह खांसी –जुकाम बिगड़ जाए तो भी चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही दवाईया लें।

  • · इस अवस्था में पहले तो लोग घरेलु नुस्खों से ही काम चला लिया करते थे और वे स्वस्थ भी हो जाया करते थे।

ये घरेलु नुस्खे आज भी उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले हुया करते थे। इस में मुलहट्ठी चूसना, चाय में एक चुटकी नमक डाल कर पीना, नींबू और शहद का इस्तेमाल, भाप लेना, नमक वाले गर्म पानी से गरारे करना शामिल हैं। ध्यान रहे कि भाप लेते समय पानी में कुछ भी डालने की आवश्यकता नहीं है।

  • · घरेलु नुस्खों के साथ-साथ और क्या करें ?

हां,हां, यह बहुत जरूरी है कि रोगी को उस के स्वाद एवं उपलब्धता के अनुसार खूब पीने वाले पदार्थ देते रहें, मरीज पर्याप्त आराम भी लें। बुखार एवं बदन टूटने के लिए दर्द निवारक टेबलेट ले लें।

  • · नन्हे-मुन्ने शिशुओं का नाक को अकसर इतना बंद हो जाता है कि वे मां का दूध तक नहीं पी पाते ...

ऐसा होने पर यह करें कि एक गिलास पानी में एक चम्मच नमक डाल कर उबाल लें। फिर उसे ठंडा होने दें। बस हो गई तैयार आप के शिशु के नाक में डालने की दवा। आवश्यकतानुसार इस की 3-4 बूंदें शिशु के नाक में डालते रहें जिस से उस के नाक में जमा हुया रेशा ( dried-up secretions) नरम होकर छींक के साथ बाहर आ जाएगा और शिशु का नाक खुल जाएगा। वैसे तो इस तरह की नाक में डालने की बूंदें (सेलाइन नेज़ल ड्राप्स) आप को कैमिस्ट की दुकान से भी आसानी से मिल सकती हैं।

  • · कईं बार जब जुकाम से पीड़ित मरीज़ अपनी नाक साफ करता है तो खून निकल आता है जिससे वह बंदा बहुत डर जाता है, ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए ...

ज्यादा जुकाम होने की वजह से भी सामान्यतयः नाक को साफ करते समय दो-चार बूंदें रक्त की निकल सकती हैं। लेकिन ऐसी अवस्था में किसी ईएऩटी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श कर ही लेना चाहिए।

  • · ऐसा कौन सी अवस्थाएं हैं जिन में कान-नाक-गला विशेषज्ञ से संपर्क कर लेना चाहिए...

खांसी जुकाम से पीड़ित मरीज को अगर कान में दर्द है, सांस लेने में कठिनाई हो रही है, गले में इतन दर्द है कि थूक भी नहीं निगला जा रहा, गले अथवा नाक से खून निकलने लगे,आवाज़ बैठ जाए, खांसी की आवाज़ भी अगर बदली सी लगे, खांसी-जुकाम से आप को तंग होते हुए अगर सात दिन से ज्यादा हो जाये अथवा यह तकलीफ़ आप को बार-बार होने लगे------इन सब अवस्थाओं में ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिलें।

  • · लोग अकसर थोड़ी बहुत तकलीफ होने पर ही नाक में डालने वाली दवाईयों तथा खांसी की पीने वीली शीशीयां इस्तेमाल करनी शुरू कर देते हैं......

नाक में डालने वाली दवाईयों तथा नाक खोलने के लिए उपयोग किए जाने वाले इंहेलर का भी चिकित्सक की सलाह के बिना पांच दिन से ज्यादा उपयोग न करें। इन को लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से और भी ज्यादा जुकाम होने का डर बना रहता है। रही बात खांसी की शीशीयों की, बाज़ार में उपलब्ध ज्यादातर खांसी की इन दवाईयों का इस अवस्था में कोई उपयोग है ही नहीं।

  • · कान में दर्द तो आम तौर पर सभी को कभी कभार हो ही जाता है न......इस में तो कोई खास बात नहीं है न ?

कान में दर्द किसी सामान्य कारण (जैसे मैल वगैरह) से है या कान के भीतरी भागों में इंफैक्शन जैसी किसी सीरियस वजह से है, इस का पता ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिल कर लगाना बहुत ज़रूरी है। विशेषकर पांच साल से छोटे बच्चों में तो इस का विशेष ध्यान रखें क्योंकि ऐसी इंफैक्शन कान के परदे में 24 से 48 घंटों के अंदर ही सुराख कर सकती है।

Saturday, January 12, 2008

आप को आखिर कैमिस्ट से बिल मांगते हुए इतनी झिझक क्यों आती है ?


आप भी न्यूज़ मीडिया में अकसर नकली दवाईयों की खेप पकड़ने की खबरें देखते-सुनते रहते हैं , लेकिन अभी भी आप यही समझते हैं कि ये दवाईयों आप तक तो पहुंच ही नहीं सकतींतो, क्या आप नकली-असली में भेद जानने की काबलियत हासिल करना चाहते हैंअफसोस, दोस्त, मैं आप के जज़बात की कद्र करता हूं लेकिन मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आप कितनी भी कोशिशों के बावजूद ऐसा कर नहीं पाएंगेदोस्तो, हमें चिकित्सा के क्षेत्र में इतने साल हो गएयह काम अभी तक हम से भी नहीं हो सका !! तो फिर आप यही सोच रहे हैं कि आखिर करें तो करें क्या ---खाते रहे ऐसी वैसी दवाईया ? आखिर क्या करे आम बंदा ?-----दोस्तो, इस विषम समस्या से जूझने का केवल एक ही तरीका जो मैं समझ पाया हूं वह यह है कि आप कैमिस्ट से चाहे दस रूपये की भी दवाई लें,आप उस से बिल मांगने में कभी भी झिझक महसूस करें, प्लीज़आप यह समझ कर चलें कि जब आप बिल की मांग करेंगे तो आप को दवाई भी असली ही मिलेगी----नकली दवाई तो मिलने का फिर सवाल ही नहीं उठता,क्योंकि कैमिस्ट को उस बिल में दवाई के बारे में पूरा ब्यौरा देना पड़ता हैअगर हम इतनी सी सावधानी बरत लेंगे तो हमें पास की किसी बस्ती में बनी दवाईयों खरीदने से भी निजात मिल जाएगी


