tag:blogger.com,1999:blog-166004261029783202024-03-06T02:51:39.747+05:30हैल्थ टिप्सDr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-11349669062152017682008-04-06T05:21:00.005+05:302008-04-06T06:02:43.571+05:30इन ढाबे वालों से ऐसी उम्मीद न थी !<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHb8UTCS4sP3D1OGiPMqx1X3vf-gDRXES-i2Gi20VfA-gMPNMAwr_AAFD6IH-heij1cx3vUETcoghQTUwWf4gleYKw9mJGt4aeAobRohhLxf2j2I_O93w7SPhbwsEpnwVtpC7U3gK5k7E/s1600-h/dhaabe+ka+khana.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHb8UTCS4sP3D1OGiPMqx1X3vf-gDRXES-i2Gi20VfA-gMPNMAwr_AAFD6IH-heij1cx3vUETcoghQTUwWf4gleYKw9mJGt4aeAobRohhLxf2j2I_O93w7SPhbwsEpnwVtpC7U3gK5k7E/s320/dhaabe+ka+khana.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5185916634322778066" border="0" /></a><br /><p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><br /></span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >वैसे तो इस समय सुबह के पांच भी नहीं बजे और किसी भी लिहाज से खाने का समय नहीं है। लेकिन यह ढाबे वाली खबर देख कर मुझे पूरा विश्वास है कि आप की तो भूख ही छू-मंतर हो जायेगी। ले-देकर इन देश की जनता जनार्दन के पास पेट में दो-रोटी डालने के लिये एक ही तो ताज़ा, सस्ता और साफ़-सुथरा विकल्प था.....ढाबे का खाना।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >अकसर हम लोग जब भी कहीं बाहर हुया करते हैं तो कहते ही हैं ना कि चलो, ढाबे में ही चलते हैं क्योंकि यह बात हम लोगों के मन में विश्वास कर चुकी है कि इन ढाबों पर तो सब कुछ विशेषकर वहां मिलने वाली बढ़िया सी दाल( तड़का मार के </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!)….</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >तो ताज़ी मिल ही जायेगी............लेकिन इस रिपोर्ट ने तो उस दाल का ज़ायका ही खराब कर दिया है ...........आप ने भी कभी सोचा न होगा कि इस तरह के रासायन ढाबों में भी इस्तेमाल होते हैं ताकि शोरबा स्वादिष्ट बन जाये।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >वो अलग बात है कि मुझे यह पढ़ कर बेहद दुःख हुया क्योंकि मेरे विश्वास को ठेस लगी है.....मुझे ही क्या, सोच रहा हूं कि इस देश की आम जनता की पीठ में किसी ने छुरा घोंपा है.......लेकिन इस हैल्थ-रिपोर्ट को देख कर खुशी इसलिये हुई कि इस में सब कुछ बहुत बैलेंस्ड तरीके से कवर किया गया है। बात सीधे सादे ढंग से कहने के कारण सीधी दिल में उतरती है। शायद इसीलिये मैंने भी आज से एक फैसला किया है....आज से ढाबे से लाई गई सब्जी</span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >/</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >भाजी जहां तक हो सके नहीं खाऊंगा....हां, कहीं बाहर गये हुये एमरजैंसी हुई तो बात और है, लेकिन वो ढाबे के खाने का शौकिया लुत्फ लूटना आज से बंद, वैसे मैं तो पहले ही से इन की मैदे की बनी कच्ची-कच्ची रोटियां खा-खा कर अपनी तबीयत खराब होने से परेशान रहता था, लेकिन इन के द्वारा तैयार इस दाल-सब्जी के बारे में छपी खबर ने तो मुंह का सारा स्वाद ही खराब कर दिया है.....सोचता हूं कि उठ कर ब्रुश कर ही लूं </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" > <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><o:p> </o:p></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-60293969116156444872008-04-04T07:12:00.001+05:302008-04-04T07:15:29.342+05:30पानी साफ ही तो है.......क्या फर्क पड़ता है !<p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"><br /></span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">केवल इतना कह देने से ही नहीं चल पायेगा कि हमारे शहर में तो सीधा फलां-फलां नदी का ही पानी आता है, साफ़-स्वच्छ दिखता है ....इसलिये पानी के बारे में कभी इतना सोचा नहीं, अब कौन इस पानी-वानी की शुद्धता के चक्कर में पड़े। लेकिन यह सरासर एक गलत-फहमी ही है। क्योंकि जो पानी हमें साफ़-स्वच्छ दिखता है....उस में तरह तरह की कैमीकल एवं बैक्टीरीयोलॉजिकल अशुद्दियां हो सकती हैं जो हमें तरह तरह के रोग दे सकती हैं। आज जिस तरह से हवा-पानी-वातावरण प्रदूषित हैं, ऐसे में हमें पीने वाले पानी के बारे में भी अपना यह मांइड-सैट बदलना ही होगा।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"></span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">पानी का क्वालिटी के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिये। तो क्या बोतल वाली पानी ही घर में भी शुरू कर दिया जाये </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">?.....</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">ना तो इस की शायद इतनी ज़रूरत है और ना ही यह 99</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">प्रतिशत लोगों( कहने की इच्छा तो 99.9 प्रतिशत लोगों की हो रही है) के वश की बात है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">अकसर एक बात मुझे बहुत सुनने में मिलती है कि लोग एक्वागार्ड का पानी इसलिये नहीं पीते ....क्योंकि उन्हें लगता है कि अब पानी भी इतना शुद्ध पीना शुरू कर देंगे तो शरीर की इम्यूनिटी क्या करेगी ...........उसे भी तो कोई काम दे कर रखना है.....ऐसा ना हो कि ऐसा पानी पीने से हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता ही खत्म हो जाये।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">वैसे एक बात बता दूं कि आज के दौर में ऐसी सोच बिल्कुल बेबुनियाद ही नहीं...बल्कि खतरनाक भी है। चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों के इलावा दूसरे लोगों को तो यह पता ही नहीं कि आज कल पानी का प्रदूषण किस स्तर पर पहुंचा हुया है। और रही बात शरीर की इम्यूनिटी खत्म होने का डर............इस देश में रहते हुये उस की तो आप चिंता ना करें क्योंकि उस इम्यूनिटी को पूरी लिमिट पर काम करने के बहुत मौके मिलते रहते हैं। और जहां तक पानी की बात है....ठीक है, आप घर में शुद्ध पानी पी लेंगे, ऑफिस में एक्वागार्ड का पानी पी लेंगे...लेकिन फिर भी हम लोग कितनी ऐसी जगह में जाते हैं जैसे किसी के घर, किसी के ऑफिस में....वहां पर जाकर ऐसे वैसे पानी को पीने से मना करना शिष्टाचार के नियमों का हनन लगता है ....सो, ऐसे मौकों पर हम जो कुछ भी मिलता है...चाहे वह कैसा भी हो और किस ढंग से<span style=""> </span>परोसा जा रहा है....हम बहुत कुछ अनदेखा कर के दो-घूंट भर लेने में ही बेहतरी समझते हैं। तो, अपनी इम्यूनिटी को थोड़ा काम सौंपने के लिये बस कुछेक ऐसे ही मौके ठीक हैं.....इस से ज्यादा हम उस से काम लेना चाहेंगे तो अकसर वह भी हाथ खड़े कर के कह देती है..कि यह पड़ा तेरा सिस्टम, अब तूने जो लापरवाहियां की हैं, उन्हें तू ही निपट.....मैं तो आज से 15-20 दिन के लिये छुट्टी पर जा रही हूं क्योंकि जब टायफायड और हैपेटाइटिस ए (पीलिया ) जैसे रोग तूने बुला ही लिये हैं तो मुझे थोड़े दिनों की छुट्टी दे, थोड़े दिन तू भुगत ले....मैं फिर आती हूं, ऐसा कह के इम्यूनिटी अकसर अपने घुटने टेक देती है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">यह जो मैं शिष्टाचार की बात ऊपर कह चुका हूं...इस का भी जितना कम से कम उपयोग हो वही बेहतर है। चलिये, मैं ऐसी कुछ परिस्थितियों में क्या करता हूं<span style=""> </span>बता देता हूं ....शायद किसी का फायदा हो जाये.....बिना किसी लाग-लपेट के अपने अनुभव बांटना अब मेरी तो आदत सी ही हो गई है....</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"></span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">-मैं जब भी किसी भी दुकान पर जाता हूं वहां पानी नहीं पीता हूं( जब तक कि कोई घोर एमरजैंसी ही ना हो)....बस ऐसे ही कुछ भी कह कर टाल जाता हूं कि बस पांच मिनट पहले ही चाय पी है.....( लेकिन ऐसे झूठ बोलने पर कभी अफसोस भी नहीं हुया)।</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">रैस्टरां वगैरा में भी पानी जितना अवाय्ड हो सके करता हूं , ऐसे ही दो-तीन घूंट पी लेने तक ही सीमित रहता हूं। वैसे अकसर हम लोग कहीं भी ऐसी जगह जायें पानी अपना ही साथ ले कर चलते हैं।</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">अपने आफिस में भी मैंने पानी कभी नहीं पिया...हां, गर्मी के मौसम में एक बोतल अपने साथ ज़रूर रखता हूं।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">बस, बात केवल इतनी ही है कि हमें इस के बारे में थोडा अवेयर रहना होगा............मैं तो अपने मरीज़ों से भी यही कहता हूं कि अब इन एक्वागार्डों वगैरा का इस्तेमाल कोई लग्ज़री नहीं रह गया, ये बिजली की तरह ही ज़रूरी हो गये हैं ....इसलिये जो भी लोग इन को अफोर्ड कर सकते हैं वे इन्हें ज़रूर लगवा लें।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">माफ कीजियेगा....मैंने इस पोस्ट दो बार इस एक्वागार्ड का नाम ले लिया है.....ऐसे प्रोड्क्टस के नाम लेना मेरे प्रिंसीपल्स के खिलाफ है.......मेरा इस कंपनी से कुछ लेना-देना नहीं है....मैं तो बस इसे पानी शुद्ध करने के इलैक्ट्रोनिक संयंत्र की जगह ही इस्तेमाल कर रहा हूं क्योंकि अकसर लोग इतनी शुद्ध भाषा समझते नहीं है..तो आप लोग अपनी इच्छा अनुसार किसी भी अच्छी कंपनी का यह संयंत्र तो अपने यहां लगवा ही लें। और जहां तक संभव हो ऐसे पानी को ही अपने वर्क-प्लेस पर ले जायें....अब पता नहीं जितना यह सब कुछ लिख देना आसान है उतना आप लोगों के लिये यह प्रैक्टीकल भी है कि नहीं......पर यह है बहुत ही महत्वपूर्ण </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">!!</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">एक बात मैंने और बहुत नोटिस की है कि बहुत सारी जगह पर ये एक्वागार्ड तो लगे होते हैं लेकिन उन की मेनटेनैंस पर लोग ध्यान नहीं देते, उन का एएमसी नहीं करवाते जिसके तहत कंपनी सालाना आठ-नौ रूपये में इस की मुरम्मत का सारा जिम्मा लेती है और दो-एक बार कार्बन वगैरा भी चेंज करवाती है......इन संयंत्रों का फायदा ही तभी है जब ये परफैक्ट वर्किंग आर्डर में काम कर रहे होते हैं....नहीं तो क्या फायदा </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">!! </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">इसलिये इस सालाना 800-900 रूपये के खर्च को भी हमें सहर्ष सहन कर लेना चाहिये....अपने सारे परिवार की सेहत की खातिर.....यकीन मानिये, शायद उतने से ज़्यादा तो तरह तरह की पानी से पैदा होने वाली मौसमी बीमारियों की वजह से डाक्टर के भरने वाले बिल में कटौती आ जायेगी।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">लेकिन हां, अगर कोई किसी भी कारणवश यह मशीन नहीं लगवा रहा, तो उसे कम से कम पानी उबाल कर ही पीना चाहिये। यह बहुत ज़रूरी है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">और रही बात पानी के साफ दिखने वाली....जब जब भी इस बात पर भरोसा किया है धोखा ही खाया है। कुछ महीने पहले हम लोग कुल्लू-मनाली गये.....रास्ते में जहां भी रूके वहां पर खूब पानी पिया....वहां मनाली पहुंच कर भी अपने रेस्ट-हाउस का ही पानी पीते रहे.....क्योंकि सब ने यही कहा कि यहां तो पानी सब से शुद्ध है....सीधा पहाड़ों से ही आ रहा है.......लेकिन पता तब चला जब वहां से वापिस आते ही सारे का सारा परिवार पेट दर्द, ग्रैस्ट्रोएँटराइटिस और बुखार से एक हफ्ता पड़ा रहा.....तब मन ही मन निश्चय किया कि अगर बाहर घूमने में तीस हज़ार रूपये खर्च कर आते हैं तो आखिर तीन सौ रूपये में पानी की बोतलें खरीद कर पीने में क्या हर्ज़ है.........बस, क्या कहूं.......कि यह मिडिल क्लास मांइड-सैट भी कभी कभी </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">penny- wise but pound-foolish </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">वाली सिचुयेशन में जा फैंकता है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">जाते जाते , एक ही बात कि पानी की शुद्धता से कोई समझौता नहीं ......चाहे दिखने में साफ दिखे, फिर भी उस में हज़ारों जीवाणु आप के शरीर में जाकर उत्पाद मचाने की तैयारी में हो सकते हैं।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"> </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">अगर कुछ बच गया होगा तो आप की फीडबैक के बाद लिख देंगे। <span style=""><br /></span></span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"><span style=""></span></span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <br /><object width="425" height="355"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/yeUK2smTxYk&hl=en"></param><param name="wmode" value="transparent"></param><embed src="http://www.youtube.com/v/yeUK2smTxYk&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" width="425" height="355"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-30832555671410898422008-03-31T06:58:00.004+05:302008-03-31T07:48:36.584+05:30यह रहा टुथपेस्ट/टुथपावडर का कोरा सच......भाग II ( कंक्लूयडिंग पार्ट)इस पोस्ट में हम ने आज हम यह फैसला करना है कि दांतों की सफाई टुथपेस्ट से हो, किसी आयुर्वैदिक टुथपावडर से हो, या फिर किसी और ढंग से हो। इस पोस्ट को लिखना तो शुरू कर दिया है लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि किस क्रम से शुरू करूं !.............मेरे ख्याल में दांतों की सफाई के लिये लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे विभिन्न तरीकों की चर्चा से शुरू करते हैं......<br /><SPAN STYLE=“background:yellow”> <br /><span style="background: lightgreen none repeat scroll 0% 50%; -moz-background-clip: -moz-initial; -moz-background-origin: -moz-initial; -moz-background-inline-policy: -moz-initial;"><span style="font-weight: bold;">मैडीकेटिड टुथपेस्टें </span></span>.....इन दवाई-युक्त पेस्टों को बहुत लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है ...होता यूं है कि जब किसी के दांतों में दर्द होता है, तो कोई मित्र-रिश्तेदार कोई ऐसी मैडीकेटिड टुथपेस्ट के नाम की सिफारिश कर देता है। बस, फिर क्या है ...अगले दिन से सारे परिवार द्वारा वही पेस्ट इस्तेमाल करनी शुरू कर दी जाती है। अकसर जिन लोगों के दांतों में ठंडा लगता है या मसूड़ों से खून आता है तो वे किसी दंत-चिकित्सक के पास जाने की बजाये अपने आप ही इस तरह की पेस्टें खरीद कर रगड़ने को मुनाफे का सौदा मानते हैं। कभी कभी कोई दंत-चिकित्सक भी इलाज के दौरान इस प्रकार की पेस्ट को कुछ दिनों के इस्तेमाल की सलाह देते हैं............लेकिन ,कुछ लोगों का तो बस यही एटीट्यूड हो जाता है हम क्यों इसे करना बंद करें, हमें तो बस एक बार नाम पता चलना चाहिये और वैसे भी जब हमें इस प्रकार की पेस्टों से आराम सा लग रहा है तो हम क्यों इसे इस्तेमाल करना बंद करें।<br /><br />आज कल तो अखबारों में कुछ पेस्टें इस तरह के दावे करती भी दिखती हैं कि इन के इस्तेमाल से पायरिया रोग ठीक हो जाता है। <span style="background: yellow none repeat scroll 0% 50%; -moz-background-clip: -moz-initial; -moz-background-origin: -moz-initial; -moz-background-inline-policy: -moz-initial;">आज तक तो मैंने ऐसी कोई करिश्माई टुथपेस्ट ना ही देखी ना ही सुनी कि जो इस पायरिया को ही ठीक कर दे। </span>अगर पायरिया है तो इस का इलाज प्रशिक्षित दंत-चिकित्सक से करवाना ही होगा, और कोई विकल्प तो है ही नहीं, अगर दांतों में ठंडा-गर्म लगता है...तो भी दंत-चिकित्सक के पास जाकर इस का कारण पता करने के उपरांत इस का निवारण करना ही होगा। <span style="background: red none repeat scroll 0% 50%; -moz-background-clip: -moz-initial; -moz-background-origin: -moz-initial; -moz-background-inline-policy: -moz-initial;"> इस तरह की मैडीकेटिड टुथपेस्टें और कुछ करें ना करें....शायद लंबें समय तक दांत एवं मसूड़ों की बीमारियों के लक्षणों को दबा ज़रूर देती हैं और लोग एक अजीब तरह की फाल्स सैंस ऑफ सैक्यूरिटि में उलझे रहते हैं कि सब कुछ ठीक हो गया है जब कि इन पेस्टों की असलियत तो यह है कि इन के इस्तेमाल के बावजूद दांतों एवं मसूड़ों के रोग अपनी ही मस्ती में अंदर ही अंदर बढ़ते रहते हैं। </span><br /><br />इस प्रकार की मैडीकेटिड टुथपेस्टों का नाम कुछ कारणों से मैं यहां लिख नहीं रहा हूं....लेकिन आप में से अधिकांश इन के बारे में पहले ही से जानते हैं और शायद कभी न कभी इन्हें किसी की रिक्मैंडेशन पर इस्तेमाल कर भी चुके होंगे।<br /><br /><span style="background: yellow none repeat scroll 0% 50%; -moz-background-clip: -moz-initial; -moz-background-origin: -moz-initial; -moz-background-inline-policy: -moz-initial;"><span style="font-weight: bold;">आयुर्वैदिक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">टुथपावडर</span> </span>....चूंकि मैं आयुर्वैदिक का प्रैक्टीशनर नहीं हूं...इसलिये इस संबंध में मेरे विचार बिल्कुल मेरी आबजर्वेशन पर ही आधारित हैं.....मैं वर्षों से इंतज़ार कर रहा हूं कि कोई आयुर्वैदिक विशेषज्ञ इन आयुर्वैदिक पावडरों के ऊपर भी तो प्रकाश डालें।<br /><br />आप किसी आयुर्वैदिक पावडर की थोड़ी निंदा कर के तो देखिये...लोग शायद मरने-मारने पर उतारू हो जायेंगे। लेकिन भला क्यों करे निंदा, हम तो बस विज्ञान की बात करेंगे। मैं अकसर सोचता हूं कि हमारे लोगों की आयुर्वैदिक पर इतनी ज़्यादा आस्था होने का सब से फायदा इस तरह के आयुर्वैदिक पावडर एवं पेस्ट करने वाली कंपनियों ने ही उठाया है। फायदा ही नहीं उठाया, चांदी ही कूटी है। क्योंकि कितना आसान है कि किसी पेस्ट का अच्छा सा देसी नाम रख कर के लोगों की इस आस्था के साथ खिलवाड़ करना......ज़्यादातर लोगों को तो बस वैसे ही नाम ही से मतलब है....बस हो गया इन कंपनियों का काम....इन आयुर्वैदिक पेस्टों एवं पावडरों के अंदर क्या है, उधर झांकने की किसी पड़ी है....बस, नाम तो देसी है ना, सब ठीक ही होगा, और क्या ! अकसर लोग यही सोच लेते हैं।<br /><br />अब इसे पढ़ते हुये आप में से कईं लोग यही सोच रहे हैं ना कि यह डाक्टर क्या कह रहा है, हज़ारों साल पुरानी आयुर्वैदिक चिकित्सा प्रणाली को ही बुरा भला कह रहा है। नहीं, मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कह रहा हूं क्योंकि आप की तरह मेरे मन में इस आयुर्वैदिक चिकित्सा प्रणाली का बहुत आदर है, सम्मान है !<br /><br /><SPAN STYLE="background:yellow">अब आप सोच रहे होंगे कि फिर तकलीफ़ कहां है...तो मेरी सुनिये तकलीफ़ केवल यही है कि मेरे विचार में लोगों के आयुर्वैदिक शब्द के प्रति जो सैंटीमेंट्स हैं, उन को एक्सप्लायट किया जा रहा है।<br /><br />एक विचार मेरे मन में अकसर आता है कि इन आयुर्वैदिक पावडरों की पैकिंग के बाहर इतने ज़्यादा घटक( ingredients) लिखे होते हैं कि एक बार तो खुशफहमी होनी लाज़मी सी ही लगती है कि यह पावडर तो डायरैक्ट अपनी दादी के दवाखाने से ही आ रहा है। लेकिन मेरा एक प्रयोग करने की इच्छा होती है कि जितने पैसों में ये पावडर बाज़ार में मिलते हैं, अगर उतने पैसे में ही इन घटकों को बाज़ार से खरीद कर पीस लिया जाये, तो क्या इतना बड़ा डिब्बा तैयार हो पायेगा। अब इस का जवाब आप सोचें !! वैसे पर्सनली मुझे तो कभी नहीं लगता कि इतने पैसे खर्च कर हम इतना बड़ा डिब्बा तैयार कर सकते हैं।</SPAN><br /><br />आज से बीस साल पहले मैंने इन आयुर्वैदिक पावडरों पर एक सर्वे किया था....इस के अंतर्गत मैंने यही पाया था कि कुछ डिब्बों पर विभिन्न घटकों की बात की जाती है कि ये इतने ग्राम , वे इतने ग्राम....और बाद में लिखा होता था कि इसे 100 ग्राम बनाने के लिये बाकी गेरू मिट्टी मिलाई गई है। इस तरह का सर्वेक्षण करने का कारण यही था कि उन दिनों कुछ इस तरह के पावडर बाज़ार में उपलब्ध थे जिन में तंबाखू भी मिला हुया था. लेकिन क्या आज कल ऐसे पावडर नहीं मिलते.....खूब मिलते हैं. इस देश में क्या नहीं बिकता !<br /><br />हां, तो मैं बात कर रहा था कि मिट्टी की.....वास्तविकता यह है कि ऐसे किसी भी पावडर को दांतों पर घिसने से दांतों की बाहरी परत क्षति-ग्रस्त हो जाती है और दांतों में ठंडा-गर्म लगना शुरू हो जाता है। मेरे पास इतने मरीज़ आते हैं जिन के दांतों की पतली हालत देखते ही मैं एक मंजन का नाम लेकर पूछता हूं कि आप वह वाला मंजन तो नहीं घिस रहे.......बहुत बार मुझे इस का जवाब हां में ही मिलता है।<br /><br />अब तो लगता है कि मेरी ये बातें सुन कर आप की पेशेन्स जवाब दे रही होगी कि डाक्टर बातों को ज़्यादा घोल-घोल मत घुमा.....हमें तो बस इतना बता कि क्या इन आयुर्वैदिक टुथ-पावडरों का इस्तेमाल जारी रखें। लेकिन मैं भी तो उसी बात ही आ रहा हूं।<br /><br /><SPAN STYLE="background:orange">मेरा दृढ़ विश्वास तो यही है कि किसी दातुन ( नीम, बबूल आदि) के इलावा अगर आप किसी आयुर्वैदिक मंजन का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो उसे आप स्वयं ही क्यों नहीं तैयार करवा लेते......well, that is just my opinion simply based upon my so many years of keen observation !</SPAN><br /><br /><SPAN STYLE="background:yellow">सीधी सी बात है कि आप कोई भी आयुर्वैदिक मंजन इस्तेमाल करें ..बस इस बात का ध्यान रखें कि उस में कुछ भी हानिकारक घटक न मिलाया गया हो, और ना ही इस तरह का मंजन खुरदरा ही हो..............लेकिन मेरी दंत-चिकित्सक को बिना किसी दांतों की तकलीफ़ के भी साल में एक बार मिलने की बात अपनी जगह पर अटल है क्योंकि वाहिद एक वह ही शख्स है जो कि यह कह सकता है कि आप के दांत एवं मसूड़ों रोग-मुक्त हैं। वैसे बार बार मुझे यहां जो यह शब्द आयुर्वैदिक मंजन लिखना पड़ रहा है ...मुझे इस के लिये एक अपराधबोध हो रहा है...अब आयुर्वैदिक तो एक निहायत ही कारगुज़ार चिकित्सा पद्धति है और मैं जब यह बार बार लिख रहा हूं कि आयुर्वैदिक मंजन तो यही लगता है कि इस में आयुर्वेद का ही कुछ चक्कर है। ऐसा कुछ नहीं है.....केवल लोगों को एक्सप्लायट करने का एक धंधा है। इसलिये सोच रहा हूं कि इन जगह जगह बिकने वाले पावडरों को देसी पावडर ही क्यों ना कह दिया करूं !!</SPAN><br /><br />तो, मैसेज क्लियर है कि आप कुछ भी इस्तेमाल करिये लेकिन वह आप के दांतो एवं मसूड़ों के लिये नुकसानदायक नहीं होना चाहिये और आप के दंत-चिकित्सक के पास नियमित जा कर अपना चैक-अप करवाते रहिये।<br /><br /><span style="font-weight:bold;">वैसे चाहे यह पोस्ट तो मैं आज समाप्त कर रहा हूं लेकिन दातुन के सही इस्तेमाल पर एक पोस्ट शीघ्र ही लिखूंगा।</span><br /><br /><span style="background: yellow none repeat scroll 0% 50%; -moz-background-clip: -moz-initial; -moz-background-origin: -moz-initial; -moz-background-inline-policy: -moz-initial;"><span style="font-weight: bold;">नमक</span><span style="font-weight: bold;">-</span><span style="font-weight: bold;">तेल</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">मेशरी</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">देसी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">साबुन</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">राख</span><span style="font-weight: bold;">..</span>..</span> लोग तरह तरह के अन-स्पैसीफाइड तरीकों से भी दांत मांजते रहते हैं। मेरा इन के बारे में यही विचार है कि something is better than nothing……..as long as it does not pose any health hazard !......नमक तेल का इस्तेमाल तो अकसर होता ही है....अब फर्क तो यही है कि कोई तो इसे शौकिया तौर पर कभी कभी कर रहा है लेकिन कोई इसे मजबूरी वश करता है कि उस के पास महंगी पेस्ट-ब्रुश खरीदने का जुगाड़ नहीं है...........लेकिन फर्क क्या पड़ता है, अगर दंत-चिकित्सक द्वारा नियमित किया गया परीक्षण यही कह रहा है कि सब कुछ ठीक ठाक है तो आखिर हर्ज क्या है। इस में कोई शक नहीं है कि इस नमक-तेल को दांतों की सफाई करने का विधान भी तो सैंकड़ों वर्ष पुराना है। लेकिन तंबाकू को जला कर उसे दांतों एवं मसूड़ों पर घिसने का विधान तो कहीं नहीं था...यह तो हमारी ही खुराफात है....ये बंबई में लोगों द्वारा बहुत इस्तेमाल होता है और इस जले हुये तंबाकू को मेशरी कहा जाता है। दांत तो इस से खाक साफ होते होंगे लेकिन मुंह के कैंसर को इस के बढ़िया खुला आमंत्रण तो कोई हो ही नहीं सकता......एक तरह से मुंह का कैंसर मोल लेने का सुपरहिट फार्मूला। अब, कईं लोग देसी साबुन से दांत मांज लेते हैं ....यह भी गलत है क्योंकि इस में मौजूद कैमिकल्स की वजह से मुंह में घाव हो जाते हैं। कुछ लोगों को घर ही में आंच पर बादाम के छिलकों को जला कर मंजन तैयार करते देखा है। भारत के इस भाग में लोगों विशेषकर महिलाओं द्वारा दंदासा बहुत इस्तेमाल होता है.....यह अखरोट की छाल है जिसे दातुन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मुस्लिम भाईयों में दांतों की सफाई के लिये मिस्वॉक का इस्तेमाल होता है ...जिस में बहुत से लाभदायक तत्व होने की बात सिद्ध हो चुकी है।<br /><br />यह वाली बात यहीं पर यह कह कर समाप्त करता हूं कि आप जो भी वस्तु नित-प्रतिदिन अपने दांतों एवं मसूड़ों पर इस्तेमाल कर रहे हैं , वह हर तरह के नुकसानदायक गुणों से रहित होनी चाहिये और बेहतर होगा कि दंत-चिकित्सक से थोड़ी बात ही कर ली जाये।<br /><br /><span style="background: yellow none repeat scroll 0% 50%; -moz-background-clip: -moz-initial; -moz-background-origin: -moz-initial; -moz-background-inline-policy: -moz-initial; font-weight: bold;">सामान्य टुथपेस्ट</span><span style="font-weight: bold;"> -</span>---टुथपेस्टों की आज बाज़ार में भरमार है। लेकिन जब मेरे से लोग पूछते हैं कि कौन सा पेस्ट इस्तेमाल करें तो मैं हमारे यहां उपलब्ध बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दो-तीन पेस्टों के नाम गिना देता हूं कि इन में से कोई भी कर लिया करो। इस के बारे में मैं स्वदेशी, देशी या परदेसी के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहता हूं ....मेरा तर्क है कि अगर किसी टाप कंपनी की पेस्ट मेरे किसी मरीज़ को किसी भी दूसरी पेस्ट के दाम में मिल रही है तो क्यों इस दूसरी (पेस्ट ही !....और कुछ न समझ लीजियेगा!) के चक्कर में पड़ना !<br /><br />अमीर से अमीर देशों ने इन दांतों की बीमारियों को इलाज के द्वारा दुरूस्त करने की नाकामयाब कोशिशें की हैं, लेकिन अमेरिका जैसे अमीर देशों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिये। तो, वैज्ञानिकों ने यह तय कर लिया कि अगर हम मुंह की बीमारियों पर विजय हासिल करना चाहते हैं तो हमें इन से बचाव का ही माडल अपनाना होगा। इसलिये दांतों की बीमारियों से बचने का सब से सुपरहिट साधन आखिर ढूंढ ही निकाल लिया गया जिस की सिफारिश विश्व-स्वास्थ्य संगठन भी करता है.....