दोस्तो, कुछ न कुछ बात हम डाक्टरों की जिंदगी में रोज़ाना ऐसी घट जाती है कि वह हमें अपनी कलम उठाने के लिए उकसा ही देती है। वैसे तो कईं बार ही ऐसा हो चुका है कि लेकिन आज भी सुबह ऐसा ही हुया---एक मरीज जिसमें खून की बहुत कमी थी, मैं उसे इस के इलाज के बारे में बता रहा था, जैसे ही मैं उसे खाने-पीने में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने लगा तो उस ने झट से कहा कि मैं तो बस रोज़ अनार का जूस पी लिया करूंगा। फिर उस को यह भी बताना पड़ा कि उस अकेले अनार के जूस के साथ-साथ उसे और भी क्या क्या खाना है....क्योंकि बाज़ार में बिकते हुए अनार के जूस के ऊपर कैसे भरोसा कर लूं.....मौसंबी एवं संतरे का जूस तो बाज़ार में ढंग से लोगों को मिलता नहीं, अनार के जूस का सपना देखना तो भई मुझे बहुत बड़ी बात लगती है।
दोस्तो, आप कभी जूस की दुकान को ध्यान से देखिए, उस ने जूस निकालने की सारी प्रक्रिया आप की नज़रों से दूर ही रखी होती है। कारण यह है कि उस ने उस गिलास में बर्फ के साथ ही साथ, चीनी की चासनी, थोडा़ बहुत रंग भी डालना होता है और यह सब कुछ जितना आप की नज़रों से दूर रहेगा, उतनी ही उसको आज़ादी रहेगी। मैं भी अकसर बाजार में मिलते जूस का रंग देख कर बड़ा हैरान सा हो जाया करता था ---फिर किसी ने इस पर प्रकाश डाल ही दिया कि कुछ दुकानदार इस में रंग मिला देते हैं--नहीं तो जूस में 10अनार के दानों का जूस मिला होने से भला जूस कैसे एक दम लाल दिख सकता है। दोस्तो, अब बारी है चासनी की, अगर हम ने बाजारी जूस के साथ साथ इतनी चीनी ही खानी है तो क्या फायदा। अब , रही बात बर्फ की...तो साहब आप लोग बाज़ारी बर्फ के कारनामे तो जानते ही हैं, लेकिन इस जूस वाले का मुनाफा बर्फ की मात्रा पर भी निर्भर करता है। तो फिर क्या करें...आप यही सोच रहे हैं न..क्या अब जूस पीना भी छोड़ दें....जरूर पीजिए, लेकिन इन बातों की तरफ ध्यान भी जरूर दीजिए.....वैसे अगर आप स्वस्थ हैं तो आप किसी फळ को अगर खाते हैं तो उस से हमें उस का जूस तो मिलता ही है, साथ ही साथ उस में मौजूद रेशे भी हमारे शरीर में जाते हैं,और इस के इलावा कुछ ऐसे अद्भुत तत्व भी हमें इन फलों को खाने से मिलते हैं जिन को अभी तक हम डाक्टर लोग भी समझ नहीं पाए हैं। हां, गाजर वगैरा का जूस ठीक है, क्योंकि आदमी वैसे कच्ची गाजरें कितनी खा सकता है। हां, अगर कोई बीमार चल रहा है तो उस के लिए तो जूस ही उत्तम है और अगर वह भी साथ साथ फलों को भी खाना चालू रखे तो बढ़िया है।
जूस का क्या है....कहने को तो बंबई के स्टेशनों के बाहर 2 रूपये में बिकने वाला संतरे का जूस भी जूस ही है---जिस में केवल संतरी रंग एवं खटाई का ही प्रयोग होता है। जितने बड़े बड़े टबों में वे ये जूस बेच रहे होते हैं अगर वे संतरे लेकर उस का जूस निकालना शुरू करें तो शायद एक पूरी घोड़ा-गाडी़ (संतरों से लदी हुई ) भी कम ही होगी।
आप क्या सोचने लग गए ??
Wednesday, January 2, 2008
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1 comment:
प्रिय डॉक्टर इस चिट्ठे के लिये एवं इस लेख के लिये शत शत आभार. लिखते रहें बहुत लोगों को फायदा होगा.
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