Friday, March 7, 2008

क्या है आखिर इस तरह के फ्रूट-जूस में ?


दो-तीन दिन से गर्मी के मौसम के पदचाप सुनाई देने लगे हैं....ऐसे में आने वाले दिनों में फलों के जूस वगैरह का बाज़ार गर्म होता नज़र आयेगा..........फलों के ताज़े जूस का नहीं पिछले कुछ समय से तो टैट्रा-पैक में मिलने वाले कुछ फलों के जूसों ने भी तो धूम मचा रखी है। कल जब एक ऐसे ही टैट्रा-पैक को देखा तो उस के बारे में अपने व्यक्तिगत विचार लिखने की बात मन में आई।


इस मिक्सड़ फ्रूट जूस (जिसे वर्ल्ड के नंबर वन होने का दावा किया गया है) की एक लिटर की पैकिंग के बारे में टैट्रा-पैक के बाहर लिखा हुया है (अंग्रेज़ी में) कि इस में ये सब इन्ग्रिडीऐंट्स मौजूद हैं........ पानी, सेब के जूस का कंसैन्ट्रेट, अनानास के जूस का कंसैन्ट्रेट , चीनी( शूगर), संतरे के जूस का कंसैन्ट्रेट, आम के जूस का कंसैन्ट्रेट, अमरूद की पलप, एसिडिटी रैगुलेटर( 330), विटामिन-सी। और साथ में फलेवर्ज़ डले होने की बात भी कही गई है.....( contains added flavor….natural flavouring substances)..

यही सोच रहा हूं कि अगर इतने सारे फलों के रस इस में मौज़ूद हैं तो आखिर इस में विटामिन-सी बाहर से डालने की आखिर क्या ज़रूरत आन पड़ी है। क्या कोई मेरी इस प्रश्न का जवाब देगा ?


लेकिन इस के बारे में ग्राहकों को कुछ नहीं बताया गया कि ये सब इन्ग्रिडीऐन्ट्स कितनी मात्रा में उपलब्ध हैं.......अब ग्राहक को तो लगता है कि इस से कुछ लेना देना है नहीं, बस उसे तो जूस का स्वाद अच्छा लगना चाहिये जो उसे चंद पलों के लिए ठंडक पहुंचा दे.....चाहे यह कंपनी तो यह दावा कर रही है कि इस का ज़ायका आप को सारा दिन मज़ा देता रहेगा ( लेकिन कंपनी तो आखिर ठहरी कंपनी !)..


अब अगर ग्राहक दस-गिलास ताजे जूस के दाम के बराबर कोई ऐसे जूस का डिब्बा खरीद रहा है तो उसे क्या इतना जानने का अधिकार भी नहीं है कि उस में कितनी चीनी(शक्कर ) मिली हुई है ! …..शायद नहीं। अब ये सब बातें आप को कंपनी बताने लगेगी तो उसे बड़ी दिक्कत हो जायेगी। ताजे जूस में हमारे पड़ोस वाला जूसवाला क्या कम शक्कर उंडेलता है जो हम इस डिब्बे वाले जूस में शक्कर के इतना पीछे पड़ रहे हैं। इस के बारे में आप भी सोचिए....। मेरी पत्नी, डा.ज्योत्स्ना चोपड़ा, जो एक जर्नल फिजिशियन हैं ....उन्हें भी इस के बारे में ( शक्कर वाली बात) जान कर बहुत हैरानगी हुई। खैर, चलिये आगे चलते हैं।


इस स्वीटंड फ्रूट-जूस ( sweetened fruit juice) के डिब्बे के ऊपर यह भी लिखा हुया था कि इस में न तो कोई एडेड कलर है और न ही प्रिज़र्वेटिव..........(No added colour and preservative)………लेकिन यह इस में किसी प्रिज़र्वेटिव के ना होने वाली बात मुझे तो हज़म नहीं हो रही है ( क्या करूं ?.......हाजमोला ले लूं !........ठीक है , वह भी ले लूंगा, पहले आप से दो बातें तो कर लूं। ) .....लेकिन हाजमोला लेने के बाद भी मुझे इस नो-प्रिज़र्वेटिव वाली बात की बदहज़मी बनी रहेगी क्योंकि मैं बड़े विश्वास से यह सोच रहा हूं कि ऐसी कौन सी वस्तु है जो बिना प्रिज़र्वेटिव के छःमहीने पर ठीक ठाक रहती है..........इस की पैकिंग पर लिखा हुया है कि दिसंबर 2007 में बना यह जूस का डिब्बा जून 2008 तक ले लेना बैस्ट है ( Mfd…Dec.2007, Best before June 2008)..