वह यही है कि हमें दिन में दो बार...सुबह और रात को सोने से पहले किसी भी फ्लोराइड-युक्त टुथपेस्ट से ही दांत साफ करने चाहिये। इसलिये आप भी टुथपेस्ट खरीदते समय यह ज़रूर चैक कर लिया करें कि उस में फ्लोराइड मिला हुया है। यह दांत की बीमारियों से बचने का बहुत बड़ा हथियार है। आज से बीस साल पहले इस फ्लोराइड के उपयोग के बारे में भी देश में दो खेमे बने हुये थे। इस के बारे में अगर कोई प्रश्न हो तो बतलाइएगा, किसी अगली पोस्ट में डिटेल में कवर कर लूंगा। ये फ्लोराइड युक्त पेस्ट को सात साल की उम्र से तो शुरू कर ही लेना चाहिये...लेकिन जैसे ही बच्चा चार साल का हो तो उस के ब्रुश पर इस पेस्ट की बिल्कुल थोड़ी सी पेस्ट लगा कर शुरू किया जा सकता है लेकिन यह ध्यान रहे कि बच्चा पेस्ट खाता न हो।<br /><br />फिर कभी इस फ्लोराइड के बारे में , इस पेस्ट के एवं इस ब्रुश के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे।<br /><br />जाते जाते एक बात कहना यह भी चाह रहा हूं कि आज कल हम लोगों का खान-पान भी तो बहुत ज़्यादा बदल गया है, हम ज़्यादा से ज़्यादा रिफाइन्ड चीज़ें खाने लगे हैं, ज़्यादा हार्ड-चीजें हम अपने खाने में शामिल करने से अकसर गुरेज़ ही करते हैं , कच्चे-खाने( सलाद, अंकुरित अनाज एवं दालों आदि) से दूर होते जा रहे हैं क्योंकि फॉस्ट-फूड को पास लाने की जल्दी में हैं तो फिर इस टुथपेस्ट और ब्रुश को भी तो अपनाना ही होगा।<br /><br />वैसे अब जब इस पोस्ट को पब्लिश करने का वक्त आया है तो यही सोच रहा हूं कि इस विषय का स्कोप भी इतना विशाल है कि कैसे एक-दो पोस्टों में इस के न्याय करूं....खैर, सब कुछ आप की टिप्पणीयों पर , फीडबैक पर निर्भर है ....आप अगर इस विषय के बारे में और कुछ जानना चाहेंगे तो इस के बारे में लिखते जायेंगे। लेकिन जाते जाते एक काम की बात जो किताबों में लिखी है वह ज़रूर बतानी चाहूंगा कि ब्रुश को पेस्ट के साथ करना शायद इतना लाज़मी भी नहीं है....यह तो केवल ब्रुश की अक्सैप्टेबिलिटी बढ़ाती है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी को बिना पेस्ट के दांत साफ करने को कहें तो कितने लोग करेंगे..................औरों की तो मैं नहीं जानता, मैं खुद तो नहीं कर पाऊंगा क्योंकि मैं पिछले 18 सालों से इस फ्लोराइड-युक्त पेस्ट से ही दांत ब्रुश कर रहा हूं............संतुष्ट हूं और ब्रांड-लॉयल भी हूं।Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-67109668851782604322008-03-30T07:09:00.004+05:302008-03-30T07:45:03.967+05:30यह रहा टुथपेस्ट का कोरा सच......भाग I<span></span><br />अकसर ऐसे मरीज़ों से मुलाकात होती रहती है जिन्हें जब टुथपेस्ट और ब्रुश इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है तो वे झट से कह देते हैं ......<span style="background: lightgreen none repeat scroll 0% 50%; -moz-background-clip: -moz-initial; -moz-background-origin: -moz-initial; -moz-background-inline-policy: -moz-initial;">“ हमें तो भई पेस्ट करना कभी पसंद नहीं आया। एक आयुर्वैदिक पाउडर से ब्रुश के साथ ब्रुश करते हैं ! दांतों की कोई तकलीफ़ नहीं !!”….</span><br /><br />अब यह स्टेटमैंट किसी व्यक्ति द्वारा दी गई एक बेहद महत्त्वपूर्ण स्टेटमैंट है जिस का जवाब तुरंत ही एक लाइन में नहीं दिया जा सकता । इसलिये मुझे इस स्टेटमैंट के ऊपर एक पोस्ट लिखने का विचार आया है। <SPAN STYLE= "background:yellow">.वैसे उस बंदे की बात अपनी जगह कितनी सही लगती है कि डाक्टर, तुम तो कहते हो टुथपेस्ट और ब्रुश....लेकिन अपने दांतो की तो भई आयुर्वैदिक पावडर और ब्रुश के ज़रिये अच्छी खासी निभ रही है, ऐसे में भला हमें क्या पड़ी है कि हम टुथपेस्ट और ब्रुश के चक्कर में पड़ें !</SPAN><br /><br />लेकिन इस बात की तह तक पहुंचने के लिये हमें पहले कुछ इधर-उधर की हांकनी पड़ेंगी। एक बात तो यह भी बताना चाहूंगा कि अकसर ऐसे लोगों से भी मिलना होता है जिन के मुंह का निरीक्षण करने के बाद जब हम लोग कैज़ुएली ही पूछ लेते हैं कि आप पेस्ट कौन सी इस्तेमाल करते हैं तो झट से जवाब मिलता है .....<SPAN STYLE="background:yellow">“ मैंने तो आजतक न तो ब्रुश किया है और ना ही पेस्ट का ही इस्तेमाल किया है, बस घर का बनाया मंजन ही किया होता है !”....अब हम जब आगे बढ़ेंगे तो इस बात का भी जवाब भी तो ढूंढेंगे.....केवल मरीज की कही बात को झुठलाने के लिये ही नहीं ,लेकिन केवल सच की तलाश करने के लिये।</SPAN><br /><br />अच्छा चलिये, कुछ बातें करें। इतने करोड़ों लोग तंबाकू का विभिन्न रूपों में सेवने करते हैं....तो क्या सब को मुंह का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर या शरीर के किसी अन्य अंग का कैंसर हो जाता है ! या हर कोई तंबाकू से पैदा होने वाली बीमारियों की चपेट में आ जाता है। अब इस का जवाब तो एक डाक्टर को देना ही होगा ना, अब इस के जवाब से कोई भाग कर बताये। बात यही है कि सारी कायनात मानती है कि तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन घातक है, लेकिन फिर भी हम अपने आस-पास भी तो देखते हैं कि कुछ हमारे ही सगे-संबंधी-मित्र बरसों से सिगरेट पिये जा रहे हैं और साथ में ठोक कर कहते हैं कि देखो, भई, हम तो पूरी ऐश करते हैं लेकिन हमें तो कोई तकलीफ़ नहीं है। ऐसे ही लोगों की इस तरह की बातें उन के आस-पास रहने वाले वालों को भी इस ज़हर को ट्राई करने के लिये उकसाती हैं। लेकिन फिर भी अन्य लोग इन जहरीली चीज़ों का इस्तेमाल करने से नहीं ना चूकते ! ….अगले बिंदु पर जाने से पहले इतना ज़रूर कहना चाहूंगा कि बरसों से इस्तेमाल करने वाला बंद अपने आप ही यह घोषणा कर के खुश हो रहा है ना कि वह फिट है......क्या सेहत की यही परिभाषा है, क्या इतना कह कर खुश हो लेने से चल जायेगा ?....मुझे तो ऐसा नहीं लगता। <SPAN STYLE="background:yellow">हां, अगर कोई फिजिशियन उसे चैक करने के उपरांत यह डिक्लेयर कर दे कि हां, भई, हां, तुम एकदम फिट हो, तो बात दूसरी है !</SPAN>....लेकिन ऐसा हो ही नहीं सकता.....क्योंकि तंबाकू अंदर ही अंदर विभिन्न अंगों पर मार तो करता ही रहता है, हां, यह ठीक है कि उन का ऐसा विकराल रूप अभी न दिखा हो जिस की वजह से तंबाकू का सेवन करने वाले की नींद ही उड़ जाये। <br /><br /><SPAN STYLE="background:yellow">अब, मुंह की ही बात लीजिये.....मेरे पास मुंह के इतने ज़्यादा मरीज़ आते हैं जिन के मुंह के अंदर तंबाकू के तरह-तरह के सेवन के परिणाम-स्वरूप अजीब तरह के छोटे-छोटे घाव नज़र आते हैं। अब हम जैसे डाक्टरों के लिये चिंताजनक बात तो यही है कि अकसर इस तरह की अवस्थाओं की मरीज़ को कोई तकलीफ़ होती नहीं है, लेकिन हमें यह भी पूरा पता है कि अगर तंबाकू का सेवन तुरंत बंद कर के इन का इलाज न किया गया तो इन में से कुछ अवस्थायें जो अभी बहुत इनोसेंट सी दिख रही हैं, वे कभी भी पल्टी मार के मुंह के कैंसर का विकराल रूप धारण कर लेंगी।</SPAN> इसलिये हम लोगों को तंबाकू के सेवन का जम कर विरोध करना ही पड़ता है.....यहां यह तर्क तो बिल्कुल चलता ही नहीं ना कि हर एक तंबाकू का सेवन करने वाले को ही थोड़ा मुंह का कैंसर हो जायेगा..........लेकिन समस्या यही तो है कि हमें भी नहीं पता कि कौन आगे चल कर इस की चपेट में आ जायेगा, इसलिये ऐसी वस्तु के इस्तेमाल को सिरे से ही क्यों न नकार दिया जाये। आशा है कि आप को इन बातों का औचित्य समझ में आ गया होगा।<br /><br />ऊपर जो बातें की गई हैं उन से एक बात यह भी निकलती है कि किसी व्यक्ति के किसी बीमारी से ग्रस्त होने का मतलब यह भी है कि उस के शरीर में, कुछ विभिन्न कारणों की वजह से, उस बीमारी के पैदा होने की संभावना दूसरों से ज़्यादा है। अब इस बात को इस से ज़्यादा एक्सप्लेन करना इस पोस्ट के स्कोप से बाहर है.....लेकिन यह तो तय ही है ना कि दो बंदे बचपन से मुंह में तंबाकू-चूना दबा रहे हैं, लेकिन एक को मुंह का कैंसर 45 की उम्र में ही काबू कर लेता है लेकिन दूसरा 85 की उम्र में भी मेरे जैसे डाक्टरों को देखते ही झट से तंबाकू की एक और चुटकी होठों के अंदर कुछ इस अंदाज़ में दबाता है कि मानो हम लोगों की खिल्ली उड़ा रहा हो। <SPAN STYLE="background:orange">अच्छा तो आप बतलाईए कि ऐसे में क्या हम इस 85 वर्षीय हवा में उड़ रहे नटखट बुजुर्ग का केस देख कर तंबाकू चूसने का खुला लाइसैंस दे दें ?</SPAN>....नहीं ना, ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता। लेकिन यह डिस्कशन तो कुछ ज़्यादा ही लंबी होती जा रही है, इसलिये अपने मूल प्रश्न पर ही वापिस आता हूं।<br /><br />अच्छा तो अपनी बात हो रही थी पेस्ट इस्तेमाल करने की या ना इस्तेमाल करने की। अब ऐसे बहुत से लोग मिलते हैं जिन्होंने से कभी पेस्ट नहीं की, कोई मंजन नहीं किया, कोई दातुन नहीं की, केवल हर खाने के बाद कुल्ला ही करते हैं और वे बड़े गर्व से कहते हैं कि यही उन की बतीसी कायम रहने का राज़ है। <SPAN STYLE="background:yellow">लेकिन अकसर जब उन के मुंह का निरीक्षण किया जाता है कि तो पाया जाता है कि उन के मुंह से भयानक दुर्गंध तो आ ही रही है, इस के साथ ही वे पायरिया रोग के एडवांस स्टेज से ग्रस्त भी हैं।</SPAN> मैं यहां पर यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि अपनी बात को सिद्ध करने के लिये यह मेरा कोई एक्सट्रिमिस्ट ओपिनियन नहीं है.....यह हमारा दिन-प्रतिदिन का अनुभव है....और इस तरह की पोस्टों पर लिखा एक-एक शब्द पिछले पच्चीस सालों के अनुभव की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही आप तक पहुंच रहा है।<br /><br />लेकिन हां, कभी कभार, बहुत रियली ऐसा भी होता है कि ऐसे कुछ बंदों में इतना ज़्यादा रोग नहीं भी दिखाई देता। और दूसरी तरफ़ एक सिचुऐशन देखिये कि कोई आदमी रोज़ाना दो बार टुथ-पेस्ट और ब्रुश से दांत भी साफ कर रहा है, जुबान भी नियमित रूप से रोज़ाना सुबह साफ करता है, लेकिन दांतों की सड़न फिर भी उस का पीछा नहीं छोड़ती......कईं बार तो ऐसे लोग फ्रस्ट्रेट हुये होते हैं। <span style="font-weight:bold;">तो, यहां पर यही समझने की बात है कि मुंह की बीमारियां केवल टुथपेस्ट या ब्रुश करने या ना करने से ही नहीं होतीं...........लेकिन उन के होने अथवा ना होने में हमारी जीन्स (genes) का रोल है, हमारे मुंह के अंदर पाये जाने वाले जीवाणुओं की किस्मों का रोल है, हमारे थूक की कंपोज़ीशन का रोल है, हमारे खान-पान का, हमारी अन्य आदतों का बहुत अहम् रोल है। वैसे यह लिस्ट बहुत लंबी है, लेकिन फिर कभी इस के बारे में चर्चा करेंगे।</span><br /><br />तो, अब मैं जिस बात पर आना चाहता हूं वह यही है कि जो लोग मंजन और ब्रुश से दांत साफ कर रहे हैं....यह उन की पर्सनल च्वाइस है। लेकिन हां, पहले किसी दंत-चिकित्सक को अपना निरीक्षण करवा कर यह ज़रूर सुनिश्चित कर लें कि सब कुछ ठीक ठाक है। और जहां तक इन तरह तरह के मंजनों का प्रश्न है, कुछ में तो बहुत ही खुरदरे तत्व मिले होते हैं। अकसर लोग हमारे पास भी तरह तरह की शीशियां लेकर आते हैं कि यह शीशी बस-अड्डे के सामने सहारनपुर से रोज़ाना आने वाले बाबे से ली थी, क्या कमाल का पावडर है...मेरे सारे परिवार का पायरिया छू-मंतर ही हो गया है। लेकिन अकसर जब इन लोगों के मुंह का चैक-अप किया जाता है तो बात कुछ और ही होती है।<br /><br />ठीक है, आप तो कैमिस्ट की दुकान से सीलबंद आयुर्वैदिक पावडर का इस्तेमाल करते हैं......और अगर आप का दंत-चिकित्सक भी आप के दांतों का निरीक्षण करने के उपरांत यही कहता है कि सब कुछ एक दम फिट है तो आप भी अपनी जगह बिल्कुल ठीक हैं कि आखिर आप क्यों करें टुथपेस्ट पर स्विच-ओवर !<br /><br />लेकिन इन सब बातों का पूरा जवाब भी मैं दूंगा, लेकिन इस समय पिछले डेढ़ घंटे से लगातार लिखते लिखते थक सा गया हूं और आप से इजाजत चाहूंगा......लेकिन इस पोस्ट के दूसरे हिस्से में इन पेस्टों और पावडरों( आयुर्वैदिक पावडरों समेत) की खुल कर बात करूंगा.....पेस्ट अथवा पावडर कैसा हो, कितना इस्तेमाल किया जाये।<br /><br /><SPAN STYLE="background:yellow">जो भी हो, मैं अपनी पिछली पोस्ट पर आई एक टिप्पणी का तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूं जिस की वजह से मुझे यह पोस्ट लिखने पर बाध्य होना पड़ा।</SPAN> इस पोस्ट को मैं बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानता हूं ...इसलिये मैंने इसे सुबह-सवेरे फ्रैश रहते हुये लिखने का फैसला किया। इसलिये कहता हूं कि कुछ टिप्पणी हमें झकझोरती हैं कि हां, अब ढूंढ इस बात का जवाब....शायद हम ने भी कभी इतनी गंभीरता से इन महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में इतनी गंभीरता से पहले कभी सोचा ही नहीं होता क्योंकि हम अकसर यही सोच कर खुश होते रहते हैं कि एक प्रोफैशनल के नाते हम कह रहे हैं वही पत्थर पर लकीर है.......लेकिन बात तर्क की है, वितर्क की है, विज्ञान की है, तो ऐसे में हमारी एक एक बात इस कसौटी पर खरी तो उतरनी ही चाहिये।<br /><br />मेरे एक दोस्त ने बिल्कुल सही कहा था कि इस तरह की ब्लोग की दिशा-दशा तो समय ही निर्धारित करता है। अच्छा तो जल्द ही इसी शीर्षक वाली पोस्ट के दूसरे भाग के साथ हाज़िर होता हूं।<br /><br />अच्छा तो दोस्तो इतनी सीरियस सी और बोरिंग पोस्ट झेलने के बाद मेरी पसंद का एक गीत ही सुन लो !<br /><br /><object width="425" height="355"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/7X7Fj0l1108&hl=en"></param><param name="wmode" value="transparent"></param><embed src="http://www.youtube.com/v/7X7Fj0l1108&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" width="425" height="355"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-10290726933678576762008-03-29T15:39:00.005+05:302008-03-29T16:00:26.002+05:30मसूड़ों से खून निकलना.....कुछ महत्त्वपूर्ण बातें...मसूड़ों से खून निकलना एक बहुत ही आम समस्या है, लेकिन अधिकांश लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते। हां, अकसर लोग इतना ज़रूर कर लेते हैं कि अगर ब्रुश करने समय मसूड़ों से खून निकलता है तो ब्रुश का इस्तेमाल करना छोड़ देते हैं और अंगुली से दांत साफ करना शुरू कर देते हैं। यह बिल्कुल गलत है – ऐसा करने से पायरिया रोग बढ़ जाता है। कुछ लोग किसी मित्र-सहयोगी की सलाह को मानते हुये कोई भी खुरदरा मंजन दांतों पर घिसने लगते हैं , कुछ तो तंबाकू वाली पेस्ट को ही दांतों-मसूड़ों पर घिसना शुरू कर देते हैं। यह सब करने से हम मुंह के गंभीर रोगों को बढ़ावा देते हैं। <br /><br />जब भी किसी को मसूड़ों से रक्त आने की समस्या हो तो उसे प्रशिक्षित दंत-चिकित्सक से मिलना चाहिये। वहीं आप की समस्या के कारणों का पता चल सकता है। बहुत से लोग तो तरह तरह की अटकलों एवं भ्रांतियों की वजह से अपना समय बर्बाद कर देते हैं...इसलिये अगर किसी को भी यह मसूड़ों से खून निकलने की समस्या है तो उसे तुरंत ही अपने दंत-चिकित्सक से मिलना चाहिये। <br /><br /><SPAN STYLE="background:orange">मसूड़ों से खून निकलने का सबसे आम कारण दांतों की सफाई ठीक तरह से ना होना है जिसकी वजह से दांत पर पत्थर( टारटर) जम जाता है। इस की वजह से मसूड़ों में सूजन आ जाती है और वें बिल्कुल लाल रंग अख्तियार कर लेते हैं। इन सूजे हुये मसूड़ों को ब्रुश करने से अथवा हाथ से छूने मात्र से ही खून आने लगता है। जितनी जल्दी इस अवस्था का उपचार करवाया जाये, मसूड़ों का पूर्ण स्वास्थ्य वापिस लौटने की उतनी ही ज़्यादा संभावना रहती है।</SPAN> इस का मतलब यह भी कदापि नहीं है कि अगर आप को यह समस्या कुछ सालों से परेशान कर रही है तो आप यही सोचने लगें कि अब इलाज करवाने से क्या लाभ, अब तो मसूड़ों का पूरा विनाश हो ही चुका होगा। लेकिन ठीक उस मशहूर कहावत....जब जागें, तभी सवेरा....के मुताबिक आप भी शीघ्र ही अपने दंत-चिकित्सक को से दिखवा के यह पता लगवा सकते हैं कि आप के मसूड़े किस अवस्था में हैं और इन को बद से बदतर होने से आखिर कैसे बचाया जा सकता है। <br /><br /><SPAN STYLE="background:yellow">कुछ लोग तो इस अवस्था के लिये अपने आप ही दवाईयों से युक्त कईं प्रकार की पेस्टें लगाना शुरू कर देते हैं अथवा महंगे-महंगे माउथ-वॉशों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। लेकिन इस तरह के उपायों से आप को स्थायी लाभ तो कभी भी नहीं मिल सकता .....शायद कुछ समय के लिये ये सब आप के लक्षणों को मात्र छिपा दें। </SPAN><br /><br /><br />मसूड़ों की बीमारियों से बचने का सुपर-हिट अचूक फार्मूला तो बस यही है कि आप सुबह और रात दोनों समय पेस्ट एवं ब्रुश से दांतों की सफाई करें, जुबान साफ करने वाली पत्ती ( टंग-क्लीनर) से रोज़ाना जुबान साफ करें और हर खाने के बाद कुल्ला अवश्य कीजिये। इस के साथ साथ तंबाकू के सभी रूपों, गुटखों एवं पान-मसालों से कोसों दूर रहें। <br /><br />अकसर लोग अपनी छाती ठोक कर यह कहते भी दिख जाते हैं हम तो भई केवल दातुन से ही दांत कूचते हैं...यही राज़ है कि ज़िंदगी के अस्सी वसंत देखने के बाद भी बत्तीसी कायम है। यहां पर मैं भी उतनी ही बेबाकी से यह स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि बात केवल मुंह में बत्तीसी कायम रखने तक ही तो सीमित नहीं है, बल्कि उस बत्तीसी का स्वस्थ रहना भी ज़रूरी है। <br /><br />अकसर मैंने अपनी क्लीनिकल प्रैक्टिस में नोटिस किया है कि जो लोग केवल दातुन का ही इस्तेमाल करते हैं, उन में से भी काफी प्रतिशत ऐसे भी होते हैं जिन के मसूड़ों में सूजन होती है। लेकिन इस का दोष हम दातुन पर कदापि नहीं थोप सकते !....यह क्या ?...आप किस गहरी सोच में पढ़ गये हैं !...सीधी सी बात है कि अगर आप कईं सालों से दातुन का ही इस्तेमाल कर रहे हैं और आप को दांतों से कोई परेशानी नहीं है तो भी आप अपने दंत-चिकित्सक से नियमित चैक-अप करवाइये। अगर वह आप के मुंह का चैक-अप करने के पश्चात् यह कहता है कि आप के दांत एवं मसूड़े बिल्कुल स्वस्थ हैं तो ठीक है ....आप केवल दातुन का ही प्रयोग जारी रखिये। लेकिन अगर उसे कुछ दंत-रोग दिखते हैं तो आप को दातुन के साथ-साथ ब्रुश-पेस्ट का इस्तेमाल करना ही होगा। <br /><br />एक विशेष बात यह भी है कि अकसर लोग दातुन का सही इस्तेमाल करते भी नहीं—वे दातुन को चबाने के पश्चात् दांतों एवं मसूड़ों पर कुछ इस तरह से रगड़ते हैं कि मानो बूट पालिश किये जा रहे हों...ऐसा करने से दांतों की संरचना को नुकसान पहुंचता है। आप चाहे दातुन ही करते हैं, लेकिन इस को भी दंत-चिकित्सक की सलाह अनुसार ब्रुश की तरह ही इस्तेमाल कीजिये।Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-46081425278590662972008-03-29T05:22:00.001+05:302008-03-29T05:28:33.656+05:30हमारे स्वास्थ्य का प्रतिबिंब.....हमारा मुंह....I……परिचयअभी कुछ ही समय पहले मैंने एक सीरिज़ शुरू की है...मुंह के ये घाव/छाले, लेकिन मुझे विचार आया है कि इस के भी अतिरिक्त एक सीरिज़ अलग से शुरू की जाये जिस में हमारे मुंह के बारे में पूरी जानकारी दी जाये क्योंकि मैंने देखा है कि हिंदी में इस जानकारी का बहुत अभाव है। <br /><br />मुझे यह लिखने की प्रेरणा पता है कैसे मिली.......अकसर घर में फेशियल के बारे में बातें होती रहती हैं( थैंक गॉड, करवाता कोई नहीं है!) और कुछ समय पहले मैंने एक ऐसे ही फेशियल का रेट सुन कर हैरान हो गया...तीन सौ रूपये !.....इस के रेट के बारे में सुन कर मेरे मुंह से अनायास निकला कि तीन सौ रूपये में तो शायद तीन दिन ( ज़्यादा नहीं कह दिया, तीन घंटे ठीक रहेंगे).....चेहरा चमक जाये लेकिन अगर इसी पैसे का महीने तक ताज़ा फलों का रस पी लिया जाये या ताज़े फलों का ही सेवन कर लिया जाये तो शायद परमानैंट फेशियल ही हो जाये। अब दूर-दराड़ के गांव में कहां ये औरतें इन चक्करों में पड़ती हैं लेकिन इन के चेहरे की आभा देखते बनती है। तो मैसेज क्लियर है.............जस्ट बी नैचुरल !!<br /><br />ताज़ा फलों की बात की है तो मुझे कुछ दिन पहले अपनी एक महिला मरीज़ से की बात याद आ गई। मैंने उस अधेड़ औरत से यूं ही पूछ लिया कि आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही। तब, उस ने मुझे बतलाना शुरू किया कि क्या करें, खाते तो सब कुछ हैं.....अपने पति का नाम लेकर कहने लगी कि अब ये कुछ दिन पहले ही मौसंबी की एक बोरी (शायद पांच सौ रूपये के आस-पास की कीमत में, जैसे कि उस ने मुझे बतलाया).. ही मंडी से उठा लाये हैं, कि अब तू इन का रस निकाल निकाल के खूब पिया कर। ......<br /><br />मुझे उस महिला की बात सुन कर थोड़ा सुकून तो ज़रूर मिला कि चलो इस केस में पैसे के खर्च करने के लिये च्वाइस तो बेहतर की गई है। लेकिन केवल इस मौसंबी की बोरी पर ही अपनी सारी सेहत का जिम्मा डाल कर निश्चिंत हो जाना क्या ठीक है। ऐसा इसलिये कह रहा हूं कि उस महिला का सामान्य स्वास्थ्य भी कुछ ज़्यादा ठीक न था। <br /><br />अच्छा ऊपर की गई बातों से आप कहीं यह तो अंदाज़ा नहीं लगाने लग गये कि इस सीरिज़ में मैं मुंह अर्थात् चेहरे तक ही अपनी बात सीमित रखूंगा। ठीक है, कभी कभार यह चेहरा-मोहरा भी कवर हो जाया करेगा। लेकिन मेरी यह सीरिज़ बेसिकली होगी.....मुंह के बारे में.....मुंह अर्थात् दांतों के बारे में, होठों, गालों के अंदरूनी हिस्सों, मसूड़ों, जिह्वा, गले का वह हिस्सा जो सामने नज़र आता है, तालू के बारे में ...............इन सब के बारे में जम कर चर्चा होगी कि ये स्वास्थ्य में कैसे दिखेंगे और बीमारियां किस तरह से इन्हें प्रभावित करती हैं। उम्मीद तो पूरी है कि कुछ भी न छूटने पायेगा (बस जो कुछ पिछले पच्चीस सालों में किया है, देखा है, सीखा है, पढ़ा है....सब कुछ बिलकुल फ्रैंक तरीके से आप के सामने रखने की चाह रखता हूं !)…, आज मैंने इस सीरिज़ को शुरू करने का पंगा तो ले लिया है, लेकिन मुझे स्वयं भी नहीं पता कि यह सीरिज़ क्या दिशा लेगी और यह कितनी लंबी खिंचेगी............यह सब आप की टिप्पणीयों, आप के प्रश्नों, आप की उत्सुकता, आप की ई-मेलज़ पर निर्भर करेगा। <br /><br />जाते जाते इस पहली पोस्ट में एक बात फिर से दोहरा रहा हूं कि मैडीकल विज्ञान में हम अकसर यह कहते रहते हैं कि Oral cavity is the index of whole of the human body….अर्थात् हमारा मुंह हमारे स्वास्थ्य का प्रतिबिंब है। यह बहुत ही, बहुत ही महत्वपूर्ण स्टेटमैंट है...क्योंकि ऐसी कितनी ही बीमारियां हैं जिन के बारे में हम धीरे धारे जानेंगे जिन का शक हमें किसी व्यक्ति के मुंह के अंदर झांकने मात्र से ही हो जाता है और दूसरी तरफ़ यह भी है कि कितनी ही ऐसी मुंह की तकलीफ़ें हैं जिन के बुरे प्रणाम शरीर के दूसरे सिस्ट्म्ज़ पर हम देखते रहते हैं। यह सब हम चलते चलते देखते जायेंगे। <br /><br />बतलाईयेगा कि आप को यह सीरिज़ शुरू करने का आईडिया कैसा लगा। <br /><br /><object width="425" height="355"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/dNTI2yLvJUU&hl=en"></param><param name="wmode" value="transparent"></param><embed src="http://www.youtube.com/v/dNTI2yLvJUU&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" width="425" height="355"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-57970930368821389532008-03-28T19:56:00.002+05:302008-03-28T20:27:05.814+05:30मुंह के ये घाव/छाले......III.......कैसे होंगे ये ठीक ?स्वाभाविक प्रश्न है कि जब मुंह में ये छाले हो ही जायें, तो इन का इलाज कैसे किया जाये। इन के इलाज के लिये जो बात समझनी सब से महत्त्वपूर्ण है वह यही है कि इन छालों को ठीक करना किसी डाक्टर के वश की बात तो है नहीं....क्योंकि अन्य बीमारियों की तरह प्रकृति ही इन से निजात दिलाने में हमारी मदद करती है। हम ने तो सिर्फ़ मुंह में एक ऐसा वातावरण मुहैया करवाना है जो कि इन छालों को शीघ्रअतिशीघ्र ठीक होने में (हीलिंग) मदद करे।<br /><br />सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब हम लोग मुंह के इन छालों से परेशान हों तो हमें अपना खान-पान बिल्कुल बलैंड सा रखना होगा.....बलैंड से मतलब है बिल्कुल मिर्च-मसालों से रहित। मैं अपने मरीज़ों को ऐसे खान-पान के लिये प्रेरित यह कह कर करता हूं कि अगर हमारे चमड़ी पर कोई घाव है तो उस पर नमक लग जाये तो क्या होता है, ठीक उसी प्रकार ही मुंह में छाले होने पर भी अगर मिर्च-मसाले वाला खाना खाया जायेगा तो कैसे होगी फॉस्ट हीलिंग ?<br /><br />और , दूसरी बात यह है कि मुंह के इन छालों पर कोई भी दर्द-निवारक ऐंसीसैप्टिक ड्राप्स लगा देने चाहियें......ऐसे ड्राप्स अथवा अब तो इन्हीं नाम से ट्यूब रूप में भी दवायें आने लगी हैं....कुछ के नाम मैं लिख रहा हूं.......Dentogel, Dologel, Zytee, Emergel, Gelora ORAL ANALGESIC / ANTISEPTIC GEL…….ये पांच नाम हैं जिन को कि मैं हज़ारों मरीज़ों के ऊपर इस्तेमाल कर चुका हूं। ( Please note that there is no commercial interest of mine involved in telling you all this…….you may find and use anyone which you feel is more suitable…. as long as it serves your purpose. Just telling you this because I an very much against all such endorsements !) …….नोट करें कि इन का भी काम मुंह के छाले को भरना नहीं है....ये केवल आप को उस छाले से दर्द से कुछ समय के लिये राहत दिला देती हैं। इन पांचों में से आप किसी भी एक दवाई को लेकर दिन में दो-चार बार छालों पर लगा सकते हैं। वैसे विशेष रूप से खाना खाने से पांच मिनट पहले तो इस दवाई का प्रयोग ज़रूर कर लें। और हां, दो-चार मिनट के बाद थूक दें। लेकिन बाई-चांस अगर कभी कभार गलती से एक-आध ड्राप निगल भी ली जाये तो इतना टेंशन लेने की कोई बात नहीं होती।<br /><br />अब आते हैं इन मुंह के छालों के इलाज के लिये उपयोग होने वाली एंटीबायोटिक दवाईयों पर। वास्तव में ये मुंह के छाले वाला टापिक इतना विशाल है कि स्ट्रेट-फारवर्ड तरीके से सीधा कह देना कि एंटीबायोटिक दवाईयां लेनी हैं कि नहीं ....कुछ कठिन सा ही काम है। जैसे जैसे मैं इस सीरिज़ में आगे बढूंगा तो हम देख कर हैरान रह जायेंगे कि इन मुंह के छालों की भी इतनी श्रेणीयां हैं और इन का इलाज भी इतना अलग अलग किस्म का। अभी तो मैं केवल बात कर रहा हूं उन छालों को जो लोगों को यूं ही कभी कभी परेशान करते रहते हैं....इन में किसी एंटीबायोटिक दवाईयों का कोई स्थान नहीं है। लेकिन अगर इन छालों की वजह से थूक निगलने में दिक्कत होने लगे या जबाड़े के नीचे गोटियां सी आ जायें( Lymphadenitis……lymph nodes का बढ़ जाना और दर्द करना) ...तो एंटीबायोटिक दवाईयां 3-4दिनों के लिये लेनी पड़ सकती हैं।<br /><br />और आप कोई दर्दनिवारक टीकिया भी अपनी आवश्यकतानुसार ले सकते हैं।<br /><br />कईं प्रैस्क्रिप्श्नज़ देखता हूं जिन में मैट्रोनिडाज़ोल की गोलियों का कोर्स करने की सलाह दी गई होती है। मेरे विचार में इन गोलियों को इन मुंह के छालों के लिये नहीं लेना चाहिये।