एक बात और जिस का विशेष ध्यान रखें वह यह है कि बसों वगैरह में जो सेल्स-मैन दर्द-निवारक दवाईयों के पत्ते बेचने आते हैं , उन से कभी भी ये दवाईयां खरीदेंचाहे ये सेल्समैन किसी IIM institute से नहीं निकले होते, फिर भी इन बंदों की salesmanship की दाद दिए मैं नहीं रह सकता----ठीक वही बात, दोस्तो, कि वे तो बिना बालों वाले को भी कंघी बेच डालें ! फिर भी मुझे,दोस्तो, ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा कि ये बलाग्स लिखने-पढ़ने वाले उन की बातों में सकते हैंलेकिन फिर भी मैं यह सब लिख रहा हूं ताकि आप के माध्यम से यह जानकारी आम इंसान तक पहुंच सके


दोस्तो, एक विचार जो मुझे कुछ दिनों से परेशान कर रहा है ,वह यह है कि कहीं आप को मेरी posts पढ़ कर यह तो नहीं लगता कि ये सब छोटी छोटी बातें जो मैं अकसर उठाता रहता हूं, यह तो सब को पहले ही से पता हैं..........दोस्तो, मेरा तो बस इतना सा तुच्छ प्रयास है कि ठीक है पता हैं तो अब इन को प्रैक्टीकल शेप दीजिए ----और अपने आसपास भी इन छोटी छोटी दिखने वाली बातों के प्रति जनचेतना पैदा करेंबस, दोस्तो मेरे पास यही छोटी छोटी बातें ही हैं-----जिस बंदे ने बस अपनी सारी ज़िंदगी इन छोटी-छोटी बातों के प्रचार-प्रसार के नाम लिख दी है, उस से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ??।


दोस्तो, आप से एक रिक्वेस्ट है कि कृपया मुझे अपनी मेल कर के अथवा अपनी टिप्पणी/ feedback में यह भी लिखें कि इस बलाग के माध्यम से किन मुद्दों को छूया जाएवैसे तो मैं यह स्पष्ट कर ही दूं कि मैं कोई ऐसा तीसमार खां भी नहीं हूं---बस जो दो बातें पता हैं उन्हें आप सब से शेयर कर के अच्छा लगता है, बस और कुछ नहींबाकी सब बातें तो मैंने आप सब से सीखनी हैं..................obviously in this wonderful platform of blogging…..where we understand, share and learn from each other’s wisdom and experience.

Thursday, January 10, 2008

स्वप्नदोष जब कोई दोष है ही नहीं तो !!

दोस्तो, क्या आपने यौवन की दहलीज़ पर पांव रख रहे अपने बेटे की आंखों में एक अजीब-सी बेचैनी का तूफान देख कर कभी उसे यह कहने की जरूरत महसूस की है कि स्वप्नदोष (वही जिसे इंगलिश में हम लोग Nightfall भी कह दिया करते हैं)कोई दोष-वोष नहीं है, बस तुम इस के बारे में बिलकुल सोचा मत करो, सब कुछ समय के साथ ठीक हो जाएगा। Why don't you tell him that these 'night falls' are so common and almost a natural phenomenon !! उसे क्यों नहीं हम पूरी तरह एक बात समझा देते कि देखो, यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा, ऐसा अकसर इस उम्र में होता ही है, जब मैं तुम्हारी उम्र का था,तो मैं भी इस अवस्था से गुज़र चुका हूंदोस्तो, अपनी उदाहरण दे कर बताना बेहद जरूरी है----क्योंकि तब आप का बेटा आप से बेहतर रिलेट करने लगता है

मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई कि हम इतना पढ़े-लिखे हुए लोग भी इस मामले में क्यों चूक जाते हैं। क्यों लेते हैं हम कुछ चीज़ों को ---just taken for granted !!

जी नहीं, यह बात बहुत महत्वपूर्ण है जो कि आप ही अपने बेटे को दुनिया में सब से अच्छे ढंग से बता सकते हैं, दूसरा कोई नहीं ----क्योंकि वह आप पर पूरा भरोसा करता है। शायद हमारा समय कुछ और था---हम लोगों की अपने बड़ों के साथ कहां इतनी ओपननैस थी, हम लोग ---शायद आप को भी कुछ कुछ याद होगा--तो बस यह सब बातें सोच सोच कर खुद मन ही मन कईं साल परेशान रहते थे। अकसर युवावस्था की दहलीज पर खड़े ये बच्चे अपने शरीर में होने वाले विभिन्न तरह के बदलाव( night-fall भी उन्हीं में से एक है, शेष के बारे में भी आप और हम अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन उस बच्चे से भी उस के मानसिक स्तर के अनुसार बात तो कर लीजिए) देख कर बौखला से जाते हैं कि पता नहीं मेरे साथ ही यह सब क्यों हो रहा है।