इस जूस के 100 मिलीलिटर की न्यूट्रिश्नल वैल्यू भी तो आप जानना चाहेंगे.....तो सुनिये इस में प्रोटीन है – 0.4 ग्राम, फैट और कोलेस्ट्रोल ज़ीरो ग्राम, कार्बोहाइड्रेट- 13.7ग्राम ..............आगे लिखा हुया है सोडियम 5मिलीग्राम, पोटाशियम 103मिलीग्राम और विटामिन-सी 40मिलीग्राम। अब इन के बारे में अलग अलग से बतलाना शुरू करूंगा तो भी पोस्ट कुछ ज़्यादा ही लंबी न हो जायेगी, यही सोच कर आगे बढ़ रहा हूं। वैसे यह जो फैट और कोलेस्ट्रोल के नाम के आगे ज़ीरो ग्राम लिखने का चलन शुरू हो गया है ना, इस के बारे में फिर कभी लिखूंगा।


इस डिब्बे बंद जूस की पैकिंग पर यह घोषणा भी बेहद शानदार तरीके से की गई है कि इस जूस के एक पाव-किलो( 250मिलीलिटर) का गिलास पी लेने पर आप सारे दिन में उन पांच फलों एवं सब्जियों की सर्विंग्स (जिन की डाक्टर सलाह देते हैं)...में से एक सर्विंग हासिल कर लेते हो और यह गिलास पीने से आप सारे दिन की विटामिन-सी की सप्लाई प्राप्त कर लेते हो। इस के बारे में भी मेरे विचार अलग हैं.....(कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली !)..क्या है ना, कहां वे ताज़े फल और सब्जियां ...और कहां ये डिब्बे में मिलने वाले जूस...........और जहां तक सारे दिन की विटामिन-सी की पूरे दिन की सप्लाई की बात है, उस बात में भी कुछ ज़्यादा वज़न लगा नहीं ...क्योंकि उस सप्लाई को प्राप्त करने के लिये इतने रूपये खर्च करने की क्या ज़रूरत है....वह तो कोई भी ताज़ा फल( संतरा, कीनू इत्यादि और यहां तक कि बहुत ही प्रचुर मात्रा में आंवले से भी मिल ही सकता है) ..बड़ी आसानी से दिला सकता है।


और हां, एक बात की तरफ़ और भी ध्यान दीजियेगा कि टैट्रा-पैक तो यह भी लिखा हुया है कि अगर आप को यह डिब्बा फूला हुया सा लगे तो इसे न खरीदें। वैसे उन्होंने इसे लिखवा कर अच्छा किया है।


सीधी सी बात है कि ताज़े फल का कोई सानी नहीं है.....हां,अगर आप किसी ऐसे टापू पर जाने का प्रोग्राम बना रहे हैं जहां पर ताज़े फल का जूस नहीं मिलेगा या फल ही न मिलेंगे, वहां पर आप इस डिब्बा-बंद जूस को ज़रूर ले कर जा सकते हैं। लेकिन, एक बात जो मैं अकसर बहुत बार कहता हूं और जो हम सब को हमेशा याद रखनी है , वह यही है कि ज़ूस से भी कहीं ज्यादा बेहतर होगा अगर हम ताज़े फलों को ही खा सकें....क्योंकि इन फलों में कुछ अन्य फायदेमंद इन्गर्डिऐन्ट्स भी हैं जो हमें केवल ताज़े फले खाने से ही प्राप्त हो सकते हैं .....वैसे एक बात और भी है कि इन फलों में तो कुछ ऐसी अद्भुत चीज़ें भी हैं जिन का राज़ इस प्रकृति ने अभी भी राज़ ही बना कर रखा हुया है।......अभी तो वैज्ञानिक इन चमत्कारी घटकों के बारे में कुछ पता ही नहीं लगा पाये हैं।