<br /><br />मल्टी-विटामिन टैबलेट लोग अकसर गटकनी शुरू कर देते हैं.....ठीक हैं, अगर किसी को इस से सैटीस्फैक्शन मिलती है तो बहुत अच्छा है। लेकिन मेरा तो दृढ़ विश्वास यही है कि अगर विटामिन सी की जगह कोई मौसंबी, कीनू, संतरे का जूस पी लिया जाये, य़ा तो नींबू-पानी ही पी लिया जाये या आंवले का किसी भी रूप में सेवन कर लिया जाये तो वो शायद सैंकड़ो गुणा बेहतर होगा। एक बात और कहना चाहूंगा कि जब मेरे पास ऐसे मरीज़ आते हैं तो मैं तो इस मौके को उन की खान-पान की आदतें बदलने के लिये खूब इस्तेमाल करता हूं। जैसे कि किसी को अगर आप ने अंकुरित दालें खाने के लिये प्रेरित करना हो तो इस से बेहतर और क्या मौका हो सकता है। शायद जब वे ठीक ठाक हों तो आप की इस सलाह को हंस कर टाल दें....लेकिन जब वे मुंह के छालों से परेशान हैं तो वे कुछ भी करने को तैयार होते हैं। ऐसे में उन को इस तरह की प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल के लिये प्रेरित करना और संतुलित आहार लेने की बातें वे खुशी खुशी पचा लेते हैं। एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात तो बतानी पिछली पोस्ट में भूल ही गया था कि ये जो अंकुरित दालें हैं ना ये विटामिनों से पूरी तरह से विशेषकर बी-कंप्लैक्स विटामिनों से भरपूर होते हैं। इसलिये इन्हें Power Dynamos भी कहा जाता है।<br /><br />मुझे ख्याल आ रहा है कि मैंने पिछली पोस्ट में एक होस्टल में रह रहे 20-22 के लड़के की बात की थी......लेकिन बात वही है कि होस्टल में तो कुछ भी हो, हमें मैदे जैसे आटे की ही रोटियां मिलने वाली हैं। तो , ऐसे में उस लड़के को यह भी ज़रूर चाहिये कि वह खुद सलाद बना कर खाया करे,अपने रूम में ही अंकुरित दाल तैयार किया करे ( आज कल तो रिलांयस ग्रीन के स्टोर पर भी ये अंकुरित दालें मिलने लगी हैं) और हां, दो-तीन मौसमी रेशेदार फल ज़रूर ज़रूर खाया करें। इस से कब्ज की भी शिकायत न होगी और संतुलित आहार मिलने से मुंह की चमड़ी भी हृष्ट-पुष्ट हो जायेगी जिस से कि उस में छाले बनने की फ्रिकवैंसी धीरे धीरे कम हो जायेगी। सीधी सी बात है कि यहां भी काम हमारी इम्यूनिटी ही कर रही है....अगर अच्छी है तो हम इन छोटी मोटी परेशानियों से बचे रहते हैं।<br /><br />अगली बात यह है कि मुंह में चाहे छाले हों, लेकिन धीरे धीरे हमें अपने दांतों को रोज़ाना दो बार ब्रुश तो अवश्य करना ही चाहिये। थोड़ा बच कर कर लें ताकि किसी छाले को न ज्यादा छेड़ दें। लेकिन इस के साथ ही साथ जुबान को रोज़ाना साफ करना निहायत ही ज़रूरी है....क्योंकि हमारी जुबान की कोटिंग पर अरबों-खरबों जीवाणु डेरा जमाये रहते हैं जिन से रोज़ाना निजात पानी बहुत आवश्यक है....नहीं तो ये दुर्गंध तो पैदा करते ही हैं और साथ ही साथ इन छालों को भी जल्दी ठीक नहीं होने देते। इन मुंह के छालों के होते हुये भी मैं जुबान की सफाई की सिफारिश इसलिये भी कर रहा हूं कि अकसर ये घाव/छाले जुबान की ऊपरी सतह पर नहीं होते हैं। लेकिन अगर कभी इस सतह पर भी छाले हैं तो आप दो-तीन दिन इस टंग-क्लीनर को इस्तेमाल न करियेगा।<br /><br />अब बात आती है......बीटाडीन से कुल्ले करने की। अगर आप छालों की वजह से ज़्यादा ही परेशान हैं तो Betadine ….Mouth gargle से दिन में दो-बार कुल्ले कर लेने बहुत लाभदायक हैं........हमेशा के लिये नहीं............केवल उन एक दो –दिन दिनों के लिये ही जिन दिनों आप इन छालों से परेशान हैं। लेकिन रात के समय सोने से पहले इन छालों वालों दो-चार दिनों में इस बीटाडीन गार्गल से कुल्ला कर लेने बहुत लाभदायक है। यह भी आप की आवश्यकता के ऊपर निर्भर करता है...मेरे बहुत से मरीज़ फिटकरी वाले गुनगुने पानी से ही कुल्ले कर के खुश रहते हैं तो मैं भी उन की खुशी में खुश हो लेता हूं.....।<br /><br />अब जाते जाते एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि बहुत से लोग कुछ कुछ देसी तरह की चीज़े जैसे हल्दी , मलाई, ग्लैसरीन इन छालों के ऊपर लगाते रहते हैं....उन्हें इन से आराम मिलता है ....बहुत बढिया बात है....आयुर्वेद में और भी तो बहुत सी चीज़ें हैं जो हम लोगों को इन छालों के ऊपर लगाने के लिये अपने रसोई-घर से ही मिल जाती हैं , इन का भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिये। ये दादी के नुस्खे नहीं हैं.....दादी की लक्कड़दादी भी ज़रूर इन्हें ही इस्तेमाल करती थी। लेकिन बस एक चीज़ से हमेशा बचें........कभी भूल कर भी एसप्रिन की गोली पीस कर मुंह में न रख लें.........भयंकर परिणाम हो जायेंगे......छालों से राहत तो दूर, मुंह की सारी चमड़ी जल जायेगी।<br /><br />So, take care !! पोस्ट लंबी है लेकिन निचोड़ यही है कि इन छालों की इतनी टेंशन न लिया करें। और जितने भी प्रश्न हों, खुल कर टिप्पणी में लिख दें या ई-मेल करें....एक-दो दिन में जवाब आप के पास अगली पोस्ट के रूप में पहुंच जायेगा। बस, अपने खान-पान का ध्यान रखा करें और तंबाकू-गुटखा-पानमसाला के पाऊच बाहर किसी गटर में आज ही फैंक दें।Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-909068588535692762008-03-25T20:59:00.001+05:302008-03-25T21:02:44.621+05:30मुंह के ये छाले..........भाग..I<p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><br /></span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >मुझे अभी बैठे बैठे ध्यान आ रहा है कि पूरे पच्चीस वर्ष हो गये हैं मुंह के छाले के मरीज़ों को देखते हुये। लगता है कि अब समय आ ही गया है कि मैं इस विषय पर एक सीरिज़ लिख ही डालूं....अपने सारे अनुभव इक्ट्ठे कर के एक ही जगह डाल दूं.....बिल्कुल सीधी सादी भाषा में जिस में कोई इंगलिश में टैक्नीकल शब्दों का प्रयोग ना किया गया हो और अगर किया भी गया हो तो उन्हें पुरी तरह से समझाया जाये।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >मेरे इस विचार का कारण यही है कि इस तरह के मुंह के छाले के इतने मरीज़ मेरे पास आते हैं और वे इतने भयभीत होते हैं कि मैं बता नहीं सकता । शायद यहां-वहां सुनते रहते हैं ना कि 15दिन के अंदर अगर मुंह के अंदर कोई घाव है, छाला है तो वह कैंसर हो सकता है। लेकिन अकसर जब उन को पता चलता है कि उन के केस में ऐसी चिंता करने की कोई बात ही नहीं है तो उन्हें बेहद सुकून मिलता है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >एक बात मैं यहां पर रेखांकित करना चाहता हूं कि जैसे हम कहते हैं ना कि चेहरा हमारे मन का आइना है , ठीक उसी प्रकार ही हमारा मुंह ( </span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" >oral cavity)..<span lang="HI">हमारे शारीरिक स्वास्थ्य का प्रतिबिंब है ...कहने का भाव यही है कि हमारा स्वास्थ्य हमारे मुंह में प्रतिबिंबित होता है। तो, ठीक है मैं तैयार हूं अपना सारा अनुभव आप के साथ बांटने के लिये..............मैं यही प्रयत्न करूंगा कि इस सीरिज़ के दौरान किसी भी पहलू को अनछूया न रखूं।</span></span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" ><span lang="HI"><span></span> </span><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >इस पोस्ट के माध्यम से तो मैं आप सब से यही पूछना चाह रहा हूं कि आप को मेरा यह ख्याल कैसा लगा है.....बेहतर होगा अगर आप अपने विचारों से मेरे को अवगत करवायेंगे। अगर कुछ भी विशेष इस सीरिज़ में आप चाहते हैं कि कवर किया जाये तो आप मुझे इस विषय पर भविष्य में लिखी जाने वाली मेरी विभिन्न पोस्टों पर कह सकते हैं या मुझे कृपया ई-मेल कर सकते हैं.........मैं बिना आप का नाम लिये हुये आप के द्वारा उठाये गये प्रश्नों का उत्तर देने का पूरा प्रयास करूंगा।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >वैसे अगर आप लिखेंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी, प्रोत्साहन मिलेगा.....और मुझे इस विषय पर लिखने के लिये एक दिशा मिलेगी। वैसे बात ऐसी भी है कि अगर आप न भी लिखेंगे तो भी मैं अपने अनुभव इस सीरिज़ में शत-प्रतिशत इमानदारी से बांटता जाऊंगा क्योंकि मेरा काम ही यही है।</span></p><p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> चाहे इस समय मेरे पास कोई खास अजैंडा नहीं है, लेकिन देखते हैं कि जब पिछले पच्चीस सालों के अनुभवों के सागर में गोते लगाने शुरू करूंगा तो क्या क्या निकलेगा...................और हां, मैं जहां भी ज़रूरत होगी विभिन्न प्रकार के मुंह के घावों की तस्वीरें भी आप को दिखाता रहूंगा। यह सब इसलिये करना चाहता हूं कि लोगों में इस स्थिति के बारे में बहुत से भ्रम तो हैं ही, भय-खौफ़ भी है और परेशानी तो है ही...और इसी चक्कर में वे कईं तरह की छालों पर लगाने वाली दवाईयां अपने आप ही खरीद कर लगानी शुरू कर देते हैं जो सर्वथा अनुचित है ।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >बाकी बातें अगली पोस्ट में करेंगे। <o:p></o:p></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-23868819837087576212008-03-23T20:05:00.006+05:302008-03-23T20:34:29.554+05:30दूध-दही की नदियां............लेकिन कहां हैं ये ?<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCDSxr_corM18nXaPtyBLNUo0VuEDlQpJAQkKAxzeFe42eYIpjngz359v2uIoBpuc0G-JVP8Orkj7IXdW2sb8k5ETHaSKUPshvWb-_A6EKXBMu-RXpgtax2OyzPHlUFP0SAmuGMYIUS4Q/s1600-h/3zsa6gl.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCDSxr_corM18nXaPtyBLNUo0VuEDlQpJAQkKAxzeFe42eYIpjngz359v2uIoBpuc0G-JVP8Orkj7IXdW2sb8k5ETHaSKUPshvWb-_A6EKXBMu-RXpgtax2OyzPHlUFP0SAmuGMYIUS4Q/s200/3zsa6gl.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5180946575477257938" border="0" /></a>जैसे ही गर्मी थोड़ी बढ़ने लगेगी हमारे दूध वाले (जिस घर से जाकर हम ताज़ा दूध लाते हैं)...कहने लग जाते हैं कि पशुओं ने दूध सुखा दिया है, इसलिये अब कुछ महीनों तक आधा किलो या एक किलो दूध कम ही मिलेगा। यह आज की बात नहीं है, बचपन से ही देख रहा हूं। चलिये, सब से पहले अपने दूध लाने वाले दिनों की ही यादें थोड़ी ताज़ी कर लें।<br /><br />सब से पहले तो हम लोगों को कभी भी उन दूध वालों के दूध पर कभी भरोसा हुया ही नहीं कि जो घर-घर साईकिल पर या मोटर-साईकिल पर दूध पहुंचाने जाते हैं। हो सकता है कि आप के विचार इस के बारे में बिलकुल अलग हों ,लेकिन मेरे विचार तो भई इस मामले में बहुत रिजीड़ से हैं .....शायद बचपन से ही किसी ने किसी परिवार के सदस्य को ही इस दूध को ढोते देख-देख कर ऐसी धारणा बन चुकी है। और बचपन के दिन याद हैं कि छठी-सातवीं कक्षा में जैसे ही साईकिल चलाना आया, तो दूध लाने के बहाने साईकिल पर घूम कर आने में बहुत मज़ा आता था। लेकिन छोटी छोटी अंगुलियां कभी कभी दूध के उस एल्यूमीनियम के या पीतल के भारी से ढोल को उठा कर थोड़ा थोड़ा दर्द भी करना शुरू कर देती थीं, लेकिन तब इस तरह की छोटी-मोटी बातों की भला किसे परवाह थी। खैर, बहुत मौके आये कि काफी लोगों ने जब ऑफर किया कि डाक्टर साहब, दूध आप के यहां घर ही पहुंच दिया करेंगे ना......लेकिन कभी भी मन माना नहीं ................हर बार यही लगा कि यार, इसे क्या इंटरैस्ट हो सकता है कि यह शत-प्रतिशत खालिस दूध ही मेरे यहां पहुंचायेगा। जब लोग आप की आंखों के सामने सब तरह की हेराफेरी कर रहे हैं तो ऐसे में इतनी ज़्यादा ईमानदारी की उपेक्षा करना भी कहां मुनासिब है।<br /><br />खैर, जहां जहां से भी दूध लिया...........इतने विविध अनुभव रहे कि इस पर एक अच्छा खासा छोटा मोटा नावल लिख सकता हूं लेकिन अब किस किस बात पर ग्रंथ रचूं.........ब्रीफ़ में ही थोड़ा सा बतला रहा हूं कि कभी यह कहा जाता कि आज तो आप दूध दोहने के टाइम से पहले ही आ गये ...इसलिये जानबूझ कर आधा घंटा खड़ा रखा जाता....और अगले दिन जब लेट पहुंचा जाता तो पहले से ही निकला दूध यह कह कर थमा दिया जाता कि आज तो आप लेट हो गये, हमारे बछड़े को भूख लगी थी इसलिये हमें पहले ही निकालना पड़ा। अब पता नहीं असलियत क्या थी....बछड़े की भूख या कुछ और !!.....और भी बहुत सी बातें तो याद आ रही हैं लेकिन उन के चक्कर में पड़ गया तो केंद्र बिंदु से ही कहीं न हट जाऊं।<br /><br />खैर, एक तरफ तो यह बात है कि गर्मी आते ही दूध की कमी की दुहाई दी जाने लगती है, लेकिन कईं वर्षों से मेरे मन में कुछ विचार रोज़ाना कईं कईं बार दस्तक देने के बाद ...हार कर, थक टूट कर लौट जाते हैं.................ऐसे ही कुछ विचारों से आप का तारूफ़ करवाना चाह रहा हूं.......<br /><br />- बाज़ारों में इतना दूध हर समय कैसे बिकता रहता है ?<br />- इतनी शादियों, पार्टियों में इतना दूध लगता है , यह कहां से आता है?<br />- इतना ज़्यादा पनीर बाज़ार में बिकता है, इतनी बर्फी बिकती है, इतना मावा बिकता है, इतनी दही बिकती है ..........सोच कर सिर दुःखता है कि यह सब कहां से आता है?<br />- कुछ शहरों में जगह जगह सिक्का डालने पर मशीन से दूध बाहर आ जाने का भी प्रावधान है, यह दूध कैसा दूध हैर ?<br />- बम्बई में जहां हम रहते थे ....बम्बई सैंट्रल एरिया .....में, तो पास ही में एक बहुत बड़ी दूध की दुकान थी जिस में एक दूध का टैंकर बहुत बड़ी पाइप से दुकान के अंदर रखी एक बहुत बड़ी स्टील की टैंकी को भरने रोज़ाना आता था. यह क्या है ?...........क्या यह शुद्ध दूध है ?<br />- मिलावटी दूध की मीडिया में इतनी बात होती है लेकिन फिर भी डेयरी विशेषज्ञ लोगों को केवल इतना ही क्यों नहीं बता देते कि देखो, इस सिम्पल टैस्ट से आप यह पता लगा सकते हैं कि आप के यहां आने वाला दूध असली है या मिलावटी है......इस में कितना पानी मिला हुया है........ओहो, मैं भी पता नहीं किस सतयुग की बातें उधेड़ने लग जाता हूं.....अब कहां यह मुद्दा रहा है कि दूध में पानी कितना मिला हुया है और न ही अब यह मुद्दा ही रहा है कि जिस पानी से मिलावट की गई है ....वह स्वच्छ है भी या नहीं ......यह सब गुज़रे ज़माने की घिसी-पिसी बातें हैं.....अब तो बस यही फिक्र सताती है कि इस में यूरिया तो नहीं है, साबुन तो नहीं है.................लेकिन यह चिंता भी कभी कभी ही सताती है क्योंकि ज़्यादा समय तो हमें वो सास-बहू वाले सीरियल्स की , पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री के नामांकन की, या किसी विवाहित फिल्मी हीरो के अपनी को छोड़ कर किसी दूसरी अनमैरिड के साथ इश्क लड़ाने की चिंता सताती रहती है...............हमारा अजैंडा भी तो अच्छा खासा बदल गया है।<br /><br />- ये जो बाज़ार में तरह तरह के पैकेटों में भी दूध बिकता है उस की भी शुद्धता की आखिर क्या गारंटी है ?....उन की मिलावट के बारे में भी आये दिन सुनते ही रहते हैं ।<br />- मैंने स्वयं अपनी आंखों से कुछ अरसा पहले देखा कि एक सवारी गाड़ी में सुबह के समय कुछ लड़के लोग अपनी अपनी दूध की कैनीयों में बाथरूम से पानी निकाल निकाल कर उस में उंडेल रहे थे। ये वही लोग हैं जिन के बारे में हम जैसे शहरी लोग यही सोच कर खुशफहमी पालते रहते हैं कि यार, हमारा दूध तो गांव से आता है। लेकिन मेरी उन नौजवानों को रोकने की हिम्मत थी नहीं.......और न ही कभी मैं यह हिमाकत करूंगा..............क्योंकि मैं भी खबरों में पढ़ता रहता हूं कि आज कल चलती गाड़ी में से किसी को फैंकने की वारदातें हो रही हैं।<br /><br />आज तो इस पोस्ट के माध्यम से मैंने एक अच्छे मास्टर की तरह आप के मन में तरह तरह के प्रश्न डालने का काम किया है क्योंकि मैं समझता हूं कि एक अच्छा मास्टर अपने शागिर्दों के मन में विषय के प्रति उत्सुकता जगाने का काम ज़्यादा करता है.....सो, मैंने भी एक तुच्छ सा प्रयास किया है ।<br /><br />यानि कि सब गोलमाल है भई सब गोलमाल है.................ईमानदारी से बतला दूं तो मुझे तो इस चक्रव्यूह से निकलने का कोई समाधान दिख नहीं रहा ।इसीलिये आप के सामने यह मुद्दा रख रहा हूं। कुछ दिन पहले मैं एक आर्थोपैडिक सर्जन का इंटरव्यू कर रहा था...जब दूध के कैल्शियम के सर्वोत्तम स्रोत होने की बात चली तो मैंने यह कहा कि बाज़ारों में तो इतना मिलावटी, सिंथैटिक किस्म का दूध बिक रहा है तो ऐसे में आम बंदे को आप का क्या संदेश है...................उस ने तपाक से उत्तर दिया कि मेरी तो लोगों को यही सलाह है कि दूध अच्छी क्वालिटी का ही खरीदा करें,...चाहे उस के लिये उन्हें कुछ ज़्यादा ही खर्च करना पड़े।<br /><br />मैं उस का यह जवाब सोच कर यही मंगल-कामना करने लगा कि काश ! यह सब कुछ इतना आसान भी होता !!<br /><br />वैसे जाते जाते एक विचार तो यह भी आ रहा है कि शहरों में अब गायें दिखती ही कहां हैं................नहीं ,नहीं , दिखती तो हैं ....जो तिरस्कृत कर दी जाती हैं और वे जगह जगह पर पालीथिनों के अंबारों पर तब तक मुंह मारती रहती हैं जब तक उन की जान ही नहीं निकल जाती या फिर बंबई के फुटपाथों पर भी अकसर एक गाय दिख जाती है जिस के पास बैठी औरत का पेट यह गाय पालती है......<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgadriPo6ehjhinwDSTTo2JrX6UzxZvpe7Wq-url32PpVwxCV5pmra7y0sLIJ3FOon3JyTjCFizVty92fqxpIs1BjtUH87y3rPEx1TiX_O53N-52HugnhHcMSW85IOxn1ITWDaRjO7hacQ/s1600-h/DSC04827.JPG"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgadriPo6ehjhinwDSTTo2JrX6UzxZvpe7Wq-url32PpVwxCV5pmra7y0sLIJ3FOon3JyTjCFizVty92fqxpIs1BjtUH87y3rPEx1TiX_O53N-52HugnhHcMSW85IOxn1ITWDaRjO7hacQ/s200/DSC04827.JPG" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5180950423767955170" border="0" /></a><span><span>वह</span></span> राहगीरों को एक-दो रूपये में चारे की एक दो शाखायें देती हैं जिसे वह उसी की गाय को खिला कर अपने पापों की गठड़ी को थोड़ा हल्का करने की खुश-फहमी पालते हुये आगे दलाल-स्ट्रीट की तरफ़......नहीं तो कमाठीपुरे जाने वाली पतली गली पकड़ लेता है।<br /><br />और रही देश में दूध दही की नदियां बहने वाली बातें, वे तो शायद मनोज कुमार की किसी पुरानी फिल्म में दिखे तो दिखे........................वैसे, छोड़ो आप भी किन चक्करों में पड़ना चाह रहे हो, यह गीत सुनो और इत्मीनान से इंतज़ार करो अपने दूधवाले का , वह भी आता ही होगा !!<br /><br /><object height="355" width="425"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/cIylnRkg9sA&hl=en"><param name="wmode" value="transparent"><embed src="http://www.youtube.com/v/cIylnRkg9sA&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" height="355" width="425"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-49984609110604433622008-03-22T14:11:00.004+05:302008-03-22T14:30:49.377+05:30आज विश्व जल दिवस है..............अ..च्..छा..........तो ?इस दिन अखबारों में इस के बारे में खूब चिल्ला-चिल्ली होती है। वैसे मैंने भी हिंदी के एक अखबार में इस से संबंधित एक विज्ञापन देख कर सुबह सुबह ही एक रस्म-अदायगी कर छोड़ी थी। लेकिन अब लेटे लेटे कुछ विचार आ रहे हैं जिन्हें अपनी स्लेट पर बेफिक्र हो कर लिख रहा हूं।<br /><br />विचार आ रहा है कि तरह तरह के बहुत कुछ दावे हम लोग विभिन्न फोरमों पर सुनते रहते हैं कि पानी के क्षेत्र में हम लोग कुछ समय पहले कहां थे और अब देखो कहां के कहां आ गये हैं। सोच रहा हूं कि सचमुच ही कहां से कहां आ गये हैं.....विचार आया कि बचपन से शुरू कर के देख तो लूं कि आखिर हम ने इस दिशा में आखिर कितने परचम लहरा दिये हैं.....<br /><br /><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);">स्कूल</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);">में</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);">पानी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);"> </span>...... सोच रहा हूं हम लोगों को कहां स्कूल में पानी ले कर जाने की ज़रूरत पड़ती थी !...बस, स्कूल में लगे हैंड-पंप से पानी भी पी लिया करते थे और एक दूसरे के ऊपर थोड़ा बहुत छिड़क कर रोज़ाना होली का आनंद भी लूट लिया करते थे ...जब फिर बड़े स्कूल में गये तो एक बहुत बड़ी पानी की टैंकी से अपनी ज़रूरत पूरी कर लिया करते थे जिस के नीचे 10-12 टूटियां लगी रहती थीं। और अब देखो, हमारे बच्चों को भारी भरकम बस्ते (हम तो भई इन्हें बस्ते ही कहते थे !) के साथ ही साथ इस पानी की बोतल का बोझ उठाने की भी चिंता सताये रहती है। और गर्मी के दिनों में तो अकसर यह बोतल भी कम पड़ जाती है। तो, अपने मन से पूछ रहा हूं कि क्या इस को विकास मान लूं कि छोटे बच्चों को अपनी सेहत के लिये पानी भी उठा कर ले जाने को विवश होना पड़ रहा है। लेकिन बच्चे भी क्या करें और इन के मां-बाप भी क्या करें.......हम ने तो प्राकृतिक संसाधनों का शोषण ही इतना कर दिया है कि क्या कहूं !<br /><br /><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);">हाटेल</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);">में</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);">पानी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);"> .</span>......जब भी बचपन में हम कभी होटल वगैरह या शादी-पार्टी (कहो तो उंगलियों के पोरों पर गिन कर रख दूं !!)..में जाते थे तो पानी पीने से पहले किसी तरह का सोचना थोड़े ही पड़ता था। लेकिन अब जब होटल में जाते हैं तो अकसर पानी की बोतल घर से उठा कर ले जाते हैं। और जब यह बोतल नहीं होती और छोटे बेटे की पानी पीने की इच्छा होती है तो वह झिझकते हुये पूछता है कि पापा, यह वाला पानी पी लूं..............तो हमें भी उतनी ही झिझक के साथ कहना ही पड़ता है कि बेटा, देखना एक-दो घूंट ही पीना, बस अब घर चल ही रहे हैं। तो क्या बच्चों को इस तरह से पानी पीने से भी जब डराया जा रहा है , ऐसे में इसे विकास मान लूं !<br /><br /><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);">विवाह</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);">-</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);">शादियों</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);">का</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);">नज़ारा</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);">तो</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);">देखिये</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 51);">.</span>...बारातियों की सेवा के लिये अब तो प्लास्टिक के गिलास भी आते हैं....<span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">चाहे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">पहले</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">बार</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">चखी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> ( </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">फ्री</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">-</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">फंड</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">में</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> !).....</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">महंगी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">अंग्रेज़ी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">शराब</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">के</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">नशे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">में</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">धुत</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">अस्त</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">-</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">व्यस्त</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">सी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">गुलाबी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">पगड़ी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">डाल</span><span style="color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">कर</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">झूमता</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">हुया</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">, </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">तंदूरी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">चिकन</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">एक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">टंगड़ी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">को</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">अपने</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">गुटखे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">से</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">रंगे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">हुये</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">दांतों</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">से</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">छीलते</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">हुये</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">दुल्हे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">का</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">मौसा</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">उस</span><span style="color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">पानी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">के</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">गिलास</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">का</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">एक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">ही</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">घूंट</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">भरेगा</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> , </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">लेकिन</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">सुबह</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">तो</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">इस</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">तरह</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">के</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">सैंकड़ों</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">प्लास्टिक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">के</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">गिलास</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">उस</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">बैंकेट</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">हाल</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">के</span><span style="color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">साथ</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">लगते</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">नाले</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">को</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">ब्लाक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">नहीं</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">करेंगे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">तो</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">और</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">क्या</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">करेंगे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">..</span>...............समझ में नहीं आ रहा कि पानी परोसने के इस नये अंदाज़ को क्या विकास मान लूं !<br /><br /><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">वो</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">दस</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">रूपये</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">वाली</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">पानी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">बोतल</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">खरीदने</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">को</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">विकास</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">मान</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">लूं</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);"> ?.</span>..........ट्रेन में दूध के लिये बिलखता किसी का नन्हा मुन्ना बच्चा रो-रो कर जब हार जाता है लेकिन उसे दूध नसीब नहीं होता, तो वह आखिर हार कर अपनी बिल्कुल कमज़ोर सी मां की सूखी छाती पर जब टूट पड़ता है और पास ही में मेरे जैसा कोई बाबू जैंटलमैन उस दस रूपये की पानी की बोतल को ज़रूरत न होने पर भी इसलिये बड़े ठाठ से पी रहा होता है कि यार, स्टेशन आ रहा है और इसे पिये बिना कैसे फैक दूं...... तो क्या इसे विकास मान लूं......................नहीं, नहीं , धिक्कार है ऐसी पानी की बोतल पर जिस पर खर्च किये पैसे से एक बच्चे का पेट भर सकता था।<br />वैसे तो जब देश में पेय-जल की समस्या पर हो रहे सैमीनारों के दौरान स्टेज पर इस तरह के पानी की दर्जनों बोतलें नज़र आने पर जो विचार मेरे मन को उद्वेलित करते हैं उन का मैं यहां पर जिक्र नहीं करना चाहूंगा..........फिर कभी देखूंगा....अभी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ।<br />पीछे कितना आ रहा था कि इन पानी की बोतलों में यह है ,वो है, कीटनाशकों के अवशेष हैं.....लेकिन क्या इन की बिक्री में कोई कमी दिख रही है, मुझे तो नहीं लगता। यही तो वास्तविक विकास है , और क्या !!<br /><br /><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">पानी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">शुद्धिकरण</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> ...</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">एक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">अच्छा</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">-</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">खासा</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">उद्योग</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">.</span>................बचपन में नानी के यहां जाते थे तो हैंड-पंप का मीठा पानी पी कर मजा करते थे। थोड़े बड़े हुये तो देखा कि मां पानी की टूटी के ऊपर मल-मल के कपड़े की एक लीर बांध देती है ताकि मिट्टी रूक जाये और सांप वगैरह न आ जाये........थोड़े और बड़े हुये तो देखा कि एक फिल्टर सा पानी को स्टोर करने के लिये इस्तेमाल किया जाने लगा है......कुछ समय बाद शायद उस में लगी कैंडल्स के साथ भी प्राबलम होने लगी तो एक छोटा सा फिल्टर पानी की टूटी पर लगाने वाला ही 100-150 रूपये का चल निकला। बचपन में तो पानी के शुद्धिकरण के बारे में कभी सुना ही न था...बस एक बार याद है कि बड़े भाई को दस्त लगे थे तो, हमारे सामने रह रहे एक झोला-छाप नकली डाक्टर (तब पता नहीं था कि कौन असली और कौन नकली होता है, हमारा बचपन गांव जैसे माहौल में ही बीता है !)…..ने एक टीका लगा कर यह निर्देश दे दिया था कि पप्पू (मेरा बड़ा भाई ) को दो-तीन दिन पानी उबाल कर ही देना होगा।<br /><br />वैसे सोचता हूं कि कितना आसान है मरीज़ों को इस तरह की सलाह दे देना कि पानी उबाल कर पी लेना.....लेकिन क्या यह इतना प्रैक्टीकल आइडिया है?......चूंकि मैं अपनी ही स्लेट पर लिख रहा हूं और ठीक-गलत की किसी तरह की परवाह किये बिना सब कुछ लिख रहा हूं कि मुझे कभी भी यह आइडिया प्रैक्टीकल लगा ही नहीं। हां, जब तक घर में कोई बीमार है तो समझ में आता है कि घर की गृहिणी यह एक्स्ट्रा काम खुशी खुशी कर लेगी...........लेकिन जिस तरह के ज़्यादातर लोगों के हालात हैं , परिस्थितयां हैं , ऐसे में मुझे इस तरह की किसी को सलाह हमेशा के लिये दे देना भी एक धकौंसलेबाजी ज़्यादा लगती है। <span style="font-weight: bold;">लेकिन</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जो</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लोग</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">यह</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पानी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उबाल</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पीने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अपनी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आदत</span> <span style="font-weight: bold;">निभा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रहे</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हैं</span><span style="font-weight: bold;"> , </span><span style="font-weight: bold;">वे</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बधाई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पात्र</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हैं</span><span style="font-weight: bold;">............</span><span style="font-weight: bold;">और</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उन्हें</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हमेशा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">यह</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आदत</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कायम</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रखनी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">चाहिये</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">क्योंकि</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पानी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">को</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उबाल</span> <span style="font-weight: bold;">कर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पीना</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बहुत</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">फायदेमंद</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span><span style="font-weight: bold;">है।</span><br /><br /></span>वैसे तो मुझे इन क्लोरीन की गोलियों की भी एक आपबीती याद है। हमारे शहर में 1995 में बाढ़ आ गई.....मैं और मेरी मां हम जब एक-डेढ़ महीने बाद वापिस अपने घर पहुंचे तो वहां पर यह बात की बहुत चर्चा थी कि पानी में क्लोरीन की गोलियां डाल कर पीना होगा ताकि कीटाणुरहित जल का ही सेवन किया जाये। लेकिन सारा शहर छान लेने पर भी जब वे नहीं मिलीं तो हम ने उस मटमैले पानी को उबाल कर ही कितने दिनों तक इस्तेमाल किया ।<br />लेकिन अब मैं अपने मरीज़ों को इतना ज़रूर कहता हूं कि आप में से जो लोग भी अफोर्ड कर सकते हैं वे कोई भी इलैक्ट्रोनिक संयंत्र रसोई-घर में ज़रूर लगवा लें...<span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">क्योंकि</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">यह</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">अब</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">किसी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">तरह</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">भौतिक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">सम्पन्नता</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">का</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">प्रतीक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">न</span><span style="color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">रह</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">कर</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">एक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">ज़रूरत</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">ही</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">बन</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">चुका</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);">है।</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 102, 0);"> </span>चूंकि ये अभी भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं.....लगभग पांच हज़ार की मशीन और लगभग एक हज़ार रूपये की सालाना एएमसी.......इसलिये जब रतन टाटा ने नैनो कार के दर्शन करवाये तो उन्होंने आम आदमी के लिये एक जल-शुद्धिकरण यंत्र बाज़ार में उतारने की बात कही तो मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे नैनो से भी ज़्यादा खुशी इस यंत्र की होगी..।<br /><br />अब छोड़े इन बातों को इधर ही, इन बातों को खींचने की तो कोई लिमिट है ही नहीं, जितना खींचेंगे खिंचती चली जायेंगी। तो , मैंने भी अपने अंदाज़ में विश्व जल दिवस मना लिया है। मैंने आज सुबह सुबह घऱ में कल ही लाये गये नये मटके से पानी ग्रहण कर लिया है। मेरी प्यास तो उस लंबी सी डंडी वाले स्टील के बर्तन से मटके से निकला पानी ही बिना मुंह लगाये पी कर ही बुझती है। <a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEXXYmBicXLzNDdIaNLc1GdQE1CLZbDByiaPzkZ1ajM0gK0cEih-2bSZ97tDvr_8SzPACTqDiPKuK3DsXsEZUVE3NAdM8zgfmZ5dkT7m2TP_a7sALsScPOItQa4X_wCF9szmfrgUAs09Y/s1600-h/DSC05713.JPG"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEXXYmBicXLzNDdIaNLc1GdQE1CLZbDByiaPzkZ1ajM0gK0cEih-2bSZ97tDvr_8SzPACTqDiPKuK3DsXsEZUVE3NAdM8zgfmZ5dkT7m2TP_a7sALsScPOItQa4X_wCF9szmfrgUAs09Y/s200/DSC05713.JPG" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5180487610977040066" border="0" /></a>एक साल में लगभग 8-9 महीने जब तक कि मटके के ठंडे पानी से दांत में सिहरन नहीं उठने लग जाती , तब तक तो मैं तो भई इसी तरह से ही पानी पीने का आदि हूं। हां, वो बात अलग है कि मटके में पानी उस इलैक्ट्रोनिक संयंत्र द्वारा शुद्ध किया ही डाला जाता है। <span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">सोचता</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">हूं</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">कि</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">इस</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">जालिम</span> <span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">मटके</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">के</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">पानी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">महक</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">में</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">भी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">क्या</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">गज़ब</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">बात</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">है</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">कि</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">बंदे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">को</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">मिट्टी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">सौंधी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">सौंधी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">खुशबू</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">भी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">साथ</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">में</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">हर</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">बार</span><span style="color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">उस</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">माटी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">याद</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">दिलाती</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">है</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">जिससे</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">उस</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">के</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">शरीर</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">प्यास</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">ही</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">नहीं</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">रूह</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">की</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">प्यास</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">भी</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">मिटती</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">दिखती</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">है।</span> अब मुझे लगता है कि फिलासफी झाड़ने पर उतरने लगा हूं..............इसलिये पोस्ट को तुरंत पब्लिश करने में ही समझदारी है।<br /><br /><object height="355" width="425"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/ABpLjADMH04&hl=en"><param name="wmode" value="transparent"><embed src="http://www.youtube.com/v/ABpLjADMH04&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" height="355" width="425"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-11024155544162890062008-03-21T18:37:00.004+05:302008-03-21T18:48:47.258+05:30आखिर ये हैं क्या---होली के रंग, रंगीन मिट्टी, सफेदी या चाक मिट्टी....<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgi7w0-rPPmEPdudcXs-3rYjUC0AfKg-H-CTvTAfCNXTXQIwW6dbqp0jACCNjSRvdhLZITsh_E7-f0Jk5CmqAXnwJCtYlsNs8ik5fCQG6l8IqIUZoUNV1GUR-AlXReRDCfuS11Q0-C26GM/s1600-h/DSC05701.JPG"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgi7w0-rPPmEPdudcXs-3rYjUC0AfKg-H-CTvTAfCNXTXQIwW6dbqp0jACCNjSRvdhLZITsh_E7-f0Jk5CmqAXnwJCtYlsNs8ik5fCQG6l8IqIUZoUNV1GUR-AlXReRDCfuS11Q0-C26GM/s200/DSC05701.JPG" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5180181482888050322" border="0" /></a><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >बचपन में जहां तक होली की यादें हैं उन में बस रेहड़ीयां ही याद हैं जिन के ऊपर छोटी-छोटी थैलियों में तरह तरह के रंग बिका करते थे। लेकिन आज जब बाज़ार में तो कुछ अजीब ही नज़ारा देखने को मिला......तरह तरह के रंग तो बिक रहे थे...लेकिन जिस तरह से बिक रहे थे , वो तरीका देख कर बहुत अचंभा हुया । आप भी इन तस्वीरों में देख सकते हैं कि इतनी इतनी बड़ी बोरियों में ये तथाकथित रंग बिक रहे हैं कि यकीन ही नहीं हो पा रहा कि ये रंग ही हैं। इन को देख कर हंसी ज्यादा आ रही है क्योंकि ये तो रंगीन मिट्टी , चाक, सफेदी के इलावा तो मुझे कुछ भी नहीं लग रहे। लेकिन अगर आप को इस तरह से बिक रहे रंगों के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी हो<span style=""> </span>तो कृपया बतलाईएगा। </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >इन बिक रहे रंगों की भी अलग अलग</span><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLaBgoQq3Q15RD5Udp4vE8X6TTdbKhZWuHas_dwGOGZ8fA0y6lIderM_tEj1_RSPpcY8PV1VhiJCwPscOgb5FjVGYUkpvf9y-7nzqhk5WcL3m1PlOGb0sSeGF8f7R0nWltT-D0izF1_0U/s1600-h/DSC05708.JPG"><img style="margin: 0pt 0pt 10px 10px; float: right; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLaBgoQq3Q15RD5Udp4vE8X6TTdbKhZWuHas_dwGOGZ8fA0y6lIderM_tEj1_RSPpcY8PV1VhiJCwPscOgb5FjVGYUkpvf9y-7nzqhk5WcL3m1PlOGb0sSeGF8f7R0nWltT-D0izF1_0U/s200/DSC05708.JPG" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5180181882320008866" border="0" /></a><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" > श्रेणीयां हैं....एक है बीस रूपये किलो और दूसरी क्वालिटी थी चालीस रुपये किलो </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >! <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >अब मेरी हिमाकत देखिये....मैं आप सब के लिये इन की फोटो खींचने में इतना तल्लीन था कि मुझे यह भी नहीं पता कि बेटे ने गुब्बारों और पिचकारी के इलावा कुछ रंग भी खरीदे हैं या नहीं। अगर रंग भी खरीदे हैं तो कल पूरा ध्यान रखना पड़ेगा। वैसे मैंने दुकानदार से पूछ ही लिया कि वैसे इन रंगों में होता क्या है। उस का जवाब भी तो पहले ही से तैयार था.........</span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" lang="HI" > </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >“</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >यह हमें कुछ नहीं पता...बस जो पीछे से आ रहा है, हम बेच देते हैं।</span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >” </span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >उस की बात सुन मेरे मन में क्या विचार आया, अब यह भी आप को बताना पड़ेगा क्या </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!<span style=""> </span><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJjJO_nFGfYKkb1s6WYiK_aTjCPYuN1sA1h_xgHxyRI48JtUtZK72Pk2fVmQp7TxLlZ_3jHkpe3PuYIqgNNDdMXRqfcSdjh5VouxfhRnoSggCy8d_sGHGobAzmUCE3M3T8z0gtSEx4gXM/s1600-h/DSC05711.JPG"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJjJO_nFGfYKkb1s6WYiK_aTjCPYuN1sA1h_xgHxyRI48JtUtZK72Pk2fVmQp7TxLlZ_3jHkpe3PuYIqgNNDdMXRqfcSdjh5VouxfhRnoSggCy8d_sGHGobAzmUCE3M3T8z0gtSEx4gXM/s200/DSC05711.JPG" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5180182294636869298" border="0" /></a><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span><span><span>चलिये</span></span></span>, छोड़िये....काहे के लिये होली मूड को खराब किया जाए </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" > <br /><o:p></o:p></span></p> <br />अच्छा तो आप सब को होली की बहुत बहुत मुबारकबाद। और यह लीजिये हमारी तरफ से होली का तोहफा.....बस क्लिक मारिये और सुन लीजिये। <span style="font-weight:bold;"></span><br /><object width="425" height="355"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/A3pGCfCcw10&hl=en"></param><param name="wmode" value="transparent"></param><embed src="http://www.youtube.com/v/A3pGCfCcw10&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" width="425" height="355"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-68139410546752416952008-03-21T05:45:00.002+05:302008-03-21T06:10:44.997+05:30रंगों का त्योहार.......न लाये रोगों की बौछार !<p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >कहते हैं कि भगवान कृष्ण टेसू के फूलों से होली खेला करते थे जो कि होली का एक पारंपरिक रंग है। ये फूल तो वैसे औषधीय गुणों से भी लैस होते हैं। इन्हें एक रात के लिये पानी में भिगो दिया जाता है, खुशबूदार संतरी पीले रंग के लिये इन्हें उबाला भी जा सकता है। प्रकृति में तो सभी रंगों का भंडार है और इन्हीं से प्राकृतिक रंग बनाये जाते हैं। कुछ रंग तो हम आसानी से घर पर ही बना सकते हैं।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >जैसे जैसे समय बदलता गया.....अन्य चीज़ों के साथ-साथ होली का स्वरूप भी अच्छा खासा बदला हुया दिख रहा है। होली के दिन हम चमकीले रंग वाले पेंट से लोगों के चेहरों को पुते हुये देखते हैं। और कुछ नहीं तो पानी से भरी बाल्टीयां, पानी से भरे गुब्बारे राहगीरों पर फैंक कर ही उन्हें परेशान करने का एक सिलसिला कईँ सालों से शुरू है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >होली रंगों और खुशियों का त्योहार है...लेकिन बाज़ार में बिकने वाले रंग कोरे कैमिकल्स हैं....इन में ऐसे अनेक पदार्थ मौजूद रहते हैं जो हम सब की सेहत तो खराब करते ही हैं, इस के साथ ही साथ ये कैमिकल्स पानी में रहने वाले जीवों के लिये भी विषैले होते हैं। इन्हीं कैमिकल्स की वजह से चमड़ी एवं आंखों के रोगों के साथ-साथ दमा एवं एलर्जी भी अकसर हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार यदि दिल्ली की आधी जनसंख्या भी करीब 100ग्राम कैमिकल्स युक्त रंग प्रति व्यक्ति इस्तेमाल करे तो इससे लगभग 70टन कैमिकल्स यमुना में मिलने की संभावना रहती है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span></span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >विभिन्न तरह के पेंटस जिन में कारखानों में इस्तेमाल होने वाले रंग, इंजन आयल, कापर सल्फेट, क्रोमियम आयोडाइड, एल्यूमीनियम ब्रोमाइड, लैड ऑक्साइड एवं कूटा हुया कांच .........ये सब कैमिकल्स को निःसंदेह चमकीला तो बना देते हैं, लेकिन हमारे शरीर को इनसे होने वाले नुकसान के रूप में बहुत बड़ा मोल चुकाना पड़ता है। इन के दुष्प्रभावों से हमारा शरीर, मन और मस्तिष्क कईं बार स्थायी तौर पर प्रभावित हो सकता है। बाज़ार में उपलब्ध कुछ रासायनिक रंगों की थोड़ी चर्चा करते हैं.....</span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 0);" class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >काला रंग (लैड ऑक्साइड</span></p><p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 0);">).</span>..यह रंग गुर्दे व मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालता है। </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span style="color: rgb(0, 153, 0);">हरा</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">रंग</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">( </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">कॉपर</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">सल्फेट</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">)..</span>.इसे आम भाषा में नीला थोथा कहते हैं। इस को लगाने से आँखों की एलर्जी व अस्थायी अंधापन हो सकता है, वैसे तो इस कैमिकल से होने वाले भयंकर घातक प्रभावों के बारे में तो आप सब भली-भांति परिचित ही हैं। </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span style="color: rgb(51, 0, 51);">बैंगनी</span><span style="color: rgb(51, 0, 51);"> </span><span style="color: rgb(51, 0, 51);">रंग</span><span style="color: rgb(51, 0, 51);">( </span><span style="color: rgb(51, 0, 51);">क्रोमियम</span> <span style="color: rgb(51, 0, 51);">ऑयोडाइड</span><span style="color: rgb(51, 0, 51);">)...</span>इस के इस्तेमाल से दमा ओर एलर्जी होती है।</span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span style="color: rgb(153, 153, 153);">सिल्वर</span><span style="color: rgb(153, 153, 153);"> </span><span style="color: rgb(153, 153, 153);">रंग</span><span style="color: rgb(153, 153, 153);">( </span><span style="color: rgb(153, 153, 153);">एल्यूमीनियम</span> <span style="color: rgb(153, 153, 153);">ब्रोमाइड</span><span style="color: rgb(153, 153, 153);">).</span>..यह रंग कैंसर पैदा कर सकता है। </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span style="color: rgb(255, 0, 0);">लाल</span><span style="color: rgb(255, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(255, 0, 0);">रंग</span><span style="color: rgb(255, 0, 0);"> ( </span><span style="color: rgb(255, 0, 0);">मरक्यूरिक</span> <span style="color: rgb(255, 0, 0);">सल्फाइट</span><span style="color: rgb(255, 0, 0);">).</span>..इस के इस्तेमाल से चमड़ी का कैंसर, दिमागी कमज़ोरी, लकवा हो सकता है और दृष्टि पर असर पड़ सकता है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span></span> </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >तो फिर क्या सोचा है आपने </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >?.....