और, ये जो खानदानी नीम-हकीम वगैरह जगह जगह बैठे हुए हैं ,ये तो इस समस्या (वैसे तो यह कोई समस्या है ही नहीं,अगर एक बार समझ में आ जाए तो)--चलिए, समस्या कहते ही नहीं, मुद्दा कहते हैं...अब तो ठीक है........वे इस मुद्दे को अपने इश्तिहारों से और भी कंप्लीकेट कर के रखे हुए हैं। इतने अजीब तरह से अपनी मशहूरी करते हैं और अपने कुछ इस तरह के विज्ञापन छपवा कर इतनी strategic जगहों पर इन्हें चिपका देते हैं या बंटवा देते हैं कि टीन-एजर्रस का इन की दिमाग खराब करने वाली भाषा के जाल से बचना मुश्किल हो जाता है। और देर-सवेर यह निर्बोध किशोर इन के चंगुल में फंस जाते हैं। मेरा एक मित्र मुझे बता रहा था कि उस के पास एक व्यक्ति अपने 19-20 साल के बेटे को ले कर आया जो कि इन झोलाछाप नीम-हकीमों के चक्कर में फंस कर अपने योनअंगों की छोटीमोटी इंफैक्शन( और वह भी वास्तविक कम, काल्पनिक ज्यादा) से निजात पाने के लिए70-80 हज़ार रूपये धीरे-धीरे मां-बाप से छुप कर इस क्वैक को दे चुका था---मेरा वह मित्र skin and V.D specialist है, वह कह रहा था कि उसे केवल कुछ दिनों के लिए दवाईयां दीं, थोड़ी साफ-सफाई के बारे में अच्छी तरह से बता दिया जिस से वह बिल्कुल ठीक हो गया।

हां,तो दोस्तो, अपनी बात हो रही थी--स्वपन दोष की.......सीधी सी बात है कि दोस्तो जब कोई मटकी भर जाएगी तो थोड़ी छलकेगी ही --- वही बात यहां है कि किशोरावस्था के दौरान जब वीर्य की मटकी शरीर में भर जाती है तो वह कभी कभी छलक जाती है......that's all ! और इन बच्चों के लिए यह इतना बडा़ मुद्दा बना रहता है--- इतना बडा़ कि वे अपने कैरियर के हिसाब से इतने महत्वपूर्ण वर्षों में इस छोटी की वजह के कारण कईं बार पूरी तरह अपनी पढ़ाई में कंसैनटरेट ही नहीं कर पाते

हम कईं बार यह भी समझ लेते हैं कि बच्चे आज कल इतने एडवांस हैं, वे सब बातें जानते ही होंगे। लेकिन शायद नहीं...अपने दोस्तों से तो उन्हें भ्रामक या और भी अधकचरी जानकारी ही मिलेगी जिससे वे और भी उलझ कर रह जाएंगे। इंटरनैट पर सर्च कर के बहुत कुछ इस विषय से संबंधित भ्रांतियां उखाड़ फैंकने के लिए उन को मिल सकता है, लेकिन आप का बेटा तो बस आप के ऊपर ही सारे जहां से ज्यादा विश्वास करता है। इसलिए आप के द्वारा की गई बात बेहद कारगार सिद्ध होगी। आप एक बार इस विषय के बारे में संवाद छेड़ कर तो देखिए.........लेकिन यह सब जल्दी ही कर लीजिए। अभी भी कोई ब्लाक रास्ते में आ रहा है तो कम से कम मेरी इस पोस्टिंग को उसे पढ़वा तो दें, उसे तसल्ली सी हो जाएगी।

मेरा भी एक टीनएज बेटा है, उसे मैं यह बात कईं बार खुले तौर पर समझा चुका हूं....और कुछ कुछ अंतराल के बाद ऐसे ही थोड़ी दोहरा सी देता हूं। कईं बार जब मैं जब उसे चिंता में डूबा देखता हूं , तो उस से पूछता हूं कि क्या उसे ये बातें तो परेशान नहीं कर रहीं----तो वह तुरंत जवाब दे देता है----पापा, उस के बारे में तो आप कोई टेंशन न रखा करो, मैं इन सब बातों को समझता हूं, जानता हूं, मुझे ऐसा वैसा कोई फिक्र नहीं है। दोस्तो, यह बात एक ही बार कहने से नहीं चलेगा, समय समय उस की मानसिक स्थिति के अनुसार इस बात को बड़ी इंफारमल तरीके से दोहरा देना बेहद जरूरी है।

साथ साथ इन बच्चों को यह भी संदेश देना होगा कि सात्विक खाना खाएं, जंक फूड से दूरी बनाए रखें, पान-मसालों, गुटखों को पास न फटकने दें, रात को खाना सोने से कम से कम दो घंटे पहले खा लिया करें, योगाभ्यास(प्राणायाम् भी) एवं ध्यान किया करें और सब से जरूरी प्रार्थना किया करें----इस में बेहद शक्ति है। इस के इलावा कोई और भी समस्या है तो क्वालीफाईड डाक्टर हैं , उन की सलाह लेने में बेहतरी है।
तो क्या मैं यह इत्मीनान कर लूं कि आज शाम को आप अपने बेटे के दिल को थोड़ा टटोलेंगे ?? ....लेकिन प्लीज़ ये बातें करिए अकेले में ही।
So, good luck !!---Just go ahead !!

Monday, January 7, 2008

हेयर-ड्रेसर के पास जाने से पहले.....

