मैं जब भी बम्बई में होता हूं न तो दोस्तो वहां पर बार बार गन्ने के रस पीने से कभी नहीं चूकता.. लेकिन अपने यहां पंजाब -हरियाणा में मेरी पिछले कुछ सालों से कभी गन्ने का रस पीने की इच्छा ही नहीं हुई। पिछले कुछ सालों से इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि पहले खराब गन्ने का रस पीने के नुकसानों से वाकिफ न था। वैसे तो मैं बचपन से ही इस का शौकीन रहा हूं - जब भी मां की उंगली पकड़ कर बाज़ार जाता तो आते वक्त मेरा एक गन्ने का गिलास पक्का था।
दोस्तो, 1980 में मुझे पीलिया हो गया तो मेरी मां बहुत दूर से जाकर छःसात गिलास गन्ने का रस ले कर आती थी, क्योंकि उस अमृतसर के दुर्ग्याणा मंदिर के बाहर स्थित गन्ने के रस की दुकान की खासियत ही यह थी कि वह खूब सारा धूप वगैरह जला कर एक भी मक्खी आस पास नहीं फटकने देता था। और पीलिया रोग में तो यह एहतियात और भी कहीं ज्यादा जरूरी थी।
और बचपन में याद है कि हम लोग स्कूल से आते हुए एक ऐसी जगह से यह जूस पीते थे जहां पर बैल की आंखों पर पट्टी बांध कर उसे गोल-गोल दायरे में घुमा कर गन्नों को पीस कर जूस निकाल जाता था, तब किस कमबख्त को इस की फिकर थी कि क्या मिल रहा है। बस यही शुक्र था कि जूस के पीने का आनंद लूट रहे थे। इस के बाद , अगला स्टाप होता था , साथ में बैठी एक छल्ली वाली ....वही जिसे भुट्टा कहते हैं-- उस से पांच-दस पैसे में कोई छल्ली ले कर आपनी यात्रा आगे बढ़ा करती थी।
सारी, फ्रैंडज़, यह जब से ब्लागिरी शुरु की है न , मुझे अपनी सारी पुरानी बातें बहुत याद आने लगी हैं...क्या आप को के साथ भी ऐसा हो रहा है। कमैंटस में जवाब देना, थोड़ी तसल्ली सी हो जाएगी
।
हां, तो मैं बात कर रहा था कि बम्बई में जाकर वहां पर गन्ने के रस का भरपूर आनंद लूटना चाहता हूं। इस का कारण पता है क्या है ...वहां पर गन्ने के रस के स्टालों पर एकदम परफैक्ट सफाई होती है, उन का सारा ताम-झाम एक दम चमक मार रहा होता है और सब से बड़ी बात तो यह कि उन्होंने सभी गन्नों को सलीके से छील कर अपने यहां रखा होता है ....इसलिए किसी भी गन्ने का ज़मीन को छूने का तो कोई सवाल ही नहीं।
इधर इस एरिया में इतनी मेहनत किसी को करते देखा नहीं, ज्यादा से ज्यादा अगर किसी को कहें तो वह गन्नों को कपड़ों से थोड़ा साफ जरूर कर लेते हैं ,लेकिन जिसे एक बार बम्बई के गन्ने के रस का चस्का लग जाता है तो फिर उसे ऐसी वैसी जगह से यह जूस पसंद नहीं आता। बम्बई ही क्यों , दोस्तो, कुछ समय पहले जब मुझे हैदराबाद जाने का मौका मिला तो वहां पर भी इस गन्ने के रस को कुछ इतनी सी सफाई से परोसा जा रहा था। यह क्या है न दोस्तो कि कुछ कुछ जगहों का कुछ कल्चर ही बन जाता है।
और जगहों का तो मुझे इतना पता नहीं, लेकिन दोस्तो, पंजाब हरियाणा में क्योंकि कुछ जूस वाले सफाई का पूरा ध्यान नहीं रखते इसलिए गर्मी के दिनों में लोकल प्रशासन द्वारा इस की बिक्री पर कुछ समय के लिए रोक ही लगा दी जाती है ...क्योंकि इस प्रकार से निकाला जूस तो बस बीमारियों को खुला बुलावा ही होता है।
तो,आप भी सोच रहे हैं कि इस में कोई हैल्थ-टिप दिख नहीं रही-तो ,दोस्तो, बस आज तो बस इतनी सी ही बात करनी है कि गन्ने का रस पीते समय ज़रा साफ-सफाई का ध्यान कर लिया करें।
वैसे जाते जाते बम्बई वासियों के दिलदारी की एक बात बताता हूं ...कुछ दिन पहले ही चर्चगेट स्टेशनके बाहर हम लोग गन्ने का जूस पी रहे थे कि एक भिखारी उस दुकान पर आया और उसे देखते ही दुकानदार ने उसे गन्ने के रस का एक गिलास थमा दिया.....उसने बीच में पीते हुए दुकानदार से इतना कहने की ज़ुर्रत कैसे कर ली....नींबू भी डाल दो। और दुकानदार ने भी उसी वक्त कह दिया कि सब कुछ डाला हुया है , तू बस साइड में हो कर पी ले। मैं यह समझ नहीं पाया कि क्या उस भिखारी ने नींबू मांग कर ठीक किया कि नहीं.....खैर जो भी , We liked this small noble gesture of that shopkeeper. May he always keep it up !!
4 comments:
Dr. Saab,
im really impressed with u.
and u just keep writting..
and providing such a impt. informations too.
My self..Amit Sharma
From Kuwait
amteeshr@gmail.com
डाक्टर साहब; ये कुवैत से लिखने वाले सज्जन बिल्कुल सही कह रहे हैं। और यह बहुत अच्छा है कि आप जानदार पोस्ट लिख रहे हैं - डाक्टरी प्रेस्क्रिप्शन नहीं घसीट रहे।
बहुत बहुत साधुवाद - एक ध्येय पूर्ण ब्लॉगिंग के लिये।
हिन्दीभाषा में स्वास्थ्य-साक्षरता को बढ़ावा देने वाली जानकारी का बहुत अभाव है। आपको हिन्दी-ब्लागजगत में पाकर बहुत सन्तोष हो रहा है। ऐसे ही स्वास्थ्य के लिये महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी लेखनी चलाते रहें; हिन्दी और हिन्दी-जगत का बहुत भला होगा। स्वास्थ्य साक्षरता और रोग-शिक्षा (पैशेंट एडुकेशन) का किसी भी समाज को निरोग रखने में बहुत महत्व है। आशा है आपका ब्लाग इस दिशा में पहल करके समाज का हित साधने के साथ ही यश का भाक़्गी होगा।
अजी हम तो यही कहेंगे की हम ब्लौग तो इसीलिये शुरू किये थे क्योंकि मैं अपनी यादों को सजोना चाहता था.. उसे दुनिया तक पहूंचाना चाहता था.. :)
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