दो-चार दिन पहले मैं स्टेशन पर बैठा हुया था तो दो पुरूष आपस में बैठे प्लेटफार्म के बैंच पर बातें कर रहे थे...उन में से एक शायद किसी कोल्ड-ड्रिंक कंपनी में काम करने वाला था। जब दूसरे बंदे ने यह पूछा कि यार, वैसे पीछे बड़ा सुनने में आ रहा था कि इन ठंडे की बोतलों में कीटनाशक हैं और यह फलां-फलां बाबा जी अपने प्रवचनों में इन ठंडों की बड़ी क्लास लेते हैं तो उस कोल्ड-ड्रिंक कंपनी वाले ने इस पर कुछ इस तरह से प्रकाश डाल कर उस की ( साथ में मेरी भी !)…जिज्ञासा शांत कर डाली......................देख, भई, ये ठंडे तो बिकने ही हैं...चाहे कुछ भी हो जाये....कोई कुछ भी कहता रहे.......ठीक है , लोग खरीद कर ना भी पियेंगे, लेकिन विवाह-शादियों एवं अन्य पार्टियों में जहां ये फ्री में मिलते हैं....इन जगहों पर तो वे इन पर टूटने से बाज़ आयेंगे नहीं, तो फिर कंपनियों को टेंशन लेने की क्या ज़रूरत है...........इन पार्टियों वगैरह में तो एक एक बंदा चार-पांच गिलास तक गटक जाता है। बस, हमारी कंपनियों के लिये इतना ही काफी है............अब तुम्हें बताऊं यह जो सारी तरह की पब्लिसिटि इन ठंडों के बारे में पीछे हो रही थी ना, इस में कंपनियों की सेल में सिर्फ़ 3-4 प्रतिशत का ही फर्क पड़ा है, लेकिन इस से भी जूझने के लिये कंपनियों के पास बहुत से रास्ते हैं..........................


लेकिन अफसोस इन रास्तों के बारे में मैं कुछ ज़्यादा सुन नहीं पाया क्योंकि उसी समय प्लेटफार्म पर ऐंटर हो रही मेरी गाड़ी के शोर में उन दोनों की बातें मेरी ऑडिबल-रेंज से बाहर हो गईं।

4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

भाई, हमें तो कभी ये जूस का आइडिया नहीं पचा। जूस पी जाओ और फल के फाईबर को कूड़े के हवाले करो, ये कौन सी समझदारी है। फिर डिब्बे का क्या। वो गाना नहीं सुना आप ने- खाली की गारंटी दूंगा, भरे हुए की क्या गारंटी। डिब्बा ही चाहिए तो खाली खरीदो।

mamta said...

आँखें खोलने वाली पोस्ट। भाई कभी-कभार हम जूस तो पीते है पर इतनी सारी बातों पर ध्यान नही देते है।

Sanjeet Tripathi said...

जूस से याद आया, किडनी इन्फेक्शन वाल पेशेंट को जूस पीने से मना किया था एक विशेषज्ञ नें यह कहते हुए कि इससे शरीर में यूरिया की मात्रा बढ़ जाएगी और खतरा होगा इसलिए जू्स पीने की बजाय फल सीधे खाए जाएं बेहतर होगा!!

तो कृपया यह ज्ञानवर्धन करें कि क्या जूस में यूरिया की मात्रा ज्यादा होती है

राज भाटिय़ा said...

चोपडा जी,हम यह सब जानते हे फ़िर भी थोडा बहुत पीना ही पढ्ता हे,घर मे हो तो हम सिर्फ़ पानी ही पीते हे, बाहर इस लिये की या बीयर पियो वो भी यहा पानी की तरह हे,या कोक जिसे हम बिलकुल भी नही पीते, फ़िर कोक से अच्छा डिब्बे का जुस ही ठीक हे,
आप का बहुत बहुत धन्यवाद जानकारी देने का