दोस्तो, मैं अकसर सोचता हूं कि हम बड़ी बड़ी बातों की तरफ तो बहुत ध्यान देते हैं लेकिन कईं बार बहुत महत्वपूर्ण बातें जो देखने में बिल्कुल छोटी मालूम पड़ती हैं, उन को जाने-अनजाने में इग्नोर कर देते हैं। ऐसी ही एक बात मैं आप सब से शेयर करना चाहता हूं कि हम हेयर-ड्रेसर के पास अपनी किट ले कर जाने को कभी सीरियस्ली लेते नहीं है, पता नहीं झिझकते हैं या फिर भी....पता नहीं क्या।

दोस्तो, किट से मेरा भाव है कि हमें चाहिए अपनी एक सिज़र, एक-दो कंघीयां व एक रेज़र हर बार हेयर-ड्रेसर के पास अपना ही लेकर जाना चाहिए। दोस्तो, मैं कोई अनड्यू पैनिक क्रियेट करने की बिल्कुल कोशिश नहीं कर रहा हूं, मुझे तो यह पिछले 15 सालों से लग रहा है कि यह आज के समय की मांग है। दोस्तो, आप ज़रा सोचें कि हम सब लोग अपने घर में भी एक दूसरी की कंघी इस्तेमाल नहीं करते----घर में आया कोई मेहमान आप की कंघी इस्तेमाल कर ले,तो इमानदारी से जवाब दीजिए कोफ्त सी होने लगती है न। तो फिर, हेयर-ड्रेसर के यहां हज़ारों सिरों के ऊपर चल चुकी उस कंघी से हम परहेज़ करने की कोशिश क्यों नहीं करते। प्लीज़ सोचिए !! अब करते हैं, रेज़र की बात----मान लिया कि ब्लेड तो वह बदल लेता है, लेकिन दोस्तो अगर किसी कंटमर को कट लगा है , तो इस बात की भी संभावना रहती है कि थोड़ा-बहुत रेज़र( उस्तरे) पर भी लगा रह गया हो। बातें तो ,दोस्तो, छोटी छोटी हैं लेकिन जिस तरह से एड्स और हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियों ने आजकल अपना मुंह फाड़ रखा है तो एक ही बात ध्यान आती है----पूरी तरह से सावधानी रखना ही ठीक है। अब जब लोग शेव करवा रहे हैं या कटिंग करवा रहे हैं तो जरूरी नहीं हर कट हमें दिखे, कुछ कट ऐसे भी होते हैं जो हमें दिखते नहीं हैं..अर्थात् माइक्रोकट्स। जहां तक हो सके शेव तो स्वयं ही करने की आदत होनी चाहिए। कंघी, उस्तरे की बात कर रहे थे, तो पता नहीं किस को कौन सी स्किन इंफैक्शन है, क्या है , क्या नहीं है----ऐसे में एक यह सब चीज़े शेयर करना मुसीबत मोल लेने के बराबर नहीं तो और क्या है। तो, सीधी सी बात है कि अपनी किट लेकर ही हेयर-ड्रेसर के पास जाया जाए। आप को शायद एक-दो बाहर थोड़ा odd सा लगे, लेकिन फिर सब सामान्य सा लगने लगता है। दोस्तो, मैं पिछले लगभग 15 सालों से हेयर-ड्रेसर के पास अपनी किट ले कर जाता हूं, और बहुत से अपने मरीज़ों को भी ऐसा करने के लिए कहता रहता हूं। क्या आप भी मेरी बात मानेंगे ?
जो मैंने बात कही है कि शेव वगैरह तो स्वयं घर पर ही करने की आदत डाल लेनी चाहिए---दोस्तो, चिंता नहीं करें, इस से आप के हेयर-ड्रेसरों के धंधे पर कुछ असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि वे तो पहले से ही आज की युवा पीढ़ी के नए-नए शौक पूरा करने में मशगूल हैं-----हेयर ब्लीचिंग, हेयर पर्मिंग, हेयर सटरेटनिंग......पता नहीं क्या क्या आज के यह नौजवान करवाते रहते हैं, लेकिन सब से ज्यादा दुःख तो उस समय होता है जब कोई 18-20 साल का नौजवान अपना फेशियल करवा रहा होता है।
दोस्तो, समय सचमुच बहुत ही ज्यादा बदल गया है ...अपने बचपन के दिन याद करता हूं तो एक लड़की की बड़ी सी कुर्सी पर एक लकड़ी के फट्टे पर एक नाई की दुकान पर अपने आप को बैठे पाता हूं जिस की सारी दीवारें मायापुरी की पत्रिका में से धर्म भाजी की फोटों की कतरनों से भरी रहती थीं और उस नाई को एक चमड़े की बेल्ट पर अपना उस्तरा तेज़ करते देख कर मन कांप जाता था कि आज खैर नहीं......लेकिन उस बर्फी के लालच में जो पिता जी हर बार हजामत के बाद साथ वाली हलवाई की दुकान से खरीद कर खिलवाते थे,यह सब कुछ सहन करना ही पड़ता था, और खास कर के वह अजीबोगरीब मशीन जो इस तरह से चलती थी मानो घास काटने की मशीन हो। बीच बीच में उस मशीन के बीच जब बाल अटक जाते थे, तो बडा़ दर्द भी होता था, और एक-दो अच्छे बड़े कट्स कटिंग के दौरान हमेशा न लगें हों, ऐसा तो मुझे याद नहीं.
वैसे दोस्तो, अब लगता है कि वही टाइम अच्छा था, न किसी बीमारी का डर, न कोई किट साथ लेकर जाने का झंझट......लेकिन दोस्तो, अफसोस, अब न तो वह नाई रहा, न ही उस का साज़ो-सामान और न ही पिता जी। लेकिन आज आप से बतियाने के बहाने देखिए मैंने अपने बचपन को फिर से थोड़ा जी लिया....................आप भी कहीं कुछ ऐसी ही यादों में तो नहीं खो गए---चलिए,खो भी गए हैं तो अच्छा ही है, वैसे भी मैं अकसर हमेशा कहता रहता हूं ............
Enjoy the little things in life, someday you will look back and realise that those were indeed the big things !!!!!...........................................What do you say ??

