वैसे तो इस समय सुबह के पांच भी नहीं बजे और किसी भी लिहाज से खाने का समय नहीं है। लेकिन यह ढाबे वाली खबर देख कर मुझे पूरा विश्वास है कि आप की तो भूख ही छू-मंतर हो जायेगी। ले-देकर इन देश की जनता जनार्दन के पास पेट में दो-रोटी डालने के लिये एक ही तो ताज़ा, सस्ता और साफ़-सुथरा विकल्प था.....ढाबे का खाना।
अकसर हम लोग जब भी कहीं बाहर हुया करते हैं तो कहते ही हैं ना कि चलो, ढाबे में ही चलते हैं क्योंकि यह बात हम लोगों के मन में विश्वास कर चुकी है कि इन ढाबों पर तो सब कुछ विशेषकर वहां मिलने वाली बढ़िया सी दाल( तड़का मार के !)….तो ताज़ी मिल ही जायेगी............लेकिन इस रिपोर्ट ने तो उस दाल का ज़ायका ही खराब कर दिया है ...........आप ने भी कभी सोचा न होगा कि इस तरह के रासायन ढाबों में भी इस्तेमाल होते हैं ताकि शोरबा स्वादिष्ट बन जाये।
वो अलग बात है कि मुझे यह पढ़ कर बेहद दुःख हुया क्योंकि मेरे विश्वास को ठेस लगी है.....मुझे ही क्या, सोच रहा हूं कि इस देश की आम जनता की पीठ में किसी ने छुरा घोंपा है.......लेकिन इस हैल्थ-रिपोर्ट को देख कर खुशी इसलिये हुई कि इस में सब कुछ बहुत बैलेंस्ड तरीके से कवर किया गया है। बात सीधे सादे ढंग से कहने के कारण सीधी दिल में उतरती है। शायद इसीलिये मैंने भी आज से एक फैसला किया है....आज से ढाबे से लाई गई सब्जी/भाजी जहां तक हो सके नहीं खाऊंगा....हां, कहीं बाहर गये हुये एमरजैंसी हुई तो बात और है, लेकिन वो ढाबे के खाने का शौकिया लुत्फ लूटना आज से बंद, वैसे मैं तो पहले ही से इन की मैदे की बनी कच्ची-कच्ची रोटियां खा-खा कर अपनी तबीयत खराब होने से परेशान रहता था, लेकिन इन के द्वारा तैयार इस दाल-सब्जी के बारे में छपी खबर ने तो मुंह का सारा स्वाद ही खराब कर दिया है.....सोचता हूं कि उठ कर ब्रुश कर ही लूं !
11 comments:
खाना तो घर का ही अच्छा जी। सूडान पढ़ कर लगता है - कहां जा रहे या क्या खा रहे हैं।
जब जब भी बाहर खाया पछताया, लौट कर बुद्धू घर को आया।
डाक्टर साहेब ,आपके यमुनानगर तक पहुँचते पहुँचते G. T रोड पे इतने ढाबे है ...पर आपकी बात पढ़के यकीनन उस तड़का दाल को भूलना पड़ेगा.......
ghar ke kahne se behatar kuch nahi hota ....yahi param satya hai !!
चोपडा जी हम तो वेसे ही नही खाते बाहर का खाना मां ओर पिता जी ने शुरु से ऎसी आदते डाल रखी हे,वही आदते मेने बच्चो मे भी डाली हे,जी कभी छुट्टियो पर हो तो मज्बुरी मे जाना पडता हे, बाकी तो घर की दाल ही मुर्गी बराबर हे,
घर का खाना सबसे अच्छा , जब-२ बाहर खाये तब झेले ।
Bilkul theek main bhi Bhatia g ka samarthan karta hoon
apni bhi ghar ki daal murgi jaisi
bilkul sahi kaha aapne
regards
Dhabe mein jaker apna jayaka sudherne ke bajay kharab hota hai .... ghar per raho aur patni ke hathon se bani rookhi sookhi khaker hi khush raho....bivi ke hath se bana khana khao aur prabhu ke gun gao.....
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