</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >सुरक्षित होली खेलने के लिये हमें प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग करना चाहिये जो कि कईं जगहों पर उपलब्ध होते हैं लेकिन विभिन्न प्रकार के फूलों से इन्हें घर में ही प्राप्त कर लेते हैं। कईं लोग लाल चंदन पावडर से होली खेलते हैं। एक बात है ना....होली कैसे भी खेलें...लेकिन प्रेम से....होली को गंदे तरीके से खेल कर ना तो हमें अपना और ना ही किसी और का मज़ा किरकिरा करना है। जहां तक हो सके...अपने मित्रों, रिश्तेदारों एवं परिचितों के साथ ही होली खेलें....ऐसे ही हर राहगीर पर पानी फैंकना तो होली ना हुई</span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >वैसे मुझे इस समय ध्यान आ रहा है कि होली के त्योहार पर फिल्माए गये फिल्मों के सुप्रसिद्ध गीत जो सुबह से ही रेडियो, केबल और लाउड-स्पीकरों पर उस दिन बजते रहते हैं, वे लोगों के उत्साह में चार चांद लगाने का काम करते हैं। लेकिन मेरी पसंद में सब से ऊपर शोले फिल्म का यह वाली गीत है........जिसे मैं होली के बिना भी बार-बार सुन लेता हूं और इस में ऊधम मचा रहे हर बंदे के फन की दाद दिये बिना नहीं रह सकता। आप को इन सब हुड़दंगियों के साथ यह उत्सव मनाने से कौन रोक रहा है ............तो मारिये एक क्लिक और हो जाइए शुरू</span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" > !!</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-size:78%;" >PS…..</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:78%;" lang="HI" >पंकज अवधिया जी , आप तो वनस्पति विज्ञान के बहुत बड़े शोधकर्त्ता हो, मेरी एक समस्या का समाधान कीजिये। मैं इन मच्छरों से बहुत परेशान हूं......सुबह सुबह ढंग से पोस्ट भी नहीं लिखने देते। इसलिये हम सब लोगों को आप यह बतलायें कि क्या कोई ऐसा घास,कोई ऐसा पौधा नहीं बना ...या कोई ऐसी चीज़ जो इन पौधों से प्राप्त होती हो जिस की धूनि जला कर इन मच्छरों को दूर भगाया जा सके। मुझे आशा है कि आप के पास इस का भी ज़रूर कोई फार्मूला होगा......तो शेयर कीजियेगा। दरअसल बात यह भी है ना कि इन कैमिकल युक्त मच्छर-भगाऊ या मच्छर-मारू टिकियों एवं कॉयलों के ज़्यादा इस्तेमाल से भी डर ही लगता है....रात को तो चलिये मज़बूरी होती है लेकिन सुबह उठ कर इन्हें इस्तेमाल करने की इच्छा नहीं होती। अवधिया जी, आप ही इस परेशानी का हल निकाल सकते हैं। एडवांस में धन्यवाद और होली की मुबारकबाद....। </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><b><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >रूकावट के लिये खेद है............अब आप होली के रंग में रंगे इन हुड़दंगियों के जश्न में शामिल हो सकते हैं। <o:p></o:p></span></b></p> <br /><object height="355" width="425"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/G87UyGSJGB4&hl=en"><param name="wmode" value="transparent"><embed src="http://www.youtube.com/v/G87UyGSJGB4&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" height="355" width="425"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-36704198634167846202008-03-19T19:53:00.005+05:302008-03-19T21:27:46.265+05:30अब इस कंबल के बारे में भी सोचना पड़ेगा क्या !<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_j-Pe6Im5QDS1FVIaUF0hj4USD8LKTmFYIHsLE4pB49d79F2C7bpT8NI9egto5uefiOeZGpfvHuaY6ucGeUN8e10Rg4ydGCR6H47DLEbHPAJA1rSq5q_rIxHW-LdbQ4VRY4pwHAeF_Fg/s1600-h/DSC0074.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_j-Pe6Im5QDS1FVIaUF0hj4USD8LKTmFYIHsLE4pB49d79F2C7bpT8NI9egto5uefiOeZGpfvHuaY6ucGeUN8e10Rg4ydGCR6H47DLEbHPAJA1rSq5q_rIxHW-LdbQ4VRY4pwHAeF_Fg/s320/DSC0074.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5179460019045968402" border="0" /></a><br /><p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><br /></span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं जिन्हें हम अकसर जाने-अनजाने नज़रअंदाज़ कर ही देते हैं...आज कुछ ऐसी ही बातों की चर्चा करते हैं। मुझे किसी के भी यहां जाकर कंबल ओढ़ना कभी नहीं भाता। अब आप भी सोच रहे होंगे कि यह कौन सी नई सनक सवार हो गई भला </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!!....</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >जी नहीं, यह कोई सनक-वनक नहीं है। आज कल के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो यह एक अच्छा खासा मुद्दा है।</span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >मुझे किसी के यहां जाकर और यहां तक अपने ही घर में कंबल ओढ़ने में बहुत संकोच होता है। आप इस का कारण समझ ही रहे होंगे </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!....</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >इस का कारण केवल यही है कि अकसर हमारे घरों में इस्तेमाल होने वाले ये कंबल वगैरा विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं की खान होते हैं।</span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >वह पल बहुत अजीब लगता है जब कभी घरों में इस तरह की बातें चलती हैं कि ये कंबल देख रहे हो, जब मुन्ने के पापा ने नई नई इंटर पास की थी...तब खरीदा था...और आज भी देख लो, वैसा का वैसा ही लगता है। लेकिन लगता ही है ना, लगने का क्या है........जो इस ने अरबों-खरबों कीटाणुओं को अपने अंदर छिपाया हुया है , उस का उल्लेख कौन करेगा </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >?.....</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >जी हां, हमारे घरों में इस्तेमाल हो रहे कंबल कुछ इसी तरह के ही होते हैं। इन को ड्राई-क्लीन करवाने का कोई कल्चर न तो हमारे देश में कभी रहा और मेरे ख्याल में कभी हो ही नहीं पायेगा। वैसे बात वह भी तो है कि जब दो-साल में एक गर्म-सूट ड्राई-क्लीन करवाने में ही आम आदमी के पसीने छूट जाते हैं, तो क्या अब हम कंबलों को ड्राई-क्लीन करवाने के सपने कैसे देखें </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >?....</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >बात बिल्कुल सही भी है...वैसे हम लोगों के कपड़े खरीदते समय निर्णय भी तो कईं बार इस बार पर ही निर्भर करते हैं कि भई, कहीं इस को ड्राई-क्लीन करवाने की ज़रूरत तो नहीं ना पड़ेगी।</span></p><p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" ><span><br /></span></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >खैर बात कंबल की चल रही थी......और वैसे भी हम अपने घरों में देखते हैं कि इन कंबलों का तो बंटवारा कहां होता है कि यह पपू का है , यह टीटू वाला है....। और यहां तक मेहमान वगैरा भी वही कंबल इस्तेमाल करते हैं। और जब कभी किसी की तबीयत थोड़ी नासाज़ हो, कोई खांसी-जुकाम से बेज़ार हो ..... तो यही कंबल पसीने से लथ-पथ होते हैं। और फिर अगले दिन वही कंबल दूसरे सदस्य द्वारा ओढ़ा जाता है। संक्षेप में बात करें तो यही है कि इस प्रकार से कंबलों का प्रयोग करना स्वास्थ्य के लिये ठीक नहीं है।</span></p><p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" > </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >तो क्या करें अब कंबल लेना भी बंद कर दें </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >?....</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >नहीं, नहीं ,ऐसी बात नहीं है। लेकिन पहले लोग जो कंबल के ऊपर सूती कवर डाल कर रखते थे, यह बहुत ही बढ़िया आइडिया है क्योंकि इन्हें थोड़े थोड़े समय के बाद धो दिया जाता था ताकि अंदर कंबल काफी हद तक साफ़-स्वच्छ रह सके। और फिर कंबल को नियमित तौर पर धूप में सेंका भी जाता था ..ताकि उसे कीटाणुरहित किया जा सके। इसलिये हमें इन सूती कवरों को वापिस इन कंबलों पर लगाना चाहिये। नहीं तो इन महंगे ग्लैमरस कंबलों बिना किसी प्रकार के कवर के बीमारियों की खान बना डालें ...,यह फैसला हमारे अपने हाथ में ही है।</span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >आज कल जो नये नये मैटीरियल के कंबल बाज़ारों में दिखने लग गये हैं ...कहने को तो कह देते हैं कि वे धोये जा सकते हैं । लेकिन हम लोग अकसर प्रैक्टिस में देखते हैं कि कौन इन्हें नियमित धोने के चक्कर में पड़ता है। वैसे मुझे याद आ रहा है कि एक बार एक ऐसे ही कंबल को धोने के बाद मैंने भी उसे बाहर बरामदे में सुखाने के लिये बाहर घसीटने में थोड़ी मदद की थी........यकीन मानिये , नानी याद आ गई थी। कहने से भाव है कि मान भी लिया जाये कि यह धोये जा सकते हैं लेकिन यह आइडिया कुछ ज़्यादा प्रैक्टीकल नहीं है....हां, अगर कहीं ये नियमित धुलते हैं तो बहुत बढ़िया बात है।</span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >लेकिन जहां भी संभव हो, इन कंबलों को सूती कवह डले ही होने चाहियें क्योंकि इन में जमा धूल-मिट्टी-जीवाणु भी तरह तरह की एलर्जी बढ़ाने में पूरी भूमिका निभाते हैं। लेकिन लोग तो अकसर एलर्जी के लिये उत्तरदायी एलेर्जन ढूंढने की अकसर नाकामयाब कोशिश करते हैं लेकिन अपने आसपास ही इस तरह के एलर्जैन्ज़ की तरफ़ ज़्यादा ध्यान ही नहीं देते। तो, आगे से ध्यान दीजियेगा।</span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >यह तो हुई कंबलों की बात, लेकिन परदों का भी कुछ ऐसा ही हाल होता है। अकसर इन्हें तब तक धोया नहीं जाता जब तक इन्हें देखते ही उल्टी करने जैसा न होने लगे। ये भी कईं कईं महीनों तक गंदगी समेटे रहते हैं...। वैसे तो हर घर में ही ..लेकिन जिन घरों में एलर्जी के केस हैं, सांस में तकलीफ़ के मरीज़ हैं, दमा के मरीज़ हैं....उन के लिये तो ये सावधानियां शायद दवाई से भी बढ़ कर हैं। लेकिन हमारी समस्या यही है कि हमें परदे तो चाहिये हीं, लेकिन साथ में हमारी सम्पन्नता का दिखावा भी तो होना चाहिये। इसी चक्कर में इतने भारी भारी परदे शो-पीस के तौर पर टांग दिये जाते हैं कि न तो उन्हें नियमित धोते बने और न ही उतारते बने। अकसर इन्हें धोने के नाम पर कईं बार तो बाई ही काम छोड़ कर भाग जाये </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!!...</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >आखिर हमें सीधे-सादे हल्के फुल्के ऐसे परदे टांगने में दिक्कत क्या है जिन्हें हम नियमित धुलवा तो सकें।</span></p><p class="MsoNormal"></p><p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >लेकिन यह बात परदों तक ही तो सीमित नहीं है ना.....आज कल हम लोगों के घर में सोफे सैट देख लो। इन को भी देख कर उल्टी आती है। ये भी अपने अंदर इतनी गंदगी समेटे होते हैं कि क्या कहें </span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!!.....</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >कारण वही कि सब कुछ ..सीट कवर, कुशन वगैरा के ऊपर महंगे महंगे कपड़ों के कवर फिक्स हुया करते हैं..........और पता नहीं इन के ऊपर कितने लोगों का पसीना लगा रहता है, कितने छोटे छोटे बच्चों ने इन्हें कितनी ही बार पवित्र किया होता है( समझ गये ना आप</span><span style="line-height: 115%;font-size:12;" >!)…, </span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >कितनी बार इन के ऊपर खाने पीने की चीज़े गिर चुकी होती हैं, कितनी बार बच्चे गंदे पैरों से इन के ऊपर उछलते रहते हैं........लेकिन इन के कवर चेंज करने का झंझट भला कौन बार बार ले सकता है .....भई खूब पैसा लगता है.....ऐसे में <span></span></span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" > सालों तक ये गंदगी से भरे रहते हैं।</span><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" > एक दूसरी समस्या इन सोफा-सेटों के साथ यह भी तो है ना कि ये सब इतने भीमकाय होते हैं कि इन के रहते ठीक तरह से कमरे की सामान्य सफाई भी तो नहीं हो पाती ।</span></p><p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" > अकसर मेरी आब्जर्वेशन है कि लोगों को इन बातों की खास फिक्र है नहीं, उन्हें तो बस अपनी बैठक को चकाचक रखने में ही मज़ा आता है। इसीलिये कईं घरों में तो बच्चों को डराया जाता है कि खबरदार, अगर तुम सोफे की तरफ भी गये, पता है जब कोई आ जाता है तो कितनी शर्म आ जाती है। मेरा इस के बारे में विचार एकदम क्रांतिकारी है ...............शायद बहुत से लोगों को न पच पाये............मेरा विचार है कि घर आप का है, आप के रहने के लिये, बच्चों के लिये ताकि वे पूरी मस्ती कर सकें..............मज़ा कर सकें ताकि बड़े हो कर उन के पास अनगिनत मीठी यादें हों...........इसलिये घरों में सीधे-सादे फ्रेम वाले सोफे हों, कुर्सियां हों जिन के ऊपर कपड़े के इस तरह के कवर हों कि उन्हें आसानी से धुलाया जा सके। इस से एक तो आपका ड्राइंग-रूम साफ-स्वच्छ दिखेगा....दिखेगा ही नहीं , होगा भी.....और बच्चे भी खुश रह कर बिना किसी रोक टोक के जहां मरजी मस्ती कर सकते हैं, ऊधम मचा सकते हैं। और रही बात मेहमानों की , वे ना ही<span style=""> </span>तो महंगे परदे और न ही महंगे, भारी भरकम सोफे देखने आ रहे हैं और न ही एक काजू और दो किशमिश के दाने खाने के लिये......अतिथि के लिये हमारा सत्कार हमारी आंखों से झलकता है.....उसे चाहे हम चटाई पर बैठा कर सादा पानी ही पिला दें....वो हमारी आंखों को पढ़ता है कि उस का स्वागत हुया है या नहीं।</span></p> <p class="MsoNormal"><span style="line-height: 115%;font-family:Mangal;font-size:12;" lang="HI" >पता नहीं ...मैं भी कहां का कहां निकल जाता हूं...मेरा बेटा वैसे मुझे अकसर चेतावनी देता रहता है कि बापू, अगर तुम ने ब्लोगगिरी में कुछ करना है ना तो कुछ टैक्नीकल लिखा करो, यह फलसफा आज कल कोई पढ़ना नहीं चाहता । खैर, यह उस का अपना ओपिनियन है और उसे अपना ओपिनियन रखने का पूरा पूरा हक है। लेकिन मुझे जो अच्छा लगता है , मैं तो भई लिख कर फारिग हो जाता हूं, और मुझे क्या चाहिये। लेकिन आज यह कंबल, परदों एवं सोफों वाली बात है बहुत ही ..बहुत ही ...बहुत ज़्यादा ही महत्त्वपूर्ण ............इसिलये इस के बारे में थोड़ा ध्यान करियेगा.....ताकि हम अपने इर्द-गिर्द इन कीटाणुओं, जीवाणुओं के अंबार तो न लगा लें। <o:p></o:p></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-81169253867983897232008-03-18T05:21:00.002+05:302008-03-18T05:26:32.900+05:30अगर यही विकास है तो.........<p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI"><br /></span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">अभी सुबह के चार बजे हैं ...और मैं आधे घंटे तक मच्छरों से परेशान होकर.....परेशान क्या, हार कर उठ के बैठ गया हूं। हां, हां, पता है वो पचास रूपये वाली मशीन लगा लेनी थी.....लेकिन गर्मी भी तो अभी दो-तीन दिन से ही थोड़ी महसूस होने लगी है। आज पहली बार एक नंबर पर पंखा चला। </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">मैं एकदम निठल्ला बैठा हुया इस समय विकास की परिभाषा ढूंढने की कोशिश कर रहा हूं..........मुझे नहीं याद कि बचपन में हम लोग कभी इन मच्छरों की वजह से उठे हों। अब इस तरह के घर में रहता हूं जिस में एक भी मक्खी नहीं है, ये कमबख्त मच्छर भी सुबह तो दिखते नहीं लेकिन शाम एवं रात के वक्त इन के द्वारा परेशान किया जाना बदस्तूर जारी है। घर के आसपास भी ...लगभग आधे किलोमीटर तक ...गंदगी कहीं भी नज़र नहीं आती। </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">हम लोग इतने दशकों से सुनते आ रहे हैं ना कि मच्छरों को रोकथाम के लिये फलां-फलां कदम हमें उठाने चाहियें ....और हर बंदा अपने सामर्थ्य के अनुसार इस दिशा में कुछ न कुछ कर के खुश होता भी रहता है। लेकिन फिर भी इन बीमारियों की खान.....मच्छरों को हम लोग मिलजुल कर कंट्रोल नहीं कर पाये.......और बातें हम लोग इतनी बड़ी बड़ी हांकेंगे कि जैसे पता नहीं .............यकीन नहीं हो तो ट्रेन के सामान्य डिब्बे में हो रही गर्मागर्म डिस्कशन में थोड़ा सम्मिलित हो कर देख लीजियेगा। किसी कंपार्टमैंट में तो एक ग्रुप के माडरेटर को यही चिंता सताये जा रही है कि पाकिस्तान का क्या बनेगा....तो दूसरा, यह सोच कर दुःखी है कि इस बार उस का मनपसंदीदा चैनल सब से तेज़ चैनल न बन पाया.........</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">!!<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">और हां, पहले इन दिनों में ही आंगन में तो नहीं ,लेकिन बरामदे में सोने की तैयारियां शुरू हो जाया करती थीं। और अब बच्चों को तारों से भरे अंबर के तले सोना भी किसी परी-कथा जैसा लगता है...............कोई सो कर तो देखे...या तो मच्छर ही अगवा कर के ले जायेंगे ....और अगर कहीं अगवा होने से बच गया तो सुबह इन के द्वारा काटे हुये के निशान देख देख कर तुरंत मच्छर-मार या मच्छर भगाऊ मशीन को लेने दौड़ पड़ता है। </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">जो भी हो......जैसा कि सब जगह ही कहते हैं कि इन बदले हुये हालातों के लिये हम सब ज़िम्मेदार हैं.................मुझे सब से ज़्यादा दुःख इसी बात का है कि हम सारा दिन गंदगी को रोना रोते रहते हैं ...............साफ ढंग से नहीं हो पा रही है, सफाई वाले अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर रहे हैं.........लेकिन बात सोचने की तो यह भी<span style=""> </span>है कि हम आखिर क्या कर रहे हैं </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">!!---</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">मुझे पूरा विश्वास है कि अगर हर घर के द्वार पर भी एक सफाईवाला खड़ा कर दिया जाये...तो भी हमारी हालत में सुधार नहीं हो सकता। </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">और इस तरह की गंदगी जो हमें जगह जगह दिखने लगी है उस का सब से अहम् कारण जो मुझे लगता है कि हमारा लाइफ-स्टाइल कुछ इस तरह का हो गया है कि हम बहुत ज़्यादा कूड़ा-कर्कट जनरेट करने लग गये हैं.............आप को भी याद होगा कि जब हम लोग बच्चे थे तो सारे घर की सफाई होने के बाद जो धूल-मिट्टी इक्ट्ठी हुया करती थी, उसे काम-वाली एक कागज़ पर डाल कर बाहर दरवाजे के बाहर फैंक आती थी और उन दिनों भी इस तरह के बिहेवियर पर बड़ी आपत्ति उठाई जाती थी कि यार, यह भी कोई बार हुई कि गंदगी को मुंह से उतार कर नाक पर लगा लिया.......घर की सफाई कर के सारी गंदगी बाहर डाल दी , यह भी कोई बात हुई </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">!<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">लेकिन अब तो हम अपने आप को विकसित कह कर खुश होने वाले लोग...कुछ ज्यादा ही उच्चश्रृंखल से हो गये हैं। एक घर का कूड़ा-कर्कट देख कर डर लगता है................किसी के घर का ही क्यों ....मुझे तो अपने घर का ही दैनिक कूडा देख कर हैरानगी होती है कि यार, हम लोग एक दिन में इतना खा जाते हैं....दो-तीन थैलियां रोज़ाना कूड़ा। खैर, हमारे यहां तो नहीं , लेकिन आम तौर पर इस कूड़े में बच्चों के चिप्सों के पैकेट , उन की मनपसंद चीज़ों के पैकेट इत्यादि भी बहुत मात्रा में मिलते हैं....और दुःख की बात तो यही है कि ये उत्पाद हमारे बच्चों की सेहत बिगाड़ने के बाद भी हमारे पर्यावरण को भी विध्वंस करने में नहीं चूकते क्योंकि ये टोटली नान-बायो-डिग्रेडेबल होते हैं।</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">वैसे जिस तरह से मैं अपनी चारों तरफ़ रोज़ाना बड़े बड़े नाले इन प्लास्टिक की थैलियों की वजह से चोक हुये देखता हूं ना ...इस से मुझे तो लगता है कि आज की ताऱीख में ये थैलियां हमारी बहुत बड़ी शत्रु हैं.........कईं जगह इन पर बैन लगा है लेकिन फिर मैं और आप जब भी इसे मांगते हैं , हमें तुरंत एक थमा ही दी जाती है................यार, दही, दूध, दाल, सब्जी तक इन घटिया किस्म की थैलियों में मिलने लगी है। इन सस्ती थैलियों में लाई गई खाने पीने की वस्तुयें खा कर हम बीमारियों को तो खुला आमंत्रण दे ही रहे हैं ,उस के बाद ये हमारे नालीयां एवं नाले रोक कर सारे शहर में गंदगी फैलाती हैं। और कईं बार तो हमारे पशु-धन ( गऊ-माताओं वगैरह..) के पेट से इन के बंडल निकाले जा चुके हैं ..............हम सब के लिये कितनी शर्म की बात है कि हमें केवल एक कपड़े का थैला उठाने में इतनी झिझक हो रही है और पर्यावरण का जो मलिया-मेट हो रहा है , उसे हम देख नहीं पा रहे हैं या देख कर भी न देखने का ढोंग कर रहे हैं । और हर काम में सरकारी पहल की आस लगाये रहते हैं कि यार, काश हमारे शहर में भी इन चालू किस्म की पालिथिन की थैलियों पर बैन लग जाये........इस बैन में क्या है, आप आज से कपड़े का थैला उठा लीजिये , कसम खा लीजिये कि इन थैलियों को नहीं छूना..............तो बस हो गया बैन....................इस के लिये किसी कानून की ज़रूरत थोड़े ही है। लेकिन कुछ भी हो, अब तो यह सब करना ही होगा .....ऩहीं तो ये मच्छर हमें परेशान करते रहेंगे, गंदगी के अंबार हमारे आस-पास लगते रहेंगे.......और जैसा कि वर्ल्ड हैल्थ आर्गनाइज़ेशन कह रही है कि आज कल नईं नईं बीमारियों दिखने लगी हैं..................वे तो दिखेंगी ही क्योंकि हम लोगों ने निराले निराले शौक पाल रखे हैं । </span></p><p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">लेकिन जो भी हो, इन पालीथिन की थैलियों को बाय-बाय कह ही दिया जाये..............इसी में ही हम सब की बेहतरी है....बेहतरी को मारो गोली............अब तो वह स्टेज रही ही नहीं, अब तो भई इन को बहिष्कार करने के इलावा कोई चारा ही नहीं बचा। और अगर अभी भी मन को समझा न पायें हों तो जब कोई सफाई-कर्मचारी बिना दस्ताने डाले हुये किसी रुके हुये मेन-होल की सफाई कर रहा हो तो थोड़ा उस के पास खड़े होकर अगर हम उस में निकलते हुये तरह तरह के आधुनिकता के , विकास के प्रतीकों को ...और उस के द्वारा लगातार बाहर निकाल कर रखे जा रहे इन्हीं थैलियों के ढेर को देखेंगे तो सारा माजरा समझ में आ जायेगा। लेकिन कितने दिन यह सब ठीक रहेगा..............बस, चंद दिनों के लिये ही । </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">चलिये......थोडा सोचें कि आखिर हम ने इस विकास से क्या पाया.......ठीक है फोन पर ढेर बतियाने लगे हैं, घर में ही रेल टिकट निकालने लगे हैं, हवाई जहाज में उड़ने के बारे में घर बैठे ही जानने लगे हैं , चंद मिनट पहले दूर- देश में क्या हुया है जानने लगे हैं, स्टिंग आप्रेशन भी करने लगे हैं..............लेकिन इस मच्छर का भी तो कुछ करो ना यारो। बहुत परेशानी होती है.....चिल्लाने की इच्छा होती है। </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">वही बात है ना कि जैसे जावेद अख्तर साहब लिखते हैं कि पंछी नदिया पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके, .......तुमने और मैंने क्या पाया इंसा होके </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">!!................</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">कितना उम्दा एक्सप्रेशन है...............वाह भई वाह</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">!!..........</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%; font-family: Mangal;" lang="HI">लेकिन हम भी तो हम ही ठहरे, अपनी तरह के एक अदद अलग ही पीस, हम ये सब बातें सुन कर भी कहां सुधरने वाले हैं।.....मैं कोई झूठ बोल्या </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">?...........</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p> <br /><object width="425" height="355"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/TDMsBfnOsfA&hl=en"></param><param name="wmode" value="transparent"></param><embed src="http://www.youtube.com/v/TDMsBfnOsfA&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" width="425" height="355"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-2249078495113989582008-03-14T04:57:00.010+05:302008-03-26T20:58:22.305+05:30मुंह के ये घाव/छाले.....II……..कुछ केस रिपोर्ट्सकल मैंने इन मुंह के छालों पर पहली पोस्ट लिखी थी और आज मैं हाजिर हूं कुछ केस रिपोर्ट्स के साथ।<br /><br />- <strong>एक महिला ने जब होली मिलन के दौरान मिठाईयां खाईं तो उन के मुंह में छाले से हो गये जिस पर वे हल्दी लगा कर काम चला रही हैं। </strong><br /><br />अब यह एक बहुत ही आम सी समस्या है...इतने ज़्यादा मुंह के मरीज़ जो आते हैं उन से जब बिल्कुल ही कैज़ुयली पूछा जाता है कि कैसे हो गया यह, तो बहुत से लोगों का यही कहना होता है कि बस, एक-दो दिन पहले एक पार्टी में खाना खाया था। तो,इस से हम क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं................हमें यही सोचने पर बाध्य होना पड़ता है कि इन विवाह-शादियों के खाने में तरह तरह के मसालों वगैरह की भरमार तो होती है जो कि हमारे मुंह के अंदर की कोमल चमड़ी सहन नहीं कर पाती.......अब पेट ने तो गैस बना कर, बदहज़मी कर के अपना रोष प्रकट कर लिया, लेकिन मुंह की चमड़ी को अपना दुःखड़ा कैसे बताये ! सो, एक तरह से मुंह में इस तरह के घाव अथवा छाले वह दुःखड़ा ही है। और अकसर ये छाले वगैरह बिना कुछ खास किये हुये भी दो-तीन दिन में ठीक हो ही जाते हैं। आम घर में इस्तेमाल की जाने वाली कोई प्राकृतिक वस्तु (हल्दी आदि) से अगर किसी को आराम मिलता है तो ठीक है , आप उसे लगा सकते हैं। लेकिन कभी भी इतनी सी चीज़ के लिये न तो ऐंटीबायोटिक दवाईयों के ही चक्कर में पड़े और न ही मल्टीविटामिनों की टेबलेट्स ही लेनी शुरू कर दें। इन को कोई खास रोल नहीं है......यह लाइन भी बहुत बेमनी से लिख रहा हूं कि कोई खास रोल नहीं है। मेरे विचार में तो कोई रोल है ही नहीं.....जैसे जैसे इस सीरीज़ में आगे बढ़ेंगे, इन छालों के लिये बिना वजह ही इस्तेमाल की जाने वाली काफी दवाईयों को पोल खोलूंगा।<br /><br />लेकिन किसी का मिठाई खा लेने से ही मुंह कैसे पक सकता है ?........जी हां, यह संभव है। क्योंकि पता नहीं इन मिठाईयों में भी आज कल कौन कौन से कैमीकल्स इस्तेमाल हो रहे हैं। लेकिन क्या करें, हम लोगों की भी मजबूरी है...अब कहीं भी गये हैं तो थोड़ा थोड़ा चखते चखते यह सब कुछ शिष्टाचार वश अच्छा खासा खाया ही जाता है। लेकिन हमारे किसी तरह के अनाप-शनाप खाने को पकड़ने के लिये यह हमारे मुंह के अंदर की नरम चमड़ी एक बैरोमीटर का ही काम करती है....झट से इन छालों के रूप में अपने हाथ खड़े कर के हमें चेता देती है। अभी मैं कैमिकल्स की बात कर रहा हूं तो एक और केस रिपोर्ट की तरफ ध्यान जा रहा है।<br /><br /><strong>एक व्यक्ति जब भी सिगरेट पीता था तो उस के मुंह में छाले हो जाते थे.......</strong><br /><br />सिगरेट पीने पर भी मुंह में इस तरह के छाले होने वाला चक्कर भी बेसिकली कैमिकल्स वाला ही चक्कर है। यह तो हम जानते ही हैं कि सिगरेट के धुयें में निकोटीन के अतिरिक्त बीसियों तरह के कैमीकल्स होते हैं जिन्हें हमारे मुंह की कोमल त्वचा सहन नहीं कर पाती है और इन छालों के रूप में अपना आक्रोश प्रगट करती है। अगर हम इस नरम चमड़ी के इस तरह के विरोध को समय रहते समझ जायें तो ठीक है ....नहीं तो, यूं ही तो नहीं कहा जाता कि तंबाकू का उपयोग किसी भी रूप में विनाशकारी है।<br /><br /><strong>एक अन्य केस रिपोर्ट है कि किसी व्यक्ति ने ध्यान दिया है कि जब भी वे बिना धुली कच्ची सब्जी, फल इत्यादि खाते हैं तो उन्हें मुंह में एक फुंशी सी हो जाती है। </strong><br /><br />कौन लगायेगा इस का अनुमान !...जी हां, यह भी कैमीकल्स का ही चक्कर है। आज कल सब्जियों - फलों पर इतने कैमीकल्स-फर्टीलाइज़र इस्तेमाल हो रहे हैं कि बिना धोये इन को खाने से तो तौबा ही कर लेनी ठीक है। फलों को भी तरह तरह के कैमीकल्स लगा कर तैयार किया जाता है.....आपने देखा है ना जो अंगूर हमें मिलते हैं उन के बाहर किस तरह का सफेद सा पावडर सा लगा होता है....ये सब कैमीकल्स नहीं तो और क्या हैं !....आम के सीज़न में आमों का भी यही हाल है......कईं बार जब हम आम को चूसते हैं तो क्यों हमारे मुंह पक सा जाता है....सब कुछ कैमीकल्स का ही चक्कर है। ऐसे में यही सलाह है कि सभी फ्रूट्स को अच्छी तरह धो कर ही खाया जाये। और आम को काट कर चम्मच से खाना ही ठीक है...नहीं तो पता नहीं इसे चूसते समय हम इस के छिलके के ऊपर लगे कितने कैमीकल्स अपने अँदर निगल जाते होंगे। वैसे बातें तो ये बहुत छोटी-छोटी लगती हैं लेकिन हमारी सेहत के लिये तो शायद यही बातें ही बड़ी बड़ी हैं।<br /><br /><strong>एक 20-22 वर्ष का नौजवान है...उस को हर दूसरे माह मुंह में छाले हो जाते हैं । वह घर से बाहर रहता है। अकसर इन छालों के लिये सारा दोष कब्ज के ऊपर मढ़ दिया जाता है। उस युवक ने दांतों की सफाई भी करवा ली है, लेकिन अभी वह इन छालों से निजात पाने के लिये कोई स्थायी इलाज चाहता है। </strong><br /><br />इस युवक की उम्र देखिये....20-22 साल.....ठीक है , उस के मुंह में टारटर होगा, या कोई और दंत-रोग होगा जिस के लिये उस ने दांतों एवं मसूड़ों की सफाई करवा ली है। ठीक किया । लेकिन अगर इस से यह समझा जाये कि अब मुंह में छाले नहीं होंगे, तो मेरे ख्याल में ठीक नहीं है। इस का कारण मैं विस्तार में बताना चाहूंगा।<br /><br />यह जो कब्ज वाली बात भी अकसर लोग कहने लग गये हैं ना इस में कोई दम नहीं है......कि कब्ज रहती है,इसलिये मुंह में छाले तो होंगे ही। मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब 1982 में हमारे प्रोफैसर साहब इन मुंह के छालों के बारे में पढ़ा रहे थे तो उन्होंने भी इस कब्ज से मुंह के छालों के लिंकेज को एक थ्यूरी मात्र ही बताया था। और सब से ऊपर हाथ कंगन को आरसी क्या .....अपनी क्लीनिकल प्रैक्टिस में मैंने तो यही देखा है कि जब हम लोगों को कहीं कुछ समझ में नहीं आता तो हम झट से कोई स्केप-गोट ढूंढते हैं ...विशेषकर ऐसी कोई जो कि लोगों की साइकी में अच्छी तरह से घर कर चुकी होती है। और यह कब्ज और मुंह के छालों का लिंकेज भी कुछ ऐसा ही है।<br /><br />वैसे चलिये ज़रा इस के ऊपर विस्तार से चर्चा करें......सीधी सी बात है कि वैसे तो किसी भी उम्र में जब किसी को कब्ज हो तो कुछ न कुछ गड़बड़ तो कहीं न कहीं है ही......लेकिन 20-22 के युवक में आखिर क्यूं होगी कब्ज। और यकीन मानिये ये जो हम कब्ज के विभिन्न प्रकार के डरावने से कारणों के बारे में अकसर यहां वहां पढ़ते रहते हैं ना, शायद हज़ारों नहीं तो सैंकड़ों कब्ज से परेशान मरीज़ों में से किसी एक को ही ऐसी कोई अंदरूनी तकलीफ़ होती होगी। ऐसा मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं। क्योंकि मैं जानता हूं कि अधिकांश कब्ज के केस हमारी जीवन शैली से ही संबंधित हैं.....हमारी बोवेल हैबिट्स रैगुलर नहीं है। 20-22 के युवक में कब्ज होना इस बात को इंगित कर रही है कि या तो उस युवक का खान-पीन ठीक नहीं है या उस में शारीरिक परिश्रम की कमी है। खान-पान से मेरा मतलब है कि उस युवक का खाना-पीना संतुलित नहीं होगा, उस के भोजन में सलाद, रेशेदार फ्रूट्स की कमी होगी....क्योंकि अगर कोई इन वस्तुओं का अच्छी मात्रा में सेवन करता है तो कब्ज का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। और अगर फिर भी है तो अपने चिकित्सक को ज़रूर मिलें...........लेकिन पहले अपना खान-पान तो टटोलिये......सारी कमी यहीं पर नज़र आयेगी। और हां, कब्ज के लिये विभिन्न प्रकार के अंकुरित दालें एवं अनाज बेहद लाभदायक हैं। और मुझे जब कुछ साल पहले ऐसी समस्या हुई थी तो मैं एक-दो आँवले रोटी के साथ अचार के रूप में खा लिया करता था और जब बाज़ार में आंवले मिलने बंद हो जाया करते थे तो आंवले के पावडर का आधा चम्मच ले लिया करता था, जिस से कब्ज से निजात मिल जाया करती थी। मैं अपने आप ही किसी भी तरह की कब्ज से निजात पाने वाली दवाईयां लेना का घोर-विरोधी हूं.....इस तरह से अपनी मरजी से ली गई दवाईयां तो बस कब्ज को बद से बदतर ही करती हैं ... और कुछ नहीं, इस के पीछे जो वैज्ञानिक औचित्य है उस को किसी दूसरी पोस्ट में कवर करूंगा।<br /><br />और हां, बात हो रही थी, किसी 20-22 साल के युवक की जिसे कब्ज भी रहती है और यह समझा जाता है कि मुंह के छाले इसी कब्ज की ही देन हैं। तो यहां पर एक बात बहुत ही ध्यान से समझिये कि किसी बंदे को कब्ज है ....इस का अधिकांश केसों में जैसा कि मैंने बताया कि निष्कर्ष यही तो निकलता है कि उस के खाने-पीने में गड़बड़ है....वह रेशेदार फल-फ्रूट-सब्जियां एवं दालें ठीक मात्रा में ले नहीं रहा और/अथवा जंक फूड़ पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा किया जा रहा है। क्योंकि कब्ज का रोग मोल लेने का एक आसान सा तरीका तो है ही कि इस मैदे से बने तरह तरह के आधुनिक व्यंजनों( बर्गर, नूडल्स, पिज़ा, हाट-डाग आदि आदि आदि) को हम अपने खाने में शामिल करना शुरू कर दें।<br />......मुझे तो ज़्यादा नाम भी नहीं आते क्योंकि मैं तो बस एक ही तरह के जंक फूड का बिगड़ा हुया शौकीन हूं....आलू वाले अमृतसरी नान व छोले......जंक इस लिये कह रहा हूं कि ये अकसर मैदे से ही बनते हैं ...लेकिन फिर मैं दो-तीन महीनों में एक बार इन्हें खाकर पंगा मोल ले ही लेता हूं और फिर सारा दिन खाट पकड़ कर पड़ा रहता हूं जैसा कि इस पिछले रविवार को हुया था...।<br /><br />बस जाते जाते बात इतनी ही करनी है कि इस 20-22 साल के युवक के खान-पान में कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है ही, अब अगर वह इन बातों की तरफ़ ध्यान देगा तो क्यों होगा वह बार बार इन मुंह के छालों से परेशान....क्योंकि जब शरीर को संतुलित आहार मिलता है तो शरीर में सब कुछ संतुलित ही रहता है और मुंह की कोमल त्वचा भी स्वच्छ ही रहती है क्योंकि जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं कि यह मुंह के अंदर की कोमल त्वचा तो वैसे भी हमारे सारे स्वास्थ्य का प्रतिबिंब है।<br /><br />बाकी, बातें अगली पोस्ट में ...इसी विषय पर करेंगे। अगर इस का कोई अजैंडा सैट करना चाहें तो प्लीज़ बतलाईयेगा....टिप्पणी में या ई-मेल में।Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-26438354851970007342008-03-14T04:57:00.008+05:302008-03-14T07:13:00.430+05:30आज की हैल्थ-टिप.....मेरी आपबीती !कल का दिन मेरे लिये बहुत बेकार था....कल सुबह जब मैं पांच बजे के करीब उठा तो सिर में बहुत ज़्यादा दर्द था,सोचा कि बस यूं ही मौसम में ठंडी की वजह से हो रहा होगा....कुछ समय में ठीक हो जायेगा। लेकिन यह तो अलग किस्म का ही सिर दर्द था। खैर, सिर को बांध कर लेटना चाहा लेकिन इस से भी चैन कहां पड़ना था। सोचा, ऐसे ही ठंड-वंड लग गई होगी....परसों रात को यमुनानगर से 15-20 किलोमीटर दूर गांव कागोवाली में एक सत्संग में सम्मिलित होने गया था...आते समय कार की खिड़की खुली थी , सो ऐसा लगा कि ठंडी हवा लग गई होगी। लेकिन ऐसी ठंडी हवा भी इतनी तकलीफ़ नहीं देती जितनी मुझे कल हो रही थी।<br />खैर, तब तक घर के सब मैंबरर्ज उठ चुके थे। मिसिज़ ने कहा कि कुछ चाय-बिस्कुट ले लो....मैंने हां तो कह दी लेकिन जब चाय तैयार हो गई तो उस की तरफ़ देखने की इच्छा नहीं ! खैर,सुबह सुबह ही मुझे बार बार मतली सी आने लगी...बार-बार सिंक पर जाता और थोड़ा सा हल्का हो के आ जाता। लेकिन फिर वही समस्या....बस, चैन नहीं आ रहा था, और सिर तो जैसे फटा जा रहा था। ( हां, यहां एक बात शेयर करना चाहता हूं कि मुझे कभी भी उल्टी करने वाले मरीज़ से घिन्न नहीं आई.....पता नहीं, जब कोई मरीज़ में रूम में भी उल्टी कर देता है तो मुझे बिलकुल भी फील नहीं होता, मुझे उस से बहुत सहानुभूति होती है और मैं उसे कहता हूं ....कोई बात नहीं, आराम से कर लो...........पता नहीं, मुझे कुछ अपना पुराना टाइम याद आ जाता है ).........खैर, हास्पीटल तो जाना ही था.....क्योंकि कल मैं हास्पीटल के चिकित्सा अधीक्षक का कार्य भी देख रहा था।<br />हस्पताल में बैठ कर भी हालत में कुछ सुधार हुया नहीं। एक एसिडिटी कम करने के लिये कैप्सूल लिया तो, लेकिन वह भी चंद मिनटों के बाद सिंक में बह गया। खैर, श्रीमति जी ने भी कह दिया कि अकसर सिर-दर्द होने लगा है, कहीं न कहीं लाइफ-स्टाईल में गडबड़ तो है ही ना। मुझे पता है कि वे यही कर रही थीं कि नियमित सैर-वैर के लिये जाते नहीं हो, योग करते नहीं हो। खैर, उस समय तो कुछ सूझ नहीं रहा था।<br />जैसे जैसे दोपहर बाद एक बजे घर आ कर लेट गया....लेकिन कुछ खाने की इच्छा नहीं हो रही थी। जूस मंगवाया ...लेकिन जूस की दुकान बंद होने की वजह से अपना रामू गन्ने का रस ले आया । लेकिन उसे भी पीने की इच्छा नही हुई। । बस ,सिर दुखता ही रहा और बीच बीच में मतली सी होती रही।<br />यह सब स्टोरी बताना ज़रूरी सा लग रहा है इसीलिये लिख रहा हूं। खैर, कुछ समय बाद समय में आया कि घर में पिछले दो-तीन दिन से बाज़ार का आटा इस्तेमाल हो रहा था......बस सब कुछ समझ में आते देर न लगी। झट से समझ में आ गया कि क्योंकि पिछले दो-तीन दिनों से ही पेट नहीं साफ हो रहा था, रबड़ जैसी सफेद रोटी देख कर उसे खाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी और दो -तीन दिन से ही एसिडिटी की तकलीफ भी रहने लगी थी। हमारे यहां किसी को भी बाज़ार के लाये आटे की रोटी कभी नहीं सुहाती ........सब सदस्य इस के घोर विऱोधी हैं। हम जब बम्बई में पोस्टेड थे तो हमारी सब से बड़ी समस्या ही यही थी कि बाजार में हमें कभी ढंग का आटा मिला ही नहीं थी। बंबई सैंट्रल एरिया में एक स्टोर में पंजाबी आटा मिल तो जाता था.........लेकिन उस में भी वो बात न थी। खैर, जब हम वापिस पंजाब में आये तो हमे (खासकर मुझे) इस बात की तो विशेष खुशी थी कि अब आटा तो ढंग का खायेंगे।<br />पिछले दो तीन से घऱ मे बाजार का आटा इसलिये इस्तेमाल हो रहा था कि दो -तीन बार जब भी रामू चक्की पर गया थो तो बिजली बंद ही मिली। ऐसा है न कि हम सब को मोटे आटे की आदत पड़ चुकी है। इसलिये हमें बाज़ार में यहां तक की आटा चक्की में मिलने वाला भी पतला आटा कभी भी नहीं चलता .....कहने को तो वे इसे पतला आटा कह देते हैं...ऐसे लगता है कि इस का दोष केवल इतना ही है कि इस को ज़्यादा ही बारीक पीसा हुया है ...लेकिन नहीं , इस का तो पहले इन्होंने रूला किया होता है जिस के दौरान आनाज के दाने की बाहर की चमड़ी उतार ली जाती है......और इसे रूला करना कहने हैं....और जो झाड़ इसे रूला करने की प्रक्रिया में प्राप्त होता है ये चक्की वाले इसे अलग से बेचते हैं......मजे की बात यह है कि लोग इसे जानवरों के लिये खरीद कर ले जाते हैं...यह गेहूं का एक पौष्टिक हिस्सा होता है। मुझे इस का भरा हुया पीपा एक चक्की वाले ने दिखाया भी था।<br />मैंने स्वयं कईं बार लोगों को चक्की वाले को यह कहते सुना है कि रूला ज़रूर कर लेना..पीसने से पहले। क्योंकि उन्हें भूरा आटा पसंद नहीं है.....और हां, बाज़ार में जो आटा बिकता है उस में से चोकर भी निकला होता है .....सो , हमारे सामने एक तरह से मैदा ही तो रह जाता है जिस को सफेद रोटियां देख कर आज कल लोग ज्यादा खुश होने लगे हैं। लेकिन यह ही है हमारी सब की ज़्यादातर तकलीफों की जड़.......विशेषकर ऐसा आटा खाने वाले के पेट ठीक से साफ होते नहीं है, जिस की वजह से सारा दिन सिर भारी-भारी सा रहता है और मन में बेचैनी सी रहती है।<br />कुछ साल पहले पंजाब के भोले-भाले किसानों के बारे में एक चुटकुला खूब चलता था......जब शुरू शुरू में भाखड़ा नंगल डैम के द्वारा बिजली का उत्पादन शुरू हुया था तो भोले भाले किसान यह कहते थे.....लै हुन , पानी चों बिजली ही कढ़ लई तां बचिया की ( ले अब अगर पानी से बिजली ही निकाल ली गई तो बचा क्या !)........लेकिन अफसोस आज हम लोग बाज़ार से ले लेकर जिस तरह का आटा खा रहे हैं उसके बारे में हम ज़रा भी नहीं सोचते कि यार, जिस गेहूं का रूला हो गया, जिस में से चोकर निकाल लिया गया......उस से हमें तकलीफें ही तो मिलने वाली हैं। क्या है ना कि गेहूं में मौजूद फाईबर तो उस की इस बाहर वाली कवरिंग (जिसे रूला के द्वारा हटा दिया जाता है) ...और चोकर में पड़ा होता है जो कि हमारे शरीर के लिये निहायत ही ज़रूरी है क्योंकि इस तरह के अपाच्य तत्व हमारी आंतड़ियों में जाकर पानी सोख कर फूल जाते हैं और मल के निष्कासन में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं।<br />इसलिये जिन का भी पेट साफ नहीं होता उन को हमेशा मोटा आटा .....जिस में से कुछ भी निकाला न गया हो.....खाने की ही सलाह दी जाती है। इसके साथ ही साथ अगर दालों सब्जियों का प्रचुर मात्रामें सेवन किया जायेगा तो क्यों नहीं होगा यह पेट साफ। ऐसे ही टीवी पर अखबारों मे पेट साफ करने वाले चूरनों की हिमायत करने वालों की बातों पर ज़्यादा ध्यान मत दिया करें।<br />......हां, तो मैं इसी बारीक आटे की वजह से बिगड़ी अपनी तबीयत की बात सुना रहा था....तो शाम के समय पर तबीयत थोड़ी सुधरी थी कि थोड़े से अंगूर और कीनू का जूस पी लिया.....लेकिन हास्पीटल जाते ही उल्टी हो गई । बस , इंजैक्शन लगवाने की सोच ही रहा था कि मन में सैर करने का विचार आ गया......आधे घंटे की सैर के बाद कुछ अच्छा लगने लगा और घर आकर थोडा टीवी पर टिक गया ......खाना खाने की इच्छा हुई, तो मोटे वाले आटे की ही रोटियां खाईं ......तो जान में जान आई। आप भी हंस रहे होंगे कि यह तो डाक्टर ने नावल के कुछ पन्ने ही लिख दिये हैं।<br />इस सारी बात का सारांश यही है कि हमें केवल....केवल....केवल......मोटे आटे का और सिर्फ मोटे आटे का ही सेवन करना चाहिये। जिन पार्टियों में सफेद सफेद दिखने वाली तंदूर की रोटियां, नान आदि दिखें.....इन्हें खा कर अपनी सेहत मत बिगाड़ा करिये...............वैसे मेरे पास बैठा मेरा बेटा भी इस बात पर अपनी मुंडी हिला कर अपना समर्थन प्रकट कर रहा है। लेकिन आप ने क्या सोचा है ?<br />चलते चलते सायरा बानो और अपने धर्म भा जी भी सावन-भादों फिल्म में कुछ फरमा रहे हैं .....अगर टाईम बचा हो तो मार दो एस पर भी एक क्लिक..........<br /><object width="425" height="373"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/XdDUMsSRPIk&color1=0x2b405b&color2=0x6b8ab6&border=1&hl=en"></param><param name="wmode" value="transparent"></param><embed src="http://www.youtube.com/v/XdDUMsSRPIk&color1=0x2b405b&color2=0x6b8ab6&border=1&hl=en" type="application/x-shockwave-flash" wmode="transparent" width="425" height="373"></embed></object>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-69859625993808678622008-03-07T06:47:00.003+05:302008-03-07T06:54:24.421+05:30क्या है आखिर इस तरह के फ्रूट-जूस में ?<p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;"><br /><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">दो-तीन दिन से गर्मी के मौसम के पदचाप सुनाई देने लगे हैं....ऐसे में आने वाले दिनों में फलों के जूस वगैरह का बाज़ार गर्म होता नज़र आयेगा..........फलों के ताज़े जूस का नहीं पिछले कुछ समय से तो टैट्रा-पैक में मिलने वाले कुछ फलों के जूसों ने भी तो धूम मचा रखी है। कल जब एक ऐसे ही टैट्रा-पैक को देखा तो उस के बारे में अपने व्यक्तिगत विचार लिखने की बात मन में आई।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">इस मिक्सड़ फ्रूट जूस (जिसे वर्ल्ड के नंबर वन होने का दावा किया गया है) की एक लिटर की पैकिंग के बारे में टैट्रा-पैक के बाहर लिखा हुया है (अंग्रेज़ी में) कि इस में ये सब इन्ग्रिडीऐंट्स मौजूद हैं........ पानी, सेब के जूस का कंसैन्ट्रेट, अनानास के जूस का कंसैन्ट्रेट , चीनी( शूगर), संतरे के जूस का कंसैन्ट्रेट, आम के जूस का कंसैन्ट्रेट, अमरूद की पलप, एसिडिटी रैगुलेटर( 330), विटामिन-सी। और साथ में फलेवर्ज़ डले होने की बात भी कही गई है.....( contains added flavor….natural flavouring substances)..<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">यही सोच रहा हूं कि अगर इतने सारे फलों के रस इस में मौज़ूद हैं तो आखिर इस में विटामिन-सी बाहर से डालने की आखिर क्या ज़रूरत आन पड़ी है। क्या कोई मेरी इस प्रश्न का जवाब देगा ?</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">लेकिन इस के बारे में ग्राहकों को कुछ नहीं बताया गया कि ये सब इन्ग्रिडीऐन्ट्स कितनी मात्रा में उपलब्ध हैं.......अब ग्राहक को तो लगता है कि इस से कुछ लेना देना है नहीं, बस उसे तो जूस का स्वाद अच्छा लगना चाहिये जो उसे चंद पलों के लिए ठंडक पहुंचा दे.....चाहे यह कंपनी तो यह दावा कर रही है कि इस का ज़ायका आप को सारा दिन मज़ा देता रहेगा ( लेकिन कंपनी तो आखिर ठहरी कंपनी !)..</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">अब अगर ग्राहक दस-गिलास ताजे जूस के दाम के बराबर कोई ऐसे जूस का डिब्बा खरीद रहा है तो उसे क्या इतना जानने का अधिकार भी नहीं है कि उस में कितनी चीनी(शक्कर ) मिली हुई है !<span style=""> </span>…..शायद नहीं। अब ये सब बातें आप को कंपनी बताने लगेगी तो उसे बड़ी दिक्कत हो जायेगी। ताजे जूस में हमारे पड़ोस वाला जूसवाला क्या कम शक्कर उंडेलता है जो हम इस डिब्बे वाले जूस में शक्कर के इतना पीछे पड़ रहे हैं। इस के बारे में आप भी सोचिए....। मेरी पत्नी, डा.ज्योत्स्ना चोपड़ा, जो एक जर्नल फिजिशियन हैं ....उन्हें भी इस के बारे में ( शक्कर वाली बात) जान कर बहुत हैरानगी हुई। खैर, चलिये आगे चलते हैं।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">इस स्वीटंड फ्रूट-जूस ( sweetened fruit juice) के डिब्बे के ऊपर यह भी लिखा हुया था कि इस में न तो कोई एडेड कलर<span style=""> </span>है और न ही प्रिज़र्वेटिव..........(No added colour and preservative)………लेकिन यह इस में किसी प्रिज़र्वेटिव के ना होने वाली बात मुझे तो हज़म नहीं हो रही है ( क्या करूं ?.......हाजमोला ले लूं !........ठीक है , वह भी ले लूंगा, पहले आप से दो बातें तो कर लूं। ) .....लेकिन हाजमोला लेने के बाद भी मुझे इस नो-प्रिज़र्वेटिव वाली बात की बदहज़मी बनी रहेगी क्योंकि मैं बड़े विश्वास से यह सोच रहा हूं कि ऐसी कौन सी वस्तु है जो बिना प्रिज़र्वेटिव के छःमहीने पर ठीक ठाक रहती है..........इस की पैकिंग पर लिखा हुया है कि दिसंबर 2007 में बना यह जूस का डिब्बा जून 2008 तक ले लेना बैस्ट है ( Mfd…Dec.2007, Best before June 2008)..</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">इस जूस के 100 मिलीलिटर की न्यूट्रिश्नल वैल्यू भी तो आप जानना चाहेंगे.....तो सुनिये इस में प्रोटीन है – 0.4 ग्राम, फैट और कोलेस्ट्रोल ज़ीरो ग्राम, कार्बोहाइड्रेट- 13.7ग्राम ..............आगे लिखा हुया है सोडियम 5मिलीग्राम, पोटाशियम 103मिलीग्राम और विटामिन-सी 40मिलीग्राम। अब इन के बारे में अलग अलग से बतलाना शुरू करूंगा तो भी पोस्ट कुछ ज़्यादा ही लंबी न हो जायेगी, यही सोच कर आगे बढ़ रहा हूं। वैसे यह जो फैट और कोलेस्ट्रोल के नाम के आगे ज़ीरो ग्राम लिखने का चलन शुरू हो गया है ना, इस के बारे में फिर कभी लिखूंगा।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">इस डिब्बे बंद जूस की पैकिंग पर यह घोषणा भी बेहद शानदार तरीके से की गई है कि इस जूस के एक पाव-किलो( 250मिलीलिटर) का गिलास पी लेने पर आप सारे दिन में उन पांच फलों एवं सब्जियों की सर्विंग्स (जिन की डाक्टर सलाह देते हैं)...में से एक सर्विंग हासिल कर लेते हो और यह गिलास पीने से आप सारे दिन की विटामिन-सी की सप्लाई प्राप्त कर लेते हो। इस के बारे में भी मेरे विचार अलग हैं.....(कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली !)..क्या है ना, कहां वे ताज़े फल और सब्जियां ...और कहां ये डिब्बे में मिलने वाले जूस...........और जहां तक सारे दिन की विटामिन-सी की पूरे दिन की सप्लाई की बात है, उस बात में भी कुछ ज़्यादा वज़न लगा नहीं ...क्योंकि उस सप्लाई को प्राप्त करने के लिये इतने रूपये खर्च करने की क्या ज़रूरत है....वह तो कोई भी ताज़ा फल( संतरा, कीनू इत्यादि और यहां तक कि बहुत ही प्रचुर मात्रा में आंवले से भी मिल ही सकता है) ..बड़ी आसानी से दिला सकता है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">और हां, एक बात की तरफ़ और भी ध्यान दीजियेगा कि टैट्रा-पैक तो यह भी लिखा हुया है कि अगर आप को यह डिब्बा फूला हुया सा लगे तो इसे न खरीदें। वैसे उन्होंने इसे लिखवा कर अच्छा किया है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">सीधी सी बात है कि ताज़े फल का कोई सानी नहीं है.....हां,अगर आप किसी ऐसे टापू पर जाने का प्रोग्राम बना रहे हैं जहां पर ताज़े फल का जूस नहीं मिलेगा या फल ही न मिलेंगे, वहां पर आप इस डिब्बा-बंद जूस को ज़रूर ले कर जा सकते हैं। लेकिन, एक बात जो मैं अकसर बहुत बार कहता हूं और जो हम सब को हमेशा याद रखनी है , वह यही है कि ज़ूस से भी कहीं ज्यादा बेहतर होगा अगर हम ताज़े फलों को ही खा सकें....क्योंकि इन फलों में कुछ अन्य फायदेमंद इन्गर्डिऐन्ट्स भी हैं जो हमें केवल ताज़े फले खाने से ही प्राप्त हो सकते हैं .....वैसे एक बात और भी है कि इन फलों में तो कुछ ऐसी अद्भुत चीज़ें भी हैं जिन का राज़ इस प्रकृति ने अभी भी राज़ ही बना कर रखा हुया है।......अभी तो वैज्ञानिक इन चमत्कारी घटकों के बारे में कुछ पता ही नहीं लगा पाये हैं।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">दो-चार दिन पहले मैं स्टेशन पर बैठा हुया था तो दो पुरूष आपस में बैठे प्लेटफार्म के बैंच पर बातें कर रहे थे...उन में से एक शायद किसी कोल्ड-ड्रिंक कंपनी में काम करने वाला था। जब दूसरे बंदे ने यह पूछा कि यार, वैसे पीछे बड़ा सुनने में आ रहा था कि इन ठंडे की बोतलों में कीटनाशक हैं और यह फलां-फलां बाबा जी अपने प्रवचनों में इन ठंडों की बड़ी क्लास लेते हैं तो उस कोल्ड-ड्रिंक कंपनी वाले ने इस पर कुछ इस तरह से प्रकाश डाल कर उस की ( साथ में मेरी भी !)…जिज्ञासा शांत कर डाली......................देख, भई, ये ठंडे तो बिकने ही हैं...चाहे कुछ भी हो जाये....कोई कुछ भी कहता रहे.......ठीक है , लोग खरीद कर ना भी पियेंगे, लेकिन विवाह-शादियों एवं अन्य पार्टियों में जहां ये फ्री में मिलते हैं....इन जगहों पर तो वे इन पर टूटने से बाज़ आयेंगे नहीं, तो फिर कंपनियों को टेंशन लेने की क्या ज़रूरत है...........इन पार्टियों वगैरह में तो एक एक बंदा चार-पांच गिलास तक गटक जाता है। बस, हमारी कंपनियों के लिये इतना ही काफी है............अब तुम्हें बताऊं यह जो सारी तरह की पब्लिसिटि इन ठंडों<span style=""> </span>के बारे में पीछे हो रही थी ना,<span style=""> </span>इस में कंपनियों की सेल में सिर्फ़ 3-4 प्रतिशत का ही फर्क पड़ा है, लेकिन इस से भी जूझने के लिये कंपनियों के पास बहुत से रास्ते हैं..........................</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size:12;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">लेकिन अफसोस इन रास्तों के बारे में मैं कुछ ज़्यादा सुन नहीं पाया क्योंकि उसी समय प्लेटफार्म पर ऐंटर हो रही मेरी गाड़ी के शोर में उन दोनों की बातें मेरी ऑडिबल-रेंज से बाहर हो गईं।<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]--><o:p></o:p></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-87743632808823065932008-02-20T23:10:00.003+05:302008-02-20T23:25:14.375+05:30पता नहीं अब हमारे सादे पान-मसाले पर क्यों डाक्टर अपनी डाक्टरी झाड़ रहे हैं !<p class="MsoNormal"><span style="" lang="HI">अभी मैं अपना लैप-टाप खोल कर स्टडी-रूममें बैठ कर सोच ही रहा था कि आज किस विषय पर पोस्ट लिखूं कि अचानक बेटे ने मेरी टेबल के सामने लगे बोर्ड पर लगे एक विज्ञापन की कटिंग को देखते हुए कहा कि पापा, यह विज्ञापन मैंने भी देखा था, बड़ा अजीब लगा था।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="" lang="HI"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="" lang="HI">क्योंकि इस पान मसाले में है.....अव्वल दर्जे का कत्था(रू800प्रतिकिलो) , पवित्र चंदन(रू60000-66000प्रतिकिलो),रूह केवड़ा(रू3लाख प्रतिकिलो), ज़ायकेदार इलायची(रू450प्रतिकिलो), प्रोसैस्ड सुपारी(रू200-225प्रतिकिलो), 0</span>%<span style="" lang="HI">तम्बाकू(तम्बाकू के रूप में नहीं)................यह विज्ञापन किसी हिंदी के समाचार-पत्र में छपा था। अब कोई भी बंदा इतना लुभावना विज्ञापन देखने के बाद भला क्यों करेगा गुरेज़ मुंह में दो-तीन पानमसाले के पाउच उंडेलने से। और ऊपर से यह 0</span>% <span style="" lang="HI">तम्बाकू वाली बात ....भई यह सब कुछ लिखा हो तो पानमसाले की<span style=""> </span>धूम आखिर क्यों न मचे। वैसे वो 0</span>% <span style="" lang="HI">तम्बाकू- तम्बाकू के रूप में नहीं वाली बात तो मेरी समझ में भी नहीं आई...........।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="" lang="HI"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="" lang="HI"><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 0);">लेकिन यह पानमसाला खाना भी हमारी सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक है। आप ही सोचिए कि अगर ऐसा न हो तो क्यों विज्ञापन के एक कोने में यह चेतावनी भी लिखी हो....पानमसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। वैसे वो बात दूसरी है कि उसे लिखा कुछ इस तरह से होता है कि उसे पहले तो कोई ढूंढ ही न पाये और अगर गलती से ढूंढ ले भी तो बंदा पढ़ ही न पाये।</span></span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="" lang="HI"><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 0);"> </span> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="" lang="HI">जी हां, पानमसाला चबाना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। <span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 153);">इस में मौजूद सुपारी को मुंह के कैंसर की एक पूर्व-अवस्था सब-मयूक्स फाईब्रोसिस( </span></span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 153);">submucous fibrosis) </span><span style="" lang="HI"><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 153);">के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और यह वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध भी हो चुका </span></span><span style="" lang="HI"><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 153);">है.....</span>।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="" lang="HI"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="" lang="HI">छोटे छोटे कॉलजियेट लड़कों को दो-पहिया वाहनों पर चढ़े-चढ़े नुक्कड़ वाले पनवाड़ी की दुकान के ठीक सामने वाले फुटपाथ पर पानमसाले के दो तीन पाउच इक्ट्ठे ही मुंह में उंडेलते हुए बेहद दुःख होता है....यह शौक शुरू शुरू में तो रोमांचित करता होगा लेकिन बाद में जब इस की लत पक्की हो जाती है तो फिर शायद इसे छोड़ना सब के बश की बात भी नहीं होती।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="" lang="HI"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="" lang="HI">ओरल-सबम्यूक्स फाईब्रोसिस की बात चली थी तो कुछ इस के बारे में बात भी की जाये...इस अवस्था में मुहं की नर्म,लचकीली चमडी़अपनी लचक खो कर, बिलकुल सख्त,<span style=""> </span>चमड़े जैसी और झुर्रीदार हो जाती है, धीरे धीरे मुंह खुलना बंद हो जाता है, मुंह में घाव और छाले हो जाते हैं और मरीज़ को कुछ भी खाने में बहुत जलन होती है। यह कैंसर की पूर्वावस्था होती है और<span style=""> </span>यह अवस्था किस मरीज़ में<span style=""> </span>आगे चल कर मुंह के कैंसर का रूप धारण कर ले., यह कुछ नहीं कहा जा सकता । इसलिए इस अवस्था का तुरंत इलाज करवाना बहुत लाजमी है.....क्योंकि इस अवस्था में तो कईं बार मरीज का मुंह इतना कम खुलने लगता है कि वह रोटी का एक निवाला तक मुंह के अंदर नहीं रख सकता जिस के कारण उसे फिर तरल-पदार्थों पर ही ज़िंदा रहना पड़ता है या फिर सर्जरी के द्वारा मुंह खुलवाना पड़ता है और सब से...सब से ...सब से जरूरी यह कि उसे पानमसाले की लत को हमेशा के लिए लत मारनी पड़ती है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="" lang="HI"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="" lang="HI">लेकिन इस लत को लात मारने के लिए आखिर तब तक इंतजार आखिर किया ही क्यों जाये.....यह शुभ काम हमआज<span style=""> </span>ही कर दें तो कितना बढ़िया होगा....आज से ही क्यों अभी से ही अपने मुंह में रखे पान-मसाले को अभी थूक दें तो क्या कहने......शाबाश.....यह हुई न बात......मोगैंबों खुश हुया। <o:p></o:p></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-56496927261371945802008-02-08T22:07:00.000+05:302008-02-08T22:09:25.880+05:30वो टैटू तो जब आयेगा, तब देखेंगे....लेकिन अभी तो....<p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt;"><br /><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt;">वो टैटू तो जब आयेगा,तब देखेंगे लेकिन हमें आज ज़रूरत है मौज़ूदा टैटू बनवाने की मशीनों से बचने की। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt;">आज समाचार-पत्रों में यह खबर दिखी है कि टैटू गुदवाने का जो चलन फैशन और स्टाइल के नाम पर ही शुरू हुआ था, अब यह जल्दी ही बीमारियों से बचाव का जरिया भी बन जाएगा। जर्मनी के शोधकर्त्ताओं ने इस बात का पता लगाया है कि टैटू गुदवाने की प्रक्रिया शरीर में दवा के प्रवेश की सबसे असरदार विधा है। खासकर डीएनए वाले टीकों के मामले में यह विधा इंट्रा मस्कुलर इंजेक्शन से कहीं बेहतर है। रिपोर्ट के अनुसार फ्लू से लेकर कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में भी टैटू के जरिए बेहतर टीकाकरण हो सकता है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:100%;"><b><u><span style="font-size: 20pt;">विशेष टिप्पणी-----</span></u></b></span><span style="font-size: 12pt;"> मैडीकल साईंस भी बहुत जल्द आगे बढ़ रही है...दिन प्रतिदिन नये नये अनुसंधान हो रहे हैं। अभी मैं दो दिन पहले ही एक रिपोर्ट पढ़ रहा था कि अब इंजैक्शन बिना सूईं के लगाने की तैयारी हो रही है। तो आज यह पढ़ लिया कि अब टैटू के जरिये भी दवाई शरीर में पहुंचाई जाएगी। यह तो आप समझ ही गये होंगे कि यहां पर उन टैटुओं की बात नहीं हो रही जो बच्चे एवं बड़े आज कल शौंक के तौर पर अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों में चिपका लेते हैं और जो बाद में नहाने-धोने से साफ भी हो जाते हैं। लेकिन यहां बात हो रही है उस विधि की जिस का एक बिल्कुल देशी तरीका आप ने भी मेरी तरह किसी गांव के मेले में देखा होगा। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt;">एक ज़मीन पर बैठा हुया टैटूवाला किस तरह एक बैटरी से चल रही मशीन द्वारा बीसियों लोगों के टैटू बनाता जाता है...साथ में कोई स्याही भी इस्तेमाल करता है......किसी तरह की कोई साफ़-सफाई का कोई ध्यान नहीं....न ही ऐसे हालात में यह संभव ही हो सकता है, अब कैसे वह डिस्पोज़ेबल मशीन इस्तेमाल करे अथवा कहां जा कर उस मशीन को एक बार इस्तेमाल करने के बाद किटाणु-रहित ( स्टैरीलाइज़) करे...यह संभव ही नहीं है। ऐसे टैटू हमारे परिवार में किसी बड़े-बुज़ुर्ग के हाथ पर अथवा बाजू पर दिख ही जाते हैं। <span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 0);">लेकिन यह टैटू गुदवाना बेहद खतरनाक है......मुझे नहीं पता कि पहले यह सब कैसे चलता था......था क्या, आज भी यह सब धड़ल्ले से चल रहा है और हैपेटाइटिस बी एवं एचआईव्ही इंफैक्शन्स को फैलाने में खूब योगदान कर रहा होगा। </span>लोग अज्ञानतावश बहुत खुशी खुशी अपनी मन पसंद आकृतियां अपने शरीर पर इस टैटू के द्वारा गुदवाते रहते हैं। लेकिन इस प्रकार के टैटू गुदवाने से हमेशा परहेज़ करना निहायत ज़रूरी है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt;">यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि कि जिस टैटू की इस रिपोर्ट में बात कही गई है, उस की क्या प्रक्रिया होती है। लेकिन मेरी हमेशा यही चिंता रहती है कि जहां कहां भी यह सूईंयां –वूईंयां इस्तेमाल होती हों वहां पर पूरी एहतियात बरती जा पायेगी या नहीं.....यह बहुत बड़ा मुद्दा है, बड़े सेंटरों एवं हस्पतालों की तो मैं बात नहीं कर रहा, लेकिन गांवों में भोले-भाले लोगों को नीम-हकीम किस तरह एक ही सूईं से टीके लगा लगा कर बीमार करते रहते हैं ..यह सब आप से भी कहां छिपा है। पंजाब में भटिंडा के पास एक गांव में एक झोला-छाप डाक्टर पकड़ा गया था जो सारे गांव को एक ही नीडल से इंजैक्शन लगाया करता था ....इस का खतरनाक परिणाम यह निकला सारे का सारा गांव ही हैपेटाइटिस बी की चपेट में आ गया। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt;">बात कहां से शुरू हुई थी, कहां पहुंच गई। लेकिन कोई कुछ भी कहे...जब भी इंजैक्शन लगवाएं यह तो शत-प्रतिशत सुनिश्चित करें कि नईं डिस्पोज़ेबल सूंईं ही इस्तेमाल की जा रही है। मैं तो मरीज़ों को इतना भी कहता हूं कि कहीं लैब में अपना ब्लड-सैंपल भी देने जाते हो तो यह सुनिश्चित किया करो कि डिस्पोज़ेबल सूईं को आप के सामने ही खोला गया है.......क्या है न, कईं जगह थोड़ा एक्स्ट्रा-काशियश ही होना अच्छा है, ऐसे ही बाद में व्यर्थ की चिंता करने से तो अच्छा ही है न कि पहले ही थोड़ी एहतियात बरत लें। सो, हमेशा इन बातों का ध्यान रखिएगा। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 12pt;"><!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]--><o:p></o:p></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-11071703548019988242008-02-04T21:01:00.000+05:302008-02-04T21:04:17.502+05:30संडे हो या मंडे--रोज़ खाओ अंडे.....लेकिन इसे पढ़ने के बाद !<p class="MsoNormal"><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt;"><br /></span><span style="font-size: 12pt;"><o:p></o:p></span></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt;">मुझे पता है कि आप ने वह संडे हो या मंडे- रोज़ खाओ अंडे वाला विज्ञापन बहुत बार देखा है, लेकिन आज कल चूंकि देश के कुछ हिस्सों में बर्ड-फ्लू के नाम से थोड़े भयभीत से हैं, इसलिए कुछ बातों की तरफ ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। <o:p></o:p></span></span></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><span style="font-size: 12pt;">विशेषज्ञों ने कच्चे एवं हॉफ-ब्वायलड ( </span><span style="font-size: 12pt;">raw and soft boiled eggs) </span><span style="font-size: 12pt;">अंडो से परहेज़ करने की सलाह दी है। जिन अंड़ों को उच्च तापमान पर पकाया नहीं जाता, <span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 102);">उन के खाने से बर्ड-फ्लू के जीवाणु के इलावा टॉयफाड एवं अन्य जीवाणुओं से होने वाली बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है।</span> <o:p></o:p></span></span><!--[endif]--></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><span style="font-size: 12pt; font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 0);">बर्ड-फ्लू से बचने के लिए केवल पूरी तरह उबले अंडों (full boiled eggs) </span><span style="font-size: 12pt;"><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 0);">का ही </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 0);">इस्तेमाल</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 0);"> किया जाना चाहिए।</span> <o:p></o:p></span></span><!--[endif]--></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><span style="font-size: 12pt;">दूध में कच्चे अंडे डाल कर नहीं पीना चाहिए । आधे उबले अंडों ( </span><span style="font-size: 12pt;">half- boiled eggs) </span><span style="font-size: 12pt;">एवं ऐसे अंडे जिन का योक-<span style=""> </span>अर्थात् वही पीला भाग- तरल सी अवस्था में बह रहा हो ( </span><span style="font-size: 12pt;">runny yolk)</span><span style="font-size: 12pt;"> ,इन का भी सेवन नहीं करना चाहिए।<o:p></o:p></span></span><!--[endif]--></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><span style="font-size: 12pt;">जो लोग बाहर खाते हैं उन्हें भी इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अंडे से बनी सभी पकवानों को उच्च तापमान पर ही तैयार किया गया है। सामान्यतः एक हॉफ-ब्वायलड अंडे को तैयार होने में तीन मिनट, मीडियम ब्वायलड को पांच मिनट और फुल-ब्वायलड अंडे को तैयार होने में दस मिनट का समय लगता है। <o:p></o:p></span></span><!--[endif]--></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><span style="font-size: 12pt;"><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 51);">विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि केक खाना सुरक्षित है .</span>..चूंकि उस में अंडा पड़ा होता है, लेकिन केक की बेकिंग के लिए 200डिग्री सैल्सियस का तापमान चाहिए होता है, जिस के परिणामस्वरूप अंडे में मौजूद बैक्टीरिया एवं अन्य जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। यह ध्यान रहे कि हॉफ-ब्वायलड अंडे आम तौर पर रशियन सलाद जैसी प्रैपरेशन्स में डलते हैं। <o:p></o:p></span></span><!--[endif]--></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><span style="font-size: 12pt; font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">एक बात जो बहुत ही ज़रूरी है लेकिन कभी कोई इस तरफ कम ही ध्यान देता है ..वह यह है कि अंडों को इस्तेमाल करने से पहले धो लेना निहायत ही ज़रूरी है क्योंकि जीवाणु केवल अंडे के शैल ( shell of egg) </span><span style="font-size: 12pt;"><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 51, 0);">के अंदर ही नहीं होते, ये शैल के बाहर भी मौजूद हो सकते हैं। और एक बात और भी इतनी ही ज़रूरी है कि कच्चे अंडों को हाथ लगाने के बाद भी हाथ धोना ज़रूरी है।</span> <o:p></o:p></span></span><!--[endif]--></p> <p class="ListParagraph"><span style="font-size:130%;"><span style="font-size: 12pt;">So, take care !!<o:p></o:p></span></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-43240555936184979252008-01-27T21:37:00.000+05:302008-01-27T08:10:00.509+05:30जब जीना दूभर सा कर देती है यह खारिश-खुजली....<p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;"><br /><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">हमारे यहां खुजली मिटाने वाली दवाईयों की बिक्री बहुत होती है क्योंकि अकसर लोग बिना किसी डाक्टरी सलाह के अपने आप ही कोई भी ट्यूब बाज़ार से ला कर लगानी शुरू कर देते हैं। <span style="font-weight: bold;">बहुत बार तो देखने में आया है कि स्टीरॉयड युक्त ट्यूबें भी खुजली के लिए बिना किसी डाक्टर से परामर्श किए हुए खूब इस्तेमाल की जाती हैं।</span> ऐसे में अकसर रोग को बढ़ावा मिल जाता है। हां,अगर को क्वालीफाईड चिकित्सक अथवा चमड़ी रोग विशेषज्ञ की देख रेख में—उस की सलाह अनुसार- आप इन ट्यूबों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बात और है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">किसी भी तरह के चर्म-रोग होने पर तुरंत अपने चिकित्सक से मिलें----कईं बार कुछ दिन दवाई लगाने पर उपेक्षित आराम नहीं मिलता । ऐसे में आप का फैमिली डाक्टर आप को स्वयं ही किसी चर्म-रोग विशेषज्ञ के पास रैफर कर देगा, अन्यथा आप स्वयं भी किसी प्रशिक्षित चर्म रोग विशेषज्ञ से मिल सकते हैं।<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">मेरे एक मित्र की माता जी की एक आंख के आस-पास चेहरे की चमड़ी में अचानक दर्द रहने लगा......दर्द बहुत तेज़ था.....साथ में छोटे छोटे दाने से निकल आये। उस ने किसी दूसरे शहर में रह रहे हमारे किसी मित्र से बात की जो चर्म-रोग विशेषज्ञ हैं....उस ने सारी बात सुनते ही उस मित्र को कहा कि अपने शहर के किसी चर्म-रोग विशेषज्ञ के पास माता जी को तुरंत ले कर जाओ क्योंकि देख कर ही पूरा पत लग पायेगा (शायद वो पूरी डिसक्रिपश्न सुन कर डॉयग्नोसिस कर चुके थे) । <span style="font-weight: bold;">जब चर्म –रोग विशेषज्ञ के पास माता जी को लेकर जाया गया, तो उस ने देखते ही कह दिया की यह तो इन को हर्पिज़ यॉस्टर हुया है। </span>खूब सारी दवाईंयां तुरंत शुरू की<span style=""> </span>गईं...और नेत्र विशेषज्ञ से मिलने को भी कहा गया। नेत्र विशेषज्ञ ने भी यही कहा कि टाइम पर आ गए हो, नहीं तो आँख ही बेकार हो सकती थी। यह बात बताने का उद्देश्य केवल इतना ही है कि हम किसी भी चमड़ी की तकलीफ को इतना लाइटली न लें।<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;"><span style="color: rgb(0, 0, 102);">तो , आज कुछ बातें स्केबीज़ चर्म रोग के बारे में करते हैं जिस से लोग बहुत परेशान भी होते हैं और डर भी बहुत जाते हैं।</span> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;"><span style=""> </span>स्केबीज़ चर्म रोग सारकॉपटिस स्केबी नामक एक छोटे से कीड़े के द्वारा फैलता है। <span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 51);">यह छूत की बीमारी तो है लेकिन यह हवा, पानी अथवा सांस के द्वारा नहीं फैलती, बल्कि यह रोगी के साथ निकट संपर्क से फैलती है। इसलिए परिवार में एक व्यक्ति से यह सारे परिवार में ही अकसर फैल जाती है।</span> इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को छूने मात्र ही से यह रोग नहीं हो जाता बल्कि नज़दीकी एवं काफी लंबे अरसे तक रोग-ग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में रहने से यह फैलता है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;"><span style="font-weight: bold;">इस के बारे में विशेष ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस का संक्रमण होने पर लगभग एक महीने या उस से भी ज्यादा समय तक मरीज को बिल्कुल खुजली नहीं होती और इस दौरान तो उसे यह भी पता नहीं होता कि उसे कोई चर्म रोग है। लेकिन इस दौरान भी उस के द्वारा यह रोग आगे दूसरे लोगों को तो अवश्य फैल सकता है।</span> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;"><span style="font-weight: bold; color: rgb(204, 0, 0);">आम तौर पर बच्चों में यह रोग बहुत आम है। इस में सारे शरीर पर छोटे-छोटे दाने हो सकते हैं जिन में बेहद खुजली ( खास कर रात के समय) होती है, लेकिन आम तौर पर ये दाने उंगलियों के बीच, कलाई पर, पेट पर एवं प्रजनन अंगों पर ही होते हैं।</span> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">इन दानों पर खुजली करने से संक्रमण बढ़ता है, पस वाले फोड़े बन जाते हैं जिस की वजह से शरीर के विभिन्न भागों में गांठें ( लिम्फ नॉड्स) सूज जाती हैं और बुखार हो जाता है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:12;">साधारणतयः स्कबीज़ चर्म रोग से मृत्यु हो जाना सुनने में नहीं आता, लेकिन अगर छोटे बच्चों को यह त्वचा रोग हो तो उन का विशेष ध्यान रखने की ज़रूरत है। इन में रोग –प्रतिरोधक क्षमता( इम्यूनिटि) तो वैसे ही कम होती<span style=""> </span>है—अगर पस पड़ने से, बुखार होने से , संक्रमण रक्त में चला जाए ( सैप्टीसीमिया) तो यह जान लेवा सिद्ध हो सकता है। <o:p></o:p></span></p> <p style="text-align: center;" class="MsoNormal"><span style="font-size:12;"><span style="font-weight: bold; color: rgb(102, 51, 0);">इस स्केबीज़ चर्म रोग के इलाज के लिए कुछ ध्यान देने योग्य बातें ये भी हैं....</span><o:p></o:p></span></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style=";font-family:Symbol;font-size:12;" >·<span style=""> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size:12;"><span style="font-weight: bold; color: rgb(51, 0, 0);">घर में एक भी सदस्य को स्केबीज़ होने पर पूरे परिवार का एक साथ इलाज होना लाज़मी है।</span> <o:p></o:p></span></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style=";font-family:Symbol;font-size:12;" >·<span style=""> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size:12;">इस बीमारी के पूर्ण इलाज के लिए बहुत ही प्रभावशाली लगाने वाली दवाईयां उपलब्ध हैं। इन का प्रयोग आप अपने चिकित्सक से मिलने के पश्चात् कर सकते हैं। गले के नीचे-नीचे शरीर के सभी भागों में इसे ब्रुश से लगाया जाता है। सारे शरीर की चमड़ी पर इसे लगाना बहुत ज़रूरी है। अगर मरीज इस केवल उन जगहों पर ही लगाएंगे जहां पर ये दाने हैं तो बीमारी का नाश नहीं हो पाएगा। 24घंटे के अंतराल पर यह दवाई ऐसे ही शरीर पर दो बार लगाई जाती है। और उस के बाद नहा लिया जाता है। इस दवाई का शरीर पर 48 घंटे लगे रहना बहुत ज़रूरी है। <o:p></o:p></span></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style=";font-family:Symbol;font-size:12;" >·<span style=""> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size:12;">विश्व विख्यात पुस्तक </span><span style="font-size:12;">“ </span><span style="font-size:12;">जहां कोई डाक्टर न हो</span><span style="font-size:12;">”</span><span style="font-size:12;">के लेखक डेविड वर्नर इस पुस्तक में स्केबीज़ पर एक पेस्ट लगाने की सलाह देते हैं। इसे तैयार करने की विधि इस प्रकार है—थोड़े से पानी में नीम के कुछ पत्ते उबाल लें। इस हल्दी के पावडर के साथ मिला कर एक गाढ़ी पेस्ट बना लें। सारे शरीर को अच्छी तरह से साबुन लगा कर धोने के पश्चात् इस पेस्ट का सारे शरीर विशेषकर उंगलियों के बीच के हिस्सों, टांगों के अंदरूनी हिस्सों( </span><span style="font-size:12;">inside portion of thighs) </span><span style="font-size:12;">एवं पैरों की उंगलियों के बीच लेप कर दें। उस के बाद सूर्य की रोशनी में कुछ समय खड़े हो जायें। अगले तीन दिनों तक रोज़ाना यह लेप करें, लेकिन नहाएं नहीं। चौथे दिन मरीज़ नहाने के बाद साफ़ सुथरे, सूखे कपड़े पहने। चमड़ी रोग विशेषज्ञ से मिलने से पहले आप इस घरेलु पेस्ट का उपयोग तो अवश्य कर ही सकते हैं , लेकिन प्रोपर डायग्नोसिस एवं यह पता करने के लिए कि रोग जड़ से खत्म हो गया है या नहीं...इस के लिए चर्म-रोग विशेषज्ञ से मिलना तो ज़रूरी है ही। <o:p></o:p></span></p> <p class="ListParagraph" style="text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style=";font-family:Symbol;font-size:12;" >·<span style=""> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size:12;">स्केबीज़ से डरिए नहीं, इस का इलाज तो बहुत आसान है<span style=""> </span>ही, रोकथाम भी बड़ी आसान है। साफ़-स्वच्छ जीवन-शैली, रोज़ाना नहा धो-कर कपड़े बदलने से इससे बचा जा सकता है। कपड़े और बिस्तर की सफाई का ध्यान रखें और सूर्य की रोशनी में इन्हें अच्छी तरह सुखाएं। और हां, छोटे बच्चों को भी यह रोग होने पर तुरंत चिकित्सक से मिलें। <o:p></o:p></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-73974699378414789982008-01-23T13:16:00.000+05:302017-04-14T14:09:20.642+05:30गन्ने के रस का लुत्फ तो आप भी ज़रूर उठाते होंगे !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBo0XxsbqE66q1-vO-BlbYHZ6-T2g9A9LoD-nLIZv7Fffc5kqBxwF4Xr8ffZIUGZtkjHKbH_fnPdsSLZaRQGrAvUFwjytuV45PE61vgpfkr8JO2f6gMYHSpef-Y2Y-mH-AoGSu8FO6zLA/s1600-h/DSC04678.JPG" onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}"><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5159374598416938674" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBo0XxsbqE66q1-vO-BlbYHZ6-T2g9A9LoD-nLIZv7Fffc5kqBxwF4Xr8ffZIUGZtkjHKbH_fnPdsSLZaRQGrAvUFwjytuV45PE61vgpfkr8JO2f6gMYHSpef-Y2Y-mH-AoGSu8FO6zLA/s200/DSC04678.JPG" style="cursor: pointer; float: left; margin: 0pt 10px 10px 0pt;" /></a><br />
<br />
मैं जब भी बम्बई में होता हूं न तो दोस्तो वहां पर बार बार गन्ने के रस पीने से कभी नहीं चूकता.. लेकिन अपने यहां पंजाब -हरियाणा में मेरी पिछले कुछ सालों से कभी गन्ने का रस पीने की इच्छा ही नहीं हुई। पिछले कुछ सालों से इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि पहले खराब गन्ने का रस पीने के नुकसानों से वाकिफ न था। वैसे तो मैं बचपन से ही इस का शौकीन रहा हूं - जब भी मां की उंगली पकड़ कर बाज़ार जाता तो आते वक्त मेरा एक गन्ने का गिलास पक्का था।<br />
<br />
दोस्तो, 1980 में मुझे पीलिया हो गया तो मेरी मां बहुत दूर से जाकर छःसात गिलास गन्ने का रस ले कर आती थी, क्योंकि उस अमृतसर के दुर्ग्याणा मंदिर के बाहर स्थित गन्ने के रस की दुकान की खासियत ही यह थी कि वह खूब सारा धूप वगैरह जला कर एक भी मक्खी आस पास नहीं फटकने देता था। और पीलिया रोग में तो यह एहतियात और भी कहीं ज्यादा जरूरी थी।<br />
<br />
और बचपन में याद है कि हम लोग स्कूल से आते हुए एक ऐसी जगह से यह जूस पीते थे जहां पर बैल की आंखों पर पट्टी बांध कर उसे गोल-गोल दायरे में घुमा कर गन्नों को पीस कर जूस निकाल जाता था, तब किस कमबख्त को इस की फिकर थी कि क्या मिल रहा है। बस यही शुक्र था कि जूस के पीने का आनंद लूट रहे थे। इस के बाद , अगला स्टाप होता था , साथ में बैठी एक छल्ली वाली ....वही जिसे भुट्टा कहते हैं-- उस से पांच-दस पैसे में कोई छल्ली ले कर आपनी यात्रा आगे बढ़ा करती थी।<br />
<br />
सारी, फ्रैंडज़, यह जब से ब्लागिरी शुरु की है न , मुझे अपनी सारी पुरानी बातें बहुत याद आने लगी हैं...क्या आप को के साथ भी ऐसा हो रहा है। कमैंटस में जवाब देना, थोड़ी तसल्ली सी हो जाएगी<br />
।<br />
हां, तो मैं बात कर रहा था कि बम्बई में जाकर वहां पर गन्ने के रस का भरपूर आनंद लूटना चाहता हूं। इस का कारण पता है क्या है ...वहां पर गन्ने के रस के स्टालों पर एकदम परफैक्ट सफाई होती है, उन का सारा ताम-झाम एक दम चमक मार रहा होता है और सब से बड़ी बात तो यह कि उन्होंने सभी गन्नों को सलीके से छील कर अपने यहां रखा होता है ....इसलिए किसी भी गन्ने का ज़मीन को छूने का तो कोई सवाल ही नहीं।<br />
<br />
इधर इस एरिया में इतनी मेहनत किसी को करते देखा नहीं, ज्यादा से ज्यादा अगर किसी को कहें तो वह गन्नों को कपड़ों से थोड़ा साफ जरूर कर लेते हैं ,लेकिन जिसे एक बार बम्बई के गन्ने के रस का चस्का लग जाता है तो फिर उसे ऐसी वैसी जगह से यह जूस पसंद नहीं आता। बम्बई ही क्यों , दोस्तो, कुछ समय पहले जब मुझे हैदराबाद जाने का मौका मिला तो वहां पर भी इस गन्ने के रस को कुछ इतनी सी सफाई से परोसा जा रहा था। यह क्या है न दोस्तो कि कुछ कुछ जगहों का कुछ कल्चर ही बन जाता है।<br />
<br />
और जगहों का तो मुझे इतना पता नहीं, लेकिन दोस्तो, पंजाब हरियाणा में क्योंकि कुछ जूस वाले सफाई का पूरा ध्यान नहीं रखते इसलिए गर्मी के दिनों में लोकल प्रशासन द्वारा इस की बिक्री पर कुछ समय के लिए रोक ही लगा दी जाती है ...क्योंकि इस प्रकार से निकाला जूस तो बस बीमारियों को खुला बुलावा ही होता है।<br />
<br />
तो,आप भी सोच रहे हैं कि इस में कोई हैल्थ-टिप दिख नहीं रही-तो ,दोस्तो, बस आज तो बस इतनी सी ही बात करनी है कि गन्ने का रस पीते समय ज़रा साफ-सफाई का ध्यान कर लिया करें।<br />
<br />
वैसे जाते जाते बम्बई वासियों के दिलदारी की एक बात बताता हूं ...कुछ दिन पहले ही चर्चगेट स्टेशनके बाहर हम लोग गन्ने का जूस पी रहे थे कि एक भिखारी उस दुकान पर आया और उसे देखते ही दुकानदार ने उसे गन्ने के रस का एक गिलास थमा दिया.....उसने बीच में पीते हुए दुकानदार से इतना कहने की ज़ुर्रत कैसे कर ली....नींबू भी डाल दो। और दुकानदार ने भी उसी वक्त कह दिया कि सब कुछ डाला हुया है , तू बस साइड में हो कर पी ले। मैं यह समझ नहीं पाया कि क्या उस भिखारी ने नींबू मांग कर ठीक किया कि नहीं.....खैर जो भी , We liked this small noble gesture of that shopkeeper. May he always keep it up !!</div>
Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-59214620775678914622008-01-15T04:58:00.000+05:302008-01-15T05:02:20.708+05:30तंबाकू की लत से जुड़े कुछ मिथक....<p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;"><br /><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">कुछ दिन पहले जब मैं मुंबई के लोकल स्टेशनों के बाहर सुबह-सवेरे कुछ महिलाओं एवं बच्चों को दांतों पर मेशरी (जला हुया तंबाकू) घिसते हुए देख कर यही सोच रहा था कि यद्यपि यह भयंकर आदत मुंह के कैंसर को निमंत्रण देने के बराबर ही तो है, फिर भी जब हम विश्व तंबाकू मुक्ति दिवस मनाते हैं, तो उस अभियान में यह लोग केंद्र-बिंदु क्यों नहीं बन पाते। तम्बाकू पीना, चबाना, मुंह में लगाना या किसी भी रूप में प्रयोग करना नई महामारी को खुला निमंत्रण दिए जा रहा है और हम अपने अधिकतर संसाधन लोगों को केवल सिगरेट के दुष्परिणामों से वाकिफ़ करवाने में ही लगा देते हैं.........लेकिन समय की मांग है कि इस के साथ-साथ देश में व्याप्त तंबाकू प्रयोग से संबंधित विभिन्न मिथकों को तोड़ा जाए </span><span style="font-size: 14pt;">!!<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt; color: rgb(153, 51, 153);">बीड़ी सिगरेट से कम हानिकारक </span><span style="font-size: 14pt;"><span style="color: rgb(153, 51, 153);">?----</span><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">यह बिल्कुल गलत सोच है। बीड़ी भी कम से कम सिगरेट के जितनी तो घातक है ही। इस को सिगरेट की तुलना में चार से पांच गुणा लोग पीते हैं। एक ग्राम तंबाकू से औसतन एक सिगरेट तैयार होती है लेकिन इतना तंबाकू 3या 4 बीड़ीयां बनाने के काम आता है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">बीड़ी का आधा वज़न तो उस तेंदू के पत्ते का ही होता है जिस में तम्बाकू लपेटा जाता है। इतनी कम मात्रा में तम्बाकू होते हुए और अपना छोटा आकार होते हुए भी एक बीड़ी कम से कम भारत में बने एक सिगरेट के समान टार तथा निकोटीन उगल देती है, जब कि कार्बनमोनोआक्साइड तथा अन्य विषैले रसायनों की मात्रा तो बीड़ी में सिगरेट की अपेक्षा काफी ज्यादा होती है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt; color: rgb(0, 153, 0);">हुक्का पीना....कोई बात ही नहीं.....यह तो सब से सुरक्षित है ही !---रीयली </span><span style="font-size: 14pt;"><span style="color: rgb(0, 153, 0);">???</span>-----</span><span style="font-size: 14pt;">हुक्के के कश में निकोटीन की मात्रा थोड़ी कम होती है क्योंकि इस में धुआं लम्बी नली व पानी में से छन कर आता है, लेकिन कार्बन-मोनोआक्साईड तथा कैंसर पैदा करने की क्षमता में कमी नहीं होती है। हुक्के में तंबाकू की मात्रा ज्यादा होती है जिससे शरीर में निकोटीन की मात्रा, ज्यादा देर तक हुक्का पीने के कारण बीड़ी सिगरेट के बराबर ही हानि पहुंचाती है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt; color: rgb(255, 204, 51);">यार, पिछले बीस-तीस साल से तो ज़र्दा-धूम्रपान का मज़ा लूट रहे हैं, अब क्या खाक होगा </span><span style="font-size: 14pt;"><span style="color: rgb(255, 204, 51);">!-</span>---- </span><span style="font-size: 14pt;">ज़र्दा एवं धूम्रपान से होने वाली बीमारियों का शुरू शुरू में तो कुछ पता चलता नहीं है, इन का पता तब ही लगता है जब कोई लाइलाज बीमारी हो जाती है। लेकिन यह ही पता नहीं होता कि किस को यह लाइलाज बीमारी पांच वर्ष ज़र्दा-धूम्रपान के सेवन के बाद होगी या तीस वर्ष के बाद। चलिए, एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं--- अपने मकान के पिछवाड़े में बार-बार भरने वाले बरसात के पानी को यदि आप न देख पायें तो नींव में जाने वाले इस पानी के खतरे का अहसास आप को नहीं होगा। इस का पता तो तभी चलेगा जब इससे मकान की दीवार में दरार आ जाए या मकान गिर जाए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ज़र्दा-धूम्रपान एक प्रकार से बार-बार पिछवाड़े में भरने वाले पानी के समान है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">रोगों को मिल गई खान,<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">जिसने किया ज़र्दा-धूम्रपान </span><span style="font-size: 14pt;">!!<o:p></o:p></span></p> <p style="color: rgb(255, 0, 0);" class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">पान-मसाला, ज़र्दा मुंह को बस थोड़ा तरोताज़ाही ही तो करता है, और है क्या, काहे की टेंशन मोल लें </span><span style="font-size: 14pt;">?- <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;"><span style="color: rgb(51, 51, 51);">दोस्तो, पिछले दो-तीन दश</span>कों से तो हमारे देश में तंबाकू खाने की लत बहुत ही बढ़ गई है। पान-सुपारी-चूना वगैरह के साथ तंबाकू मिलाकर उसे चबाने की अथवा गालों के अंदर या जीभ के नीचे या फिर होठों के पीछे दबा कर रखने की बुरी आदत शहरी एवं ग्रामीण दोनों वर्गों में बहुत ज्यादा देखने को मिलती है। पान-मसालों या तंबाकू युक्त गुटखा के उत्पादों का आकर्षण तो बस बढ़ता ही जा रहा है। इन को तो विज्ञापनों की मदद से कुछ इस तरह से पेश किया जाता है कि ये तो मात्र माउथ-फ्रेशनर ही तो हैं </span><span style="font-size: 14pt;">!!—</span><span style="font-size: 14pt;">लेकिन ये लतें भी धूम्रपान जितनी ही नुकसानदायक हैं। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">इन के प्रयोग से मुंह की कोमल त्वचा सूखी, खुरदरी तथा झुर्रीदार बन जाती है। मरीज का मुंह धीरे-धीरे खुलना बंद हो जाता है और उस व्यक्ति की गरम, ठंडा, तीखा, खट्टा सहन करने की क्षमता बहुत ही कम हो जाती है। इस स्थिति को ही सब-म्यूकस फाईब्रोसिस कहा जाता है और यह मुंह में होने वाले कैंसर के लिए खतरे की घंटी ही है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;"><!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]--><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">अब, देखा जाए तो देश में तंबाकू की रोकथाम के कायदे-कानून तो काफी हैं...लेकिन, दोस्तो, बात फिर वहीं आकर खत्म होती है कि कायदे, कानून कितने भी बन जाएं, लेकिन फैसला तो केवल और केवल आप के मन का ही है कि आप स्वास्थ्य चाहते हैं या तंबाकू-----अफसोस, आप दोनों को नहीं चुन सकते। बस, कोई भी फैसला लेते समय ज़रा ये पंक्तियां ध्यान में रखिएगा तो बेहतर होगा....<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">ज़र्दा-धूम्रपान की लत जो डाली,देह रह गई बस हड्डीवाली </span><span style="font-size: 14pt;">!!<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;"><!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]--><o:p></o:p></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-23364747682695949092008-01-14T08:38:00.000+05:302008-01-14T08:45:46.129+05:30चमत्कारी दवाईयां – लेकिन लेने से पहले ज़रा सोच लें !!<p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;"><br /></span><span style="font-size: 14pt;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">यह क्या, आप भी क्या सोचने लग गए </span><span style="font-size: 14pt;">?- </span><span style="font-size: 14pt;">वैसे आप भी बिलकुल ठीक ही सोच रहे हैं- ये वही चमत्कारी दवाईयां हैं जिन के बारे में आप और हम तरह तरह के विज्ञापन देखते, पढ़ते और सुनते रहते हैं जिनमें यह दावा किया जाता है कि हमारी चमत्कारी दवा से किसी भी मरीज़ का पोलियो, कैंसर, अधरंग, नसों का ढीलापन, पीलिया रोग शर्तिया तौर पर जड़ से खत्म कर दिया जाता है। वैसे, चलिए आज अपनी बात पीलिया रोग तक ही सीमित रखते हैं।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 14pt;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े होने के कारण बहुत से मरीज़ों से ऐसा सुनने को मिला कि पीलिया होने पर फलां-फलां शहर से लाकर चमत्कारी जड़ी-बूटी इस्तेमाल की, तब कहीं जाकर पीलिये के रोग से छुटकारा मिला। साथ में यह भी बताना नहीं भूलते कि जो शख्स यह काम कर रहा है उस को पीलिये के इलाज का कुछ रब्बी वरदान (बख्श) ही मिला हुया है – वह तो बस यह सब सेवा भाव से ही करता है, न कोई फीस, न कोई पैसा।<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;"><!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]--><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">हमारे देश की प्राकृतिक वन-सम्पदा तो वैसे ही निराली है- औषधीय जड़ी बूटियों का तो भंडार है हमारे यहां। हमारी सरकार इन पर होने वाले अनुसंधान को खूब बढ़ावा देने के लिए सदैव तत्पर रहती है। इस तरह की योजनाओं के अंतर्गत सरकार चाहती है कि हमारी जनता इस औषधीय सम्पदा के बारे में जितना भी ज्ञान है उसे प्रगट करे जिससे कि सरकार उन पौधों एवं जड़ी बूटियों का विश्लेषण करने के पश्चात् उन की कार्यविधि की जानकारी हासिल तो करें ही, साथ ही साथ यह भी पता लगाएं कि वे मनुष्य द्वारा खाने के लिए सुरक्षित भी हैं या नहीं अथवा उन्हें खाने से भविष्य में क्या कुछ दोष भी हो सकते हैं </span><span style="font-size: 14pt;">?</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 14pt;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">अच्छा, तो बात चल रही थी , पीलिये के लिए लोगों द्वारा दी जाने वाली चमत्कारी दवाईयों की। आप यह बात अच्छे से समझ लें कि पीलिये के मरीज़ की आंखों का अथवा पेशाब का पीलापन ठीक होना ही पर्याप्त नहीं है, लिवर की कार्य-क्षमता की जांच के साथ-साथ इस बात की भी पुष्टि होनी ही चाहिए कि यह जड़ी-बूटी शरीर के किसी भी महत्वपूर्ण अंग पर कोई भी गल्त प्रभाव न तो अब डाल रही है और न ही इस के प्रयोग के कईं वर्षों के पश्चात् ऐसे किसी कुप्रभाव की आशंका है। इस संबंध में चिकित्सा वैज्ञानिकों की तो राय यही है कि इन के समर्थकों का दावा कुछ भी हो, उन की पूरा वैज्ञानिक विश्लेषण तो होना ही चाहिए कि वे काम कैसे करती हैं और उन में से कौन से सक्रिय रसायन हैं जिसकी वजह से यह सब प्रभाव हो रहा है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 14pt;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">अकसर ऐसा भी सुनने में आता है कि ऐसी चमत्कारी दवाईयां देने</span></p><p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;"> वाले लोग इन दवाई के राज़ को राज़ ही बनाए रखना चाहते हैं---उन्हें यह डर रहता है कि कहीं इस का ज्ञान सार्वजनिक करने से उनकी यह खानदानी शफ़ा ही न चली जाए। वैसे तो आज कल के वैज्ञानिक संदर्भ में यह सब हास्यास्पद ही जान पड़ता है। --- क्योंकि यह मुद्दा पैसे लेने या न लेने का उतना नहीं है जितना इश्यू इस बात का है कि आखिर इन जड़ी-बूटियों का वैज्ञानिक विश्लेषण क्या कहता है </span><span style="font-size: 14pt;">?- </span><span style="font-size: 14pt;">वैसे कौन कह सकता है कि किसी के द्वारा छिपा कर रखे इस ज्ञान की<span style=""> </span>वैज्ञानिक जांच के पश्चात् यही सात-समुंदर पार भी लाखों-करोड़ों लोगों की सेवा कर सकें।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 14pt;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">वैसे तो एक बहुत जरूरी बात यह भी है कि किसी को पीलिया होने पर तुरंत ही इन बूटियों का इस्तेमाल<span style=""> </span>करना उचित नहीं लगता –कारण मैं बता रहा हूं। जिस रोग को हम पीलिया कहते हैं वह तो मात्र एक लक्षण है जिस में भूख न लगना, मतली आना, उल्टियां होने के साथ-साथ पेशाब का रंग गहरा पीला हो जाता है, कईं बार मल का रंग सफेद सा हो जाता है और साथ ही साथ आंखों के सफेद भाग पर पीलापन नज़र आता है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">पीलिये के कईं कारण हैं और केवल एक प्रशिक्षित चिकित्सक ही पूरी जांच के बाद यह बता सकता है कि किसी केस में पीलिये का कारण क्या है......क्या यह लिवर की सूजन की वजह से है या फिर किसी और वजह से है। यह जानना इस लिए जरूरी है क्योंकि उस मरीज का इलाज फिर ढ़ूंढे गए कारण के मुताबिक ही किया जाता है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">मैं सोचता हूं कि थोड़ी चर्चा और कर लें। दोस्तो, मैं बात कर रहा था एक ऐसे कारण की जिस में लिवर में सूजन आने की जिस की वजह से पीलिया हो जाता है। अब देखा जाए तो इस जिगर की सूजन के भी वैसे तो कईं कारण हैं,लेकिन हम इस समय थोड़ा ध्यान देते हैं केवल विषाणुओं (वायरस) से होने वाले यकृतशोथ (लिवर की सूजन) की ओर, जिसे अंगरेज़ी में हिपेटाइटिस कहते हैं। अब इन वायरस से होने वाले हिपेटाइटिस की भी कईं किस्में हैं,लेकिन हम केवल आम तौर पर होने वाली किस्मों की बात अभी करेंगे----- हिपेटाइटिस ए जो कि हिपेटाइटिस ए वायरस से इंफैक्शन से होता है। ये विषाणु मुख्यतः दूषित जल तथा भोजन के माध्यम से फैलते हैं। इस के मरीजों में ऊपर बताए लक्षण बच्चों में अधिक तीव्र होते हैं। इस में कुछ खास करने की जरूरत होती नहीं , बस कुछ खाने-पीने में सावधानियां ही बरतनी होती हैं.....साधारणतयः ये लक्षण 6 से 8 सप्ताह ( औसतन 4-5 सप्ताह) तक रहते हैं। इसके पश्चात् लगभग सभी रोगियों में रोग पूर्णतयः समाप्त हो जाता है। हिपेटाइटिस बी जैसा कि आप सब जानते हैं कि दूषित रक्त अथवा इंफैक्टिड व्यक्ति के साथ यौन-संबंधों से फैलता है।</span></p><p class="MsoNormal"><br /><span style="font-size: 14pt;"> <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;">बात लंबी हो गई लगती है, कहीं उबाऊ ही न हो जाए, तो ठीक है जल्दी से कुछ विशेष बातों को गिनते हैं....<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in; text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 14pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 14pt;">अगर किसी को पीलिया हो जाए तो पहले चिकित्सक से मिलना बेहद जरूरी है जो कि शारीरिक परीक्षण एवं लेबोरेट्री जांच के द्वारा यह पता लगायेगा कि यह कहीं हैपेटाइटिस बी तो नहीं है अथवा किसी अन्य प्रकार का हैपेटाइटिस तो नहीं है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in; text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 14pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 14pt;">इस के साथ ही साथ रक्त में बिलिर्यूबिन </span><span style="font-size: 14pt;">(Serum Bilirubin)<span style=""> </span></span><span style="font-size: 14pt;">की मात्रा की भी होती है ---दोस्तो, यह एक पिगमैंट है जिस की मात्रा अन्य लिवर फंक्शन टैस्टों (</span><span style="font-size: 14pt;">Liver function tests which include SGOT, SGPT and of course , Serum Bilirubin) </span><span style="font-size: 14pt;">के साथ किसी व्यक्ति के लिवर के कार्यकुशल अथवा रोग-ग्रस्त होने का प्रतीक तो हैं ही, इस के साथ ही साथ मरीज के उपचार के पश्चात् ठीक होने का भी सही पता इन टैस्टों से ही चलता है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in; text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 14pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 14pt;">इन टैस्टों के बाद डायग्नोसिस के अनुसार ही फिर चिकित्सक द्वारा इलाज शुरू किया जाएगा। कुछ समय के पश्चात ऊपर लिखे गए टैस्ट या कुछ और भी जांच करवा के यह सुनिश्चित किया जाता है कि रोगी का लिवर वापिस अपनी सामान्य अवस्था में किस गति से आ रहा है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in; text-indent: -0.25in;"><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 14pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 14pt;">दोस्तो, जहां तक हिपेटाइटिस बी की बात है उस का इलाज भी पूरा करवाना चाहिए। अगर किसी पेट के विशेषज्ञ ( </span><span style="font-size: 14pt;">Gastroenterologist) </span><span style="font-size: 14pt;">से परामर्श कर लिया जाए तो बहुत ही अच्छा है। यह वही पीलिया है जिस अकसर लोग खतरनाक पीलिया अथवा काला पीलिया भी कह देते हैं। इस बीमारी में तो कुछ समय के बाद ब्लड-टैस्ट दोबारा भी करवाये जाते हैं ताकि इस बात का भी पता लग सके कि क्या अभी भी कोई दूसरा व्यक्ति मरीज़ के रक्त के संपर्क में आने से इंफैक्टेड हो सकता है अथवा नहीं। ऐसे मरीज़ों को आगे चल कर किन तकलीफ़ों का सामना करना पड़ सकता है, इस को पूरी तरह से आंका जाता है। <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 14pt;">बात थोड़ी जरूर हो गई है, लेकिन शायद यह जरूरी भी थी। दोस्तो, हम ने देखा कि चमत्कारी दवाईयां लेने से पहले अपने चिकित्सक से बात करनी कितनी ज़रूरी है और बहुत सोचने समझने के पश्चात् ही कोई निर्णय लें-----अपनी बात को तो, दोस्तो, मैं यहीं विराम देता हूं लेकिन फैसला तो आप का ही रहेगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति जड़ी –बूटियों द्वारा ही अपना इलाज करवाना चाहता है तो भी उसे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञों से विमर्श करने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए।<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 14pt;">दोस्तो, यार यह हमारी डाक्टरों की भी पता नहीं क्या मानसिकता है.....मकर-संक्रांति की सुहानी सुबह में क्या बीमारीयों की बातें करने लग पड़ा हूं....आप को अभी विश भी नहीं की...................<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 14pt;">आप सब को मकर-संक्रांति को ढ़ेरों बधाईयां .......आप सब इस वर्ष नईं ऊंचाईंयां छुएं और सदैव प्रसन्न एवं स्वस्थ रहें </span><span style="font-size: 14pt;">!!<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 14pt;"><!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]--><o:p></o:p></span></p>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-16600426102978320.post-53776768266579045712008-01-13T14:18:00.000+05:302008-01-13T14:30:13.907+05:30सर्दी लग जाने पर क्या करें ?<p class="MsoNormal"><span style="font-size: 16pt;">सर्दी लग जाने पर क्या करें </span><span style="font-size: 16pt;">?<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 16pt;">दोस्तो, इस मौसम में तो लगता है हर कोई ठंड लग जाने से हुई खांसी जुकाम से परेशान है। शीत लहर अपने पूरे यौवन पर है। इस से बचने एवं साधारण उपचार पर चलिए थोड़ा प्रकाश डालते हैं..........<o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal; color: rgb(0, 0, 102);"> <span style="font-style: italic;"> </span></span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">इस मौसम में तो लोग खांसी-जुकाम से परेशान हो जाते हैं।</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">ठंड के मौसम में वैसे भी हम सब की इम्यूनिटी (रोग से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता) कम होती है। ऊपर से इन तकलीफों से संबंधित विषाणु (विशेषकर वायरस) खूब तेज़ी से फलते-फूलते हैं। ज्यादा लोगों को पास पास एक ही जगह पर रहने से अथवा एकत्रित होने से खांसी एवं छींकों के साथ निकलने वाले वायरस (ड्रापलैट इंफैक्शन) एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को जल्दी ही अपनी चपेट में ले लेते हैं। <o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: italic; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal; color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">अब प्रश्न यही उठता है कि इस से बचें कैसे....क्या कुछ विशेष खाना चाहिए ..</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">इस से बचे रहने का मूलमंत्र तो यही है कि आप पर्याप्त एवं उपर्युक्त कपड़े पहन कर ठंडी से बचें। ऐसे कोई विशेष खाध्य पदार्थ नहीं हैं जिससे आप इस से बच सकें। आप को तो केवल शरीर की इम्यूनिटि बढ़ाने के लिए सीधा-सादा, संतुलित आहार लेना चाहिए--- इस से तरह तरह की दालों, साग, सब्जियों, मौसमी फलों , आंवले इत्यादि का प्रचुर मात्रा में सेवन आवश्यक है।<o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: italic; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal; color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">लोग अकसर इन तकलीफों में स्वयं ही एंटीबायोटिक दवाईयां लेनी शुरू कर देते हैं.....क्या यह ठीक है ??</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">सामान्यतयः इन मौसमी छोटी मोटी तकलीफों में ऐंटीबायोटिक दवाईयों का कोई स्थान नहीं है। अगर यह खांसी –जुकाम बिगड़ जाए तो भी चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही दवाईया लें। <o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: italic; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal; color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">इस अवस्था में पहले तो लोग घरेलु नुस्खों से ही काम चला लिया करते थे और वे स्वस्थ भी हो जाया करते थे।</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">ये घरेलु नुस्खे आज भी उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले हुया करते थे। इस में मुलहट्ठी चूसना, चाय में एक चुटकी नमक डाल कर पीना, नींबू और शहद का इस्तेमाल, भाप लेना, नमक वाले गर्म पानी से गरारे करना शामिल हैं। ध्यान रहे कि भाप लेते समय पानी में कुछ भी डालने की आवश्यकता नहीं है। <o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> <span style="color: rgb(0, 0, 102);"> </span><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt; font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">घरेलु नुस्खों के साथ-साथ और क्या करें ?</span><span style="font-size: 16pt;"><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">हां,हां, यह बहुत जरूरी है कि रोगी को उस के स्वाद एवं उपलब्धता के अनुसार खूब पीने वाले पदार्थ देते रहें, मरीज पर्याप्त आराम भी लें। बुखार एवं बदन टूटने के लिए दर्द निवारक टेबलेट ले लें।<o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: italic; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal; color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">नन्हे-मुन्ने शिशुओं का नाक को अकसर इतना बंद हो जाता है कि वे मां का दूध तक नहीं पी पाते ...</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">ऐसा होने पर यह करें कि एक गिलास पानी में एक चम्मच नमक डाल कर उबाल लें। फिर उसे ठंडा होने दें। बस हो गई तैयार आप के शिशु के नाक में डालने की दवा। आवश्यकतानुसार इस की 3-4 बूंदें शिशु के नाक में डालते रहें जिस से उस के नाक में जमा हुया रेशा ( </span><span style="font-size: 16pt;">dried-up secretions) </span><span style="font-size: 16pt;">नरम होकर छींक के साथ बाहर आ जाएगा और शिशु का नाक खुल जाएगा। वैसे तो इस तरह की नाक में डालने की बूंदें (सेलाइन नेज़ल ड्राप्स) आप को कैमिस्ट की दुकान से भी आसानी से मिल सकती हैं। <o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: italic; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal; color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic;"><span style="color: rgb(0, 0, 102);">कईं बार जब जुकाम से पीड़ित मरीज़ अपनी नाक साफ करता है तो खून निकल आता है जिससे वह बंदा बहुत डर जाता है, ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए ..</span>.</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">ज्यादा जुकाम होने की वजह से भी सामान्यतयः नाक को साफ करते समय दो-चार बूंदें रक्त की निकल सकती हैं। लेकिन ऐसी अवस्था में किसी ईएऩटी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श कर ही लेना चाहिए। <o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: italic; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal; color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">ऐसा कौन सी अवस्थाएं हैं जिन में कान-नाक-गला विशेषज्ञ से संपर्क कर लेना चाहिए...</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">खांसी जुकाम से पीड़ित मरीज को अगर कान में दर्द है, सांस लेने में कठिनाई हो रही है, गले में इतन दर्द है कि थूक भी नहीं निगला जा रहा, गले अथवा नाक से खून निकलने लगे,आवाज़ बैठ जाए, खांसी की आवाज़ भी अगर बदली सी लगे, खांसी-जुकाम से आप को तंग होते हुए अगर सात दिन से ज्यादा हो जाये अथवा यह तकलीफ़ आप को बार-बार होने लगे------इन सब अवस्थाओं में ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिलें। <o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: italic; font-variant: normal; font-weight: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal; color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">लोग अकसर थोड़ी बहुत तकलीफ होने पर ही नाक में डालने वाली दवाईयों तथा खांसी की पीने वीली शीशीयां इस्तेमाल करनी शुरू कर देते हैं......</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 16pt;"><!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]--><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.25in;"><span style="font-size: 16pt;">नाक में डालने वाली दवाईयों तथा नाक खोलने के लिए उपयोग किए जाने वाले इंहेलर का भी चिकित्सक की सलाह के बिना पांच दिन से ज्यादा उपयोग न करें। इन को लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से और भी ज्यादा जुकाम होने का डर बना रहता है। रही बात खांसी की शीशीयों की, बाज़ार में उपलब्ध ज्यादातर खांसी की इन दवाईयों का इस अवस्था में कोई उपयोग है ही नहीं। <o:p></o:p></span></p> <ul><li><!--[if !supportLists]--><span style="font-size: 16pt; font-family: Symbol;">·<span style="font-family: "Times New Roman"; font-style: italic; font-variant: normal; font-size: 7pt; line-height: normal; font-size-adjust: none; font-stretch: normal;"> <span style="color: rgb(0, 0, 102);"> </span></span></span><!--[endif]--><span style="font-size: 16pt;"><span style="font-style: italic; color: rgb(0, 0, 102);">कान में दर्द तो आम तौर पर सभी को कभी कभार हो ही जाता है न......इस में तो कोई खास बात नहीं है न ?</span><o:p></o:p></span></li></ul> <p class="MsoNormal" style="margin-left: 0.5in;"><span style="font-size: 16pt;">कान में दर्द किसी सामान्य कारण (जैसे मैल वगैरह) से है या कान के भीतरी भागों में इंफैक्शन जैसी किसी सीरियस वजह से है, इस का पता ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिल कर लगाना बहुत ज़रूरी है। विशेषकर पांच साल से छोटे बच्चों में तो इस का विशेष ध्यान रखें क्योंकि ऐसी इंफैक्शन कान के परदे में 24 से 48 घंटों के अंदर ही सुराख कर सकती है।<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><!--[if !supportEmptyParas]--> <!--[endif]--><o:p></o:p></p> <span style="font-size: 16pt;"></span>Dr Parveen Choprahttp://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.com4