Ok, friends, Good night!!

इन ट्रांस्फैटस से बच कर रहने में ही है समझदारी !!

समोसे, जलेबीया, अमरतियां, गर्मागर्म पकोड़े( भजिया), वड़ा-पाव वाले वड़े, आलू की टिक्कीयां,पूरी छोले, चने-भटूरे,नूडल्स........दोस्तों, लिस्ट बहुत लंबी है, कहीं पढ़ कर हमारे मुंह में इतना पानी भी न आ जाए कि अंतरजाल में बाढ़ ही आ जाए....वैसे भी लगता है कि इतनी मेहनत क्यों करें.....सीधी बात करते हैं कि हमारे यहां ये जो भी फ्राइड वस्तुएं बिकती हैं न, ये ट्रांसफैट्स से लैस होती हैं। वैसे मेरी तरह से आप को भी क्या नहीं लगता कि भई ये सब तो हम बरसों से अच्छी तरह खाते आ रहे हैं, इस के बारे में पता नहीं अब मीडिया को इतना ज्यादा लिखने की क्या सूझी है। जी हां, जब बीस-तीस साल की आयु में लोग दिल के रोगों के शिकार हो रहे हैं, मोटापा बेलगाम बढ़े जा रहा है, जिस की वजह से छोटी उम्र में ही लोग डायबिटिज़ जैसी बीमारियों की चपेट में आते जा रहे हैं, तो मीडिया कैसे हाथ पर हाथ रख कर बैठा रहे !!---- दोस्तो, इन ट्रांसफैट्स की वजह से हमारे शरीर में लो-डैंसिटि लाइपोप्रोटीन अथवा बुरे कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ जाता है, जिस के कारण यह हमारी रक्त की नाड़ियों में जमने लगता है और दिल की बीमारियों को खुला निमंत्रण दे देता है।
Transfats could raise levels of low -density lipoproteins or Bad cholesterol in the body and lead to clogged arteries or heart disease.

दोस्तो, कैनेडा का पश्चिमी शहर कैलगैरी कैनेडा का पहला शहर बन गया है जिस ने होटलों, रेस्तराओं में इस्तेमाल किए जाने वाले घी में ट्रांसफैट्स की मात्रा से संबंधित कड़े नियम बना दिए हैं और खाने में उपयोग होने वाले तेल में ट्रांसफैटस की मात्रा दो फीसदी से कम होने के नियम बना दिए हैं। उन्होंने तो साफ कह दिया है कि या तो अपने यहां इस्तेमाल होने वाले तेल बदल लो, नहीं तो फलां-फलां ताऱीख के बाद इन आदेशों की अवज्ञा करने वाले होटलों पर ताला लटका दिया जाएगा।
हमारे यहां तो बस नालेज अध-कचरी होने की वजह से लोगों को घुमा कर रखना कोई मुश्किल काम नहीं है----Thanks to the over-zealous advertising of these products.....और एक और फैशन सा चल पड़ा है, कुछ दिन पहले मैं चिप्स वगैरह के पैकेट पर यह भी बड़ा-बड़ा लिखा पढ़ रहा था.....contains NO Transfats!!.....यह सब ग्राहक को खुश करने के तरीके नहीं हैं तो और क्या हैं, इससे क्या ये पैकेट्स नुकसानदायक से स्वास्थ्यवर्धक बन जाएंगे....बिल्कुल नहीं। ये तो जंक फूड हैं और जंक ही रहेंगे----चाहे ट्रांसफैट्स जीरो हों या कुछ हो।


दोस्तो, अब हमारे यहां कि शिचुएशन देखिए--- कभी आप इन पकोड़े बनाने वालों, जलेबीयां बनाने वालों की कढ़ाही में सुबह से उबल रहे तेल की तरफ देखिए-----दोस्तो, ऐसा तेल हमारी सेहत को पूरी तरह बर्बाद करने में पूरा योगदान देता है......ट्रांसफैट्स की मात्रा के बारे में तो आप पूछो ही नहीं, उस के ऊपर तो यह रोना भी है कि उस तेल की क्वालिटी क्या है, उस में पता नहीं कौन कौन सी मिलावटें हुई हुईं हैं.........दोस्तो, हमारे यहां कि समस्याएं निःसंदेह बेहद जटिल हैं, क्या हम ऐसे किसी कानून की उम्मीद कर सकते हैं जो इन हलवाईयों, रेहड़ी वालों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तेल की क्वालिटी को नियंत्रित कर सके----------मुझे तो कोई उम्मीद लगती नहीं ,, बस दोस्तो उम्मीद है तो आप ही से --क्योंकि अगर हम so-called intellactuals किसी बात से कन्विंस हो जाते हैं और पहले हम स्वयं इन नुकसानदायक खाध्य पदार्थों से परहेज़ करने लगेंगे तो हम आस पास के लोगों को भी कंविंस कर पाएंगे। दोस्तो, समय वह आ गया कि हमें बाज़ार के तेलों से बनी इन वस्तुओं से दूरी बना कर के रखनी चाहिए...............हां, तीज-त्योहारों पर इस कसम को कभी कभी तोड़ने के बारे में आप क्या सोच रहे हैं ??-----Oh,sorry, यह भी मैं क्या लिख गया ----इन तीज-त्योहारों की जगह आप दीवाली-दशहरा सी पढ़े क्योंकि अगर हम तीज-त्योहारों की बात करेंगे तो भी मैं और आप आए दिन समोसे, टिक्के के डोने हाथ में लिए रखेंगे क्यों कि हमारा देश तो वैसे ही तीज-त्योहारों का देश है-----यहां तो हर रोज कोई न कोई पर्व होता है...........हर दिन दीवाली है ।

Saturday, January 5, 2008

क्यों लेते हैं मुहांसों को इतनी सीरियस्ली ?

इस में लगता यही है कि ये कंपनियां जो कुछ ही दिनों में मुहांसे गायब करवाने के सपने दिखाती हैं न वे ही हमारे युवाओं द्वारा इन मुहांसों को इतना सीरियल्सी लेने के लिए इतनी जिम्मेदार हैं। तो फिर, क्या करें- न लगाएं कोई भी क्रीम इन पर ?—क्या जरूरत है , यह तो दोस्तो आपने भी नोटिस किया होगा कि जो लोग इन पर जितनी ज्यादा ट्यूबें लगाते हैं, उन को ये उतना ही ज्यादा तंग करते हैं। इन को खत्म करने के लिए ज्यादा दवाईयां (एंटीबायोटिक दवाईयां) लेते रहने अथवा महंगी महंगी क्रीमें खरीद कर लगाने से ये बद से बदतर ही हो जाते हैं (क्योंकि आप सब तो साहित्य से बहुत जुड़े हुए हो ....वो एक शेयर है न कि जितना ज्यादा इलाज किया मर्ज बढ़ता चला गया....बस ठीक वैसे ही कुछ)।
दोस्तो, यह तो आप ने भी देखा होगा जब हम युवावस्था में प्रवेश करते हैं तो अकसर कुछ समय के लिए ये मुहांसे थोड़ा बहुत परेशान करते ही हैं......But then why don’t today’s youth take all these quite sportingly….it is all part of our growing up !! We don’t remember having taken any pill or having applied any cream for these innocent heads.
दोस्तो, इस हैड से मुझे ध्यान आया है कि कईं बार युवा इन को नाखुनों से फोड़ते रहते हैं, जिस से इन में कई बार पस पड़ जाती है अर्थात इंफैक्शन हो जाती है।और ये बड़े-बड़े काले से दिखने शुरू हो जाते हैं (Black heads) ऐसी कुछ परेशानी बार बार हो तो त्वचा रोग विशेषज्ञ से अवश्य संपर्क करना चाहिए।
और हां, केवल समाचार-पत्र में या टीवी के विज्ञापन देख कर कुछ भी इन के ऊपर लगा लेना, आफत मोल लेने के बराबर है। कईं बार तो मैं कुछ टीनएजर्स को इन के ऊपर स्टीरायड्स( steroids) मिली हुई क्रीमें बिना किसी डाक्टरी सलाह के लगाते हुए देख कर बहुत परेशान होता हूं।
जैसे अपने बड़े-बुजुर्ग हमेशा से कहते आए हैं न कि इन मुहांसों को मत फोड़ो, चेहरा साफ सुथरा रखो और ऐसी वैसी चालू किस्म की क्रीमों से चेहरे पर लीपा-पोती न करो, वे ठीक ही कह रहे हैं। ये जो आज कल छोटी उम्र से ही ब्यूटी पार्लर जाने का फैशन हो गया है न, यह भी एक तरह से परेशानी का बाईस ही है.....First of all, let’s give an opportunity for beauty to take form----only then one needs to temper with it. By the way, ideally speaking beauty needs no ornaments…..then why all these hassles?? Just pay attention to your diet and your thoughts…..be happy--- it is a sureshot recipe for glowing golden skin!!
दोस्तो, अपनी जो बात हो रही थी , वह तो अभी बीच में ही है। आम तौर पर पौष्टिक खाना न खाना एवं अपनी त्वचा की देखभाल न करने को मुहांसों का कारण बताया जाता है, लेकिन इन के पीछे कुछ ऐसे भी कारण होते हैं जिन को ऊपर कईं बार कोई कंट्रोल होता नहीं है। तो आईए कुछ ऐसे ही कारणों पर नज़र डालते हैं.....
The US National Women’s Health Information Centre offers this list of potential risk factors for acne (मुहांसे)---
· युवावस्था में प्रवेश करते समय कुछ हारमोनल बदलाव जो हमारे शरीर में होते हैं.
· महिलाओं में मासिक धर्म, गर्भावस्था एवं मासिक धर्म के बंद होने (मीनोपाज़) के दौरान होने वाले हारमोनल बदलाव
· कुछ दवाईयों की वजह से भी मुहांसों के होने की आशंका बढ़ जाती है, जैसे कि एपीलैप्सी एवं डिप्रेशन के इलाज के लिए दी जाने दवाईयां
· मुंह पर मेक-अप लगाने से भी मुहांसों से जूझना पड़ सकता है
· हैल्मेट वगैरह से होने वाली स्किन इरीटेशन ( अब यह पढ़ कर यंगस्टरस ये भी न समझें कि हैल्मेट न पहने का एक और बहाना मिल गया ---बिलकुल नहीं, आप हैल्मेट जरूर पहनिए, मुहांसे होंगे भी तो संभाल लेंगे।
· जिन युवाओं में मुहांसों की पारिवारिक हिस्ट्री होती है उन में भी इन मुहांसों का आशंका रहती है।

Friday, January 4, 2008

यह चक्कर आने का क्या चक्कर है ?

दोस्तो, यह चक्कर आना कोई बीमारी नहीं है, लेकिन यह किसी और रोग का एक लक्षण जरूर है। वैसे तो चक्कर आना कोई इतनी गंभीर बात है नहीं और यह आम तौर पर एक टेंपरेरी सी परेशानी होती है ,लेकिन अगर हमें इस के कारण का पता रहता है तो हम मुनासिब एक्शन ले सकते हैं----
चक्कर आने के आम कारण ये हैं---
-कान के अंदरूनी भाग में कोई इंफैक्शन या कान की कोई और बीमारी
-थकावट, तनाव या बुखार के चलते भी अकसर चक्कर आ जाता है
-ब्लड-शुगर कम होना भी चक्कर आने के कारणों में शामिल है-----------इस लिए कहते हैं न कि आज के युवाओं की सुबह नाशता स्किप करने की आदत बहुत खराब है।
-खून की कमी अथवा एनीमिया में भी चक्कर आ सकते हैं.
-डीहाइड्रेशन--- जब कभी हमें दस्त एवं उलटियां परेशान करती हैं,तो शरीर में पानी की कमी को ही डीहाइड्रेशन कहते हैं.
-सिर के ऊपर कोई चोट लगने से भी सिर घूमने लगता है
-दिल की अथवा सरकुलेटरी सिस्टम की कोई बीमारी
-दिमाग में स्ट्रोक हो जाना
-कुछ दवाईयों का साइड-इफैक्ट होने से भी सिर घूमने लगता है---तो,इसलिए अगर आप को चक्कर आ रहे हैं और आप ने कोई नई दवा लेनी शुरू की है, तो अपने डाक्टर से परामर्श जरूर कीजिए।

शुभकामऩाएं !!

Thursday, January 3, 2008

सांस की दुर्गंध----परेशानी !..........कोई तो रास्ता होगा इस से बचने का...

जी हां, जरूर है और वह भी बिल्कुल सस्ता, सुंदर और टिकाऊ। यह रास्ता,दोस्तो, यह है कि अगर हम अपने दांतों को रात में सोने से पहले भी ब्रुश करें और प्रतिदिन सुबह-सवेरे अपनी जुबान को जुबान साफ करने वाली पत्ती से साफ कर लें,तो यकीन मानिए हम सब इस दुर्गंध की परेशानी से बच सकते हैं। दोस्तो, हम अकसर देखते हैं कि अपने लोग यह साधारण से काम तो करते नहीं---महंगी महंगी माउथ-वाश की बोतलों के पीछे भागना शुरू कर देते हैं। यह तो दोस्तो वही बात है कि मैं दो दिन स्नान न करूं,और हस्पताल जाने से पहले अपने शरीर पर यू-डी-क्लोन या कोई और महंगा सा इत्र छिड़क लूं। दोस्तो, इस से पसीने की बदबू शायद कुछ घंटे के लिए दब तो जाएगी , लेकिन दूर कदापि न होगी। उस के लिए तो दोस्तो खुले पानी से स्नान लेना ही होगा। ठीक उसी तरह ---रात में दांत साफ करना व रोज सुबह सवेरे अपनी जुबान को पत्ती से साफ करना भी मुंह की महक को कायम रखने के लिए नितांत जरूरी है। दोस्तो, यह कोई नहीं बात नहीं है, अपने देश में तो जुबान को नित्य प्रतिदिन साफ करने की आदत तो हज़ारों साल पुरानी है। बस, कभी कभी हम ही सुस्ती कर जाते हैं।
दोस्तो, इस का रहस्य यह है कि अब यह सिद्ध हो चुका है कि हमारे मुंह में दुर्गंध पैदा करने वाले कीटाणु हमारी जुबान की कोटिंग (वही, सफेद सी काई, दोस्तो) में ही फलते फूलते हैं और अगर हम इस काई को रोज सुबह सवेरे साफ करते रहें तो फिर सारा दिन सांसें महकती रहेंगी। यहां एक बात और साफ करनी जरूरी है कि आज कल लोग पानमसाले को भी माउथ-फ्रैशनर के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं। यही खतरनाक है-इस प्रकार हम कई बीमारियों को मोल ले लेते हैं। अपनी वोह पुरानी वाल छोटी इलायची या सौंफ ही ठीक है। पानमसालों वगैरह के चक्कर में कभी न पड़ें। लेकिन एक बात का और भी ध्यान रखना जरूर है कि आप के मसूड़े एवं दांत स्वस्थ होने चाहिए ---क्योंकि अगर पायरिया है तो उस का इलाज करवाना भी बहुत जरूरी है क्योंकि पायरिया भी मुंह की दुर्गंध पैदा करने में बहुत ज्यादा जिम्मेदार है।

दोस्तो, मिठाइयों के ऊपर लगे चांदी के वर्क के बारे में आप क्या कहते हैं ?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

दोस्तो, इस के बारे में मेरा तो यह दृढ़ विश्वास यही है कि कुछ कुछ केसों में तो ये और कुछ भी हो, चांदी तो हो नहीं सकती। जिस जमाने में पनीर, दूध, दही तो हमें शुद्ध मिलता नहीं, ऐसे में मिठाईयों के ऊपर शुद्ध चांदी के वर्क लगे होने की खुशफहमी पालना भी मेरी नज़र में मुनासिब नहीं है। तो दोस्तो, मैंने इस समस्या से जूझने का एक रास्ता निकाल लिया है-- वैसे तो हम लोग मिठाई कम ही खाते हैं, लेकिन अगर यह सो-काल्ड चांदी के वर्क वाली मिठाई खाने की नौबत आती भी है तो पहले तो मैं चाकू से उस के ऊपर वाली परत पूरी तरह से उतार देता हूं। दोस्तों, कुछ समय पहले मीडिया में भी इसे अच्छा कवर किया जाता रहा है कि मिलावट की बीमारी ने इस वर्क को भी नहीं बख्शा ....कई केसों में इसे एल्यूमीनियम का ही पाया गया है। अब आप यह सोचें कि अगर यह एल्यूमीनियम का वर्क हम अपने शरीर के सुपुर्द कर रहे हैं तो यह हमारे गुर्दों की सेहत के साथ क्या क्या खिलवाड़ न करता होगा। इस लिए,दोस्तो, चाहे यह मिठाई महंगी से महंगी दुकान से खरीदी हो, मैं तो इस वर्क को खाने का रिस्क कभी भी नहीं लेता। आप भी कृपया आगे से ऐसी मिठाईयां खाने से पहले इस छोटी सी बात का ध्यान रखिएगा---दोस्तो, वैसे ही हमारे चारों इतनी प्रदूषण --जी हां, सभी तरह का-- फैला हुया है , ऐसे में चांदी के वर्क के चक्कर में न ही पड़ें तो ठीक है। यह तो हुई,दोस्तो, इन वर्कों की बात, तो इन में इस्तेमाल रंगों एवं फ्लेवरों की बात कभी फिर करते हैं।
Good morning, friends !!

Wednesday, January 2, 2008

क्या आप बाज़ार जूस पीने जा रहे हैं ?- इसे भी पढ़िए !!

दोस्तो, कुछ न कुछ बात हम डाक्टरों की जिंदगी में रोज़ाना ऐसी घट जाती है कि वह हमें अपनी कलम उठाने के लिए उकसा ही देती है। वैसे तो कईं बार ही ऐसा हो चुका है कि लेकिन आज भी सुबह ऐसा ही हुया---एक मरीज जिसमें खून की बहुत कमी थी, मैं उसे इस के इलाज के बारे में बता रहा था, जैसे ही मैं उसे खाने-पीने में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने लगा तो उस ने झट से कहा कि मैं तो बस रोज़ अनार का जूस पी लिया करूंगा। फिर उस को यह भी बताना पड़ा कि उस अकेले अनार के जूस के साथ-साथ उसे और भी क्या क्या खाना है....क्योंकि बाज़ार में बिकते हुए अनार के जूस के ऊपर कैसे भरोसा कर लूं.....मौसंबी एवं संतरे का जूस तो बाज़ार में ढंग से लोगों को मिलता नहीं, अनार के जूस का सपना देखना तो भई मुझे बहुत बड़ी बात लगती है।
दोस्तो, आप कभी जूस की दुकान को ध्यान से देखिए, उस ने जूस निकालने की सारी प्रक्रिया आप की नज़रों से दूर ही रखी होती है। कारण यह है कि उस ने उस गिलास में बर्फ के साथ ही साथ, चीनी की चासनी, थोडा़ बहुत रंग भी डालना होता है और यह सब कुछ जितना आप की नज़रों से दूर रहेगा, उतनी ही उसको आज़ादी रहेगी। मैं भी अकसर बाजार में मिलते जूस का रंग देख कर बड़ा हैरान सा हो जाया करता था ---फिर किसी ने इस पर प्रकाश डाल ही दिया कि कुछ दुकानदार इस में रंग मिला देते हैं--नहीं तो जूस में 10अनार के दानों का जूस मिला होने से भला जूस कैसे एक दम लाल दिख सकता है। दोस्तो, अब बारी है चासनी की, अगर हम ने बाजारी जूस के साथ साथ इतनी चीनी ही खानी है तो क्या फायदा। अब , रही बात बर्फ की...तो साहब आप लोग बाज़ारी बर्फ के कारनामे तो जानते ही हैं, लेकिन इस जूस वाले का मुनाफा बर्फ की मात्रा पर भी निर्भर करता है। तो फिर क्या करें...आप यही सोच रहे हैं न..क्या अब जूस पीना भी छोड़ दें....जरूर पीजिए, लेकिन इन बातों की तरफ ध्यान भी जरूर दीजिए.....वैसे अगर आप स्वस्थ हैं तो आप किसी फळ को अगर खाते हैं तो उस से हमें उस का जूस तो मिलता ही है, साथ ही साथ उस में मौजूद रेशे भी हमारे शरीर में जाते हैं,और इस के इलावा कुछ ऐसे अद्भुत तत्व भी हमें इन फलों को खाने से मिलते हैं जिन को अभी तक हम डाक्टर लोग भी समझ नहीं पाए हैं। हां, गाजर वगैरा का जूस ठीक है, क्योंकि आदमी वैसे कच्ची गाजरें कितनी खा सकता है। हां, अगर कोई बीमार चल रहा है तो उस के लिए तो जूस ही उत्तम है और अगर वह भी साथ साथ फलों को भी खाना चालू रखे तो बढ़िया है।
जूस का क्या है....कहने को तो बंबई के स्टेशनों के बाहर 2 रूपये में बिकने वाला संतरे का जूस भी जूस ही है---जिस में केवल संतरी रंग एवं खटाई का ही प्रयोग होता है। जितने बड़े बड़े टबों में वे ये जूस बेच रहे होते हैं अगर वे संतरे लेकर उस का जूस निकालना शुरू करें तो शायद एक पूरी घोड़ा-गाडी़ (संतरों से लदी हुई ) भी कम ही होगी।
आप क्या सोचने